गृहस्थ आश्रम के ,गुरु ,,माता,, पिता,, और अतिथि चार भगवान होते हैं जहां इनका सम्मान होता है वही सच्चा गृहस्थ आश्रम है ,,,संत श्री राम बालक दास जी 

गृहस्थ आश्रम के ,गुरु ,,माता,, पिता,, और अतिथि चार भगवान होते हैं जहां इनका सम्मान होता है वही सच्चा गृहस्थ आश्रम है ,,,संत श्री राम बालक दास जी 

 

29 अगस्त , 
प्रतिदिन की भांति आज भी बालोद जिला के पाटेश्वर धाम के संत महात्यागी श्री राम बालक दास जी का ऑनलाइन सत्संग अपने भक्तजनों के लिए आयोजित किया गया, संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा आयोजित यह ऑनलाइन सत्संग पूरे देश के लिए एक धार्मिक मंच बनकर प्रस्तुत हुआ है जिसमें सभी भक्तगण अपनी धार्मिक जिज्ञासाओं के साथ-साथ समसामयिक,पारिवारिक, व्यवहारिक,महत्वपूर्ण विषयों  को जिज्ञासा रूप में बाबाजी के समक्ष रखकर उसका उत्तर प्राप्त कर अपने ज्ञान में उत्तरोत्तर वृद्धि कर रहे हैं,भक्तों की सुंदर मधुर भजनों से यह सत्संग और भी अधिक आनंदमय हो जाता है जहां संत श्री के द्वारा प्रतिदिन नित नवीन विषयों पर प्रवचन प्रेषित किया जाता है, वही ऋचा बहन के द्वारा प्रेषित ,,मीठा मोती,, सभी के लिए ज्ञान का संदेश लेकर आता है
                  पुरुषोत्तम जी ,अपर्णा,शिवाली साहू, तननु साहू, भूषण साहू, डूबाबति यादव,राजकुमार यादव,के द्वारा प्रतिदिन रामचरितमानस की पंक्तियों और भजनों का गायन किया जाता है एवं पुरुषोत्तम अग्रवाल जी,रामफल जी, दाताराम साहू एवं अन्य भक्तों के द्वारा रखी गई जिज्ञासाओं से सभी धार्मिक चेतना ओं का उद्घाटन तो होता ही है साथ ही हमारे देशव्यापी पर्व त्योहारों के विषय में भी हमें विभिन्न जानकारियां एवं उनके महत्व के विषय में बाबा जी के द्वारा बताए गए प्रवचन सुनने को मिलते हैं, जब भी भक्त धार्मिक रीति रिवाज को लेकर असमंजस की स्थिति में होते हैं तो बाबा जी के द्वारा उसका समाधान भी किया जाता है बहुत सी रूढ़ियों अंधविश्वासों को भी बाबाजी समाधान करते हैं ताकि भक्त किसी भी तरह की अंधविश्वास में फस कर धार्मिक दुविधा का पात्र ना बने


                    बाबा जी के द्वारा उनके युट्यूब चैनल rambalakdas पर प्रतिदिन बाबाजी की पाती का संचालन किया जाता है जिसमें वे अपने भक्तों को अपनी दिनचर्या से तो अवगत कराते ही है एवं इसमें अपने प्रवचन आदि प्रेषित करते हैं उनका सीधा प्रसारण भी भक्तगणों दिखाया जाता है,पाटेश्वर धाम की महिमा एवं बाबा जी की बचपन की विभिन्न यादों को भी इसमें भक्तों के बीच
 रखा जाता है    
      आज की सत्संग परिचर्चा में ठाकुर राम साहू जी ने रामचरितमानस के उत्तरकांड की चौपाई"धाई धरे गुरु चरण  " के भाव को स्पष्ट करने की विनती बाबा जी से कि बाबा जी ने बताया कि    भगवान श्री राम जब अयोध्या लौट कर आते हैं तो उनकी गुरुभक्ति को यहां पर स्पष्ट किया गया है कहते हैं कि एक गृहस्थ के चार भगवान होते हैं अतिथि देवो भव:, पितृ देवो भव:, मातृ देवो भव:और आचार्य देवो भवः
      और जब भगवान राम अयोध्या पहुंचते हैं तो सबसे पहले माता केकई चरण छूते है फिर कौशल्या मैया के  चरण छूते हैं और जब अपने गुरुदेव से मिलते हैं    ,श्री राम अपने अनुज के साथ दौड़ते हुए बड़े आनंद पूर्वक गुरुदेव के चरणों को छूते हैं और गुरुदेव पूछते हैं कि राम कुशल तो हो, भगवान श्री राम कहते हैं कि हमारी कुशलता तब तक है गुरुदेव जब तक आप की दया है,और उनके उत्तर को प्राप्त कर गुरुदेव मुस्कुरा देते हैं क्योंकि भगवान श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम राम है तो वह अपनी मर्यादाओं को पूरी तरह से आचरण करते हैं इससे हमें यह संदेश मिलता है कि हमें भी अपने जीवन में गुरु का सदैव सम्मान करना चाहिए एवं जो भी हमारे जीवन में है  वह गुरु की कृपा ही है यह सोचकर ही जीवन जीना चाहिए
          आगे सत्संग परिचर्चा में दाता राम साहू जी ने जिज्ञासा रखी की मूरति मधुर मनोहर देखी।भयउ बिदेहु बिदेहु बिसेषी।।  पूज्य गुरुदेव जी इस पर प्रकाश डालने की कृपा करें,बाबा जी ने बताया कि यह रामचरितमानस के बालकांड का प्रसंग है जिसमें राम जी जब जनकपुर पहुंचते हैं, तो वहां के नर नारी बच्चे बुजुर्ग सभी उनके रूप को देखकर चकित हो जाते हैं कि हमने ऐसा स्वरूप तो कभी देखा ही नहीं,,और कैसे देखते ऐसा स्वरूप तो कभी हुआ ही नहीं, और जहां जहां दोनों भाई राम लक्ष्मण जाते वहां वहां सभी उनके रूप पर मोहित हो जाते लेकिन जनक जी जो कि परम योगी है जो  देह से परे हैं, जो  इंद्रियों से ऊपर उठे हुए हैं,वह भी भगवान राम की छवि को देखकर मोहित हो जाते हैं,  
            आज की परिचर्चा में बाबा जी ने शबरी जी के जन्म एवं भगवान श्री राम के मिलन के विषय में बताया  माता शबरी शबर जात की थी जो कि शबर राजा की पुत्री थी, और यह जाति छत्तीसगढ़ से लगभग 200 साल पहले ही विलुप्त हो चुकी है और माता शबरी श्री राम जी के काल अर्थात 1700000 वर्ष पूर्व की कथा में उद्धृत हुई है, इनका जन्म छत्तीसगढ़ के शिवरी नारायण  के महा नदी तट पर हुआ था लेकिन उन्होंने बचपन में ही अपना घर त्याग दिया था जब उनका विवाह तय हुआ तो उनके विवाह के उपलक्ष में बहुत सारे पशुओं की बलि देकर उसके मांस को पकाया जाना था  उन्होंने इस बलि का विरोध किया और इससे दुखी होकर उन्होंने घर त्याग कर मतंग ऋषि के आश्रम में पूरा जीवन व्यतीत कर दिया, वही पर भगवान राम से उनकी भेंट हुई वर्तमान में यह स्थान कर्नाटक में हासपेट के पास पंपा सरोवर स्थान है
            

रिपोर्ट //नरेन्दविश्वकर्मा