,,,  रामराज्य नेताओ के भाषण से नही बल्कि , समाज मे समरसता आने से आएगा, ,,संत राम बालक दास। महात्यागी 

,,,  रामराज्य नेताओ के भाषण से नही बल्कि , समाज मे समरसता आने से आएगा, ,,संत राम बालक दास। महात्यागी 

  प्रतिदिन बालोद जिला के पाटेश्वर धाम के महात्यागी संत राम बालक दास जी के द्वारा उनके ऑनलाइन सत्संग ग्रुपों में प्रात 10:00 से 11:00 सत्संग का आयोजन किया जाता है
    आज की सत्संग परिचर्चा में 

 
 बैर न कर काहू सन कोई।राम राज विषमता खोई।।
      सुरेश वर्मा जी अमलीडीह ने उपरोक्त पंक्तियों को स्पष्ट करने की विनती बाबा जी से की 
बाबा जी ने बताया कि जब भगवान श्रीराम का राज्य था तो वहां कोई विषमता नहीं थी,छोटा बड़ा जाती पाती का कोई भेदभाव नहीं था यही रामराज्य था और यही बार बार हम मंच से भी कहते हैं कि हमारे नेतागण कहते तो है रामराज्य आएगा हम रामराज्य लाएंगे, जहां पर उनके वादे और उनकी बात का कोई मूल्य नहीं है वह कहते तो हैं कि हम विषमता दूर करेंगे समता लाएंगे कोई भेदभाव नहीं होगा लेकिन  हमें यह समता कहीं भी परिलक्षित नहीं होता है ये तो समाज के लोगो के आचरण से ही सम्भव है
         प्रतिदिन रिचा बहन पंजाब  के द्वारा मीठा मोती प्रसारित किया जाता हैँ जिसमे आज सन्देश दिया गया की
         " यदि परमात्मा को हमने पत्थर के रूप में पूजा है तो हमारी बुद्धि पत्थर  की हो जाती है 
इसीलिये अब परमात्मा को चैतन्य रूप में याद कर ही पूजा करें इससे बुद्धि पारस बनेगी "
       जिसका विस्तार करते हुए आज बाबा जी ने बताया कि, भाव को उत्पन्न करने के लिए हृदय में भाव होना चाहिए,अर्थात भाव कहीं से आता नहीं हमें भगवान में कभी भी प्रतिमा का भाव रख कर पूजा नहीं करना चाहिए परमात्मा शाश्वत सनातन है उनका स्वरूप किसी भी रूप में हो सकता है,वे जल, थल,नभ,अग्नि, ,पेड़ पौधे,पत्थर नदी,पहाड़ किसी भी रूप में हो सकते हैं,यहां पर मूर्ति चित्र या प्रकार के रूप में भी हो सकते हैं माता पिता गुरु के रूप में भी हो सकते हैं परंतु भाव तो परमात्मा का ही होना चाहिए, विग्रह रूप को भी चैतन्य प्रभु मान कर उनका ध्यान करना चाहिए, पूजन करना चाहिए, तो हमारी बुद्धि भी पारस बन जाएगी अर्थात वह पारस जो लोहे को छूते ही सोना बना देता है
       प्रतिदिन मुंबई से राहुल तिवारी जी के द्वारा अमृत संदेश  प्रेषित किया जाता है आज के संदेश में उन्होंने कहा कि संबंधों की कुल पांच सीढ़ियां है,देखना, अच्छा लगना, चाहना और  पाना यह चार बहुत सरल सीढ़ियां है और सबसे कठिन पाँचवी सीढ़ी है,निभाना।* इन पंक्तियों को विस्तारित करते बाबा जी ने बताया कि संसार से लगाव का बहुत बड़ा कारण संबंध ही है,संबंधों के बनने से व्यक्ति संसार के प्रति आकर्षित भी होता है और संबंधों के टूटने से विरक्त भी हो जाता है,तो देखा जाए तो दोनों ही अच्छे हैं, संबंधों की 5 सीढ़ी है जिसमें हमें संबंध देखना भी अच्छा लगता है उसे पाकर हम खुश भी होते हैं लेकिन निभाना बहुत ही कठिन कार्य है, अवश्यक हैँ कि हम जिस से भी संबंध बनाए उसे प्राण प्रण तक निभाए  इस प्रकार  ऑनलाइन सत्संग संपन्न हुआ