नगर की यशस्वी (लाडो) तीन अगस्त सांसारिक जीवन का त्याग कर संयम पथ अपनाने की घोषणा की है विस्तृत जानने के लिये पढ़िये पूरी खबर

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नगर की यशस्वी (लाडो) तीन अगस्त सांसारिक जीवन का त्याग कर संयम पथ अपनाने की घोषणा की है विस्तृत जानने के लिये पढ़िये पूरी खबर 

बालोद//- नगर की यशस्वी (लाडो) तीन अगस्त सांसारिक जीवन का त्याग कर संयम पथ अपनाने की घोषणा की है। बचपन से ही साधु-संतों की वाणी से प्रेरित लाडो ने दीक्षा लेने का मन बना लिया था। घर व परिवार में न केवल उचित माहौल मिला। बल्कि पूरा पूरा सहयोग भी मिला। यशस्वी के माता और पिता दोनों के परिवार से अब तक 16 लोगों ने दीक्षा ले चुके है। लाडो का 17 वां दीक्षा है। वहीं बालोद शहर की 16वीं दीक्षा होंगी।आचार्य भगवान रामलाल मसा, उपाध्याय प्रवर राजेशमुनि मसा, शासन दीपिका ताराकंवर महाराज मसा , विनयश्री मसा, सुनेहा मसा सहित साधु साधुओं की प्रेरणा से मुमुक्षु यशस्वी की दीक्षा आगामी तीन अगस्त को उदयपुर में होगी। 19 जुलाई को बालोद में भव्य शोभायात्रा एवं अभिनंदन समारोह का आयोजन किया जाएगी।शनिवार को दीक्षार्थी बहन यशस्वी ने अपने अनुभव बांटते हुए पत्रकारों से रूबरू हुई। उन्होंने अपने संयम सच का कठिन मार्ग कैसे चुना ? इस पर कहां कि मेरे माता पिता, परिवार के संस्कार आज इस मंजिल तक ले आए हैं। साधु संतों का हमेशा सहयोग व सानिध्य मिला। आचार्य रामेश की आज्ञा में आगे संयम पद पर अपने लक्ष्य को प्राप्त करू, यही मेरी मंगल कामना है। लगभग पांच साल का वैराग्य काल में रहकर बहन लाडो ने गुरुकुल बीकानेर व ब्यावर राजस्थान में शिक्षा ग्रहण की। वहां सांसारिक जीवन से दूर संयमी जीवन का पालन कैसे करना है इस पर अपने अनुभव बताए। 

जीवन को निहारने के लिए अनुशासन मे रहना जरूरी 

उन्होंने बताया कि जीवन को निहारने के लिए अनुशासन मे रहना जरूरी है। साधु जीवन में बचपन से ही माता के संस्कार आज इस मुकाम तक ले आए हैं। बी कॉम तक की शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत स्कूली शिक्षा में हमेशा अव्वल रहने वाली बहन 2018 में गुरुदेव के सूरत चातुर्मास से उसके मन में संयमी भाव की अटूट श्रद्घा और दृढ़ संकल्प ने संयम मार्ग का मार्ग अपनाया। 

पढ़ाई के बजाय संयम में लगता था मन मुमुक्षु यशस्वी ने आगे बताया कि घर वाले मुझे चार्टर्ड अकाउंटेंट की पढ़ाई के लिए बेंगलुरु, रायपुर जाने के लिए कह रहे थे। लेकिन मेरा मन सिर्फ संयम की राह पर ही चलने पर आगे बढ़े मन हमेशा कहता था कि अच्छे मार्ग में जाउं। हमारा हिंदुस्तान संत महापुरुषों का देश है यहां पर कुछ वर्षों से विदेशी संस्कार व संस्कृति निरंतर बढ; रहे हैं जो कि चिंता का विषय है। लोग आज इसे शान समझते हैं थोड़ी देर की ही सुख है, लेकिन हम इस विदेशी संस्कृति से दूर रहें।हमारा भारत देश संत महापुरुषों का देश रहा है और आगे भी रहेगा। 

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