माँ पिता वही धन्य जिनके पुत्र धर्म परायण हों , रोज का सत्संग ...संत राम बालक दास जी

माँ पिता वही धन्य जिनके पुत्र धर्म परायण हों ,  रोज का सत्संग ...संत राम बालक दास जी
माँ पिता वही धन्य जिनके पुत्र धर्म परायण हों ,  रोज का सत्संग ...संत राम बालक दास जी

माँ पिता वही धन्य जिनके पुत्र धर्म परायण हों , रोज का सत्संग ...संत राम बालक दास जी  

डौंडीलोहारा// पाटेश्वर धाम जामडीपाट आश्रम के संचालक संत राम बालक दास द्वारा प्रतिदिन की भांति बालोद जिला के पाटेश्वर धाम के संत श्री बाल योगेश्वर महाराज राम बालक दास जी के द्वारा उनके विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुप में ऑनलाइन सत्संग का आयोजन किया गया जिसमें भक्त गणों की जिज्ञासाओं का समाधान बाबा जी के द्वारा दिया गया

 आज की सत्संग पर यह चर्चा में सतरराम मंडावी जी ने जिज्ञासा रखी की

 *पुत्रवती जुबती जग सोई ,

रघुपति भगतु जासु सुत होई ।

नतरु बांझ भलि बादि बिआनी ,

राम बिमुख सुत ते हित जानी ।।

इस चौपाई पर प्रकाश डालने की कृपा करेंगे गुरुदेव जी, चौपाइयों के भाव को स्पष्ट करते हुए बाबाजी ने बताया कि गोस्वामी तुलसीदास जी कहते है की माताओं ने यदि कुपुत्र ही जन्मा है तो उससे अच्छा तो बांझ रहना है,क्योंकि पुत्रवती तो वही है जिनके पुत्र राम भक्त हो,यहां राम भक्तों से आशय राम को मानने वाला नहीं बल्कि धर्म पर चलने वाले व्यक्ति से, है ,जो धर्म का प्रतिपादन करे, "राम क्या है राम हमारा धर्म है "

यदि कोई कहे के धर्म क्या है तो हम कहे राम है और कहे राम क्या है तो वह हमारा धर्म है आज की सत्संग परिचर्चा में बाबा जी ने गर्भ गीता को वर्णित किया गर्भ गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने हमें उन सभी संकल्पों के विषय में सावधान किया है जिनके कारण हमें बार-बार जन्म लेना पड़ता है और मृत्यु होती है, साथ ही साथ जीवन मरण के चक्र से कैसे मुक्ति मिले इसका वर्णन भी गर्भ गीता में किया गया है,गर्भ गीता के प्रारंभ में अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से प्रश्न किया कि हे भगवान यह प्राणी जो गर्भ में आता है वह किस दोष के कारण आता है, जब उसका जन्म होता है तो उसे जरा आदि रोग लगते हैं और फिर उसकी मृत्यु हो जाती है हे स्वामी वह कौन सा कर्म है जिसके कारण प्राणी जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि हे अर्जुन यह जो प्राणी है वह मूर्ख है जो संसार के साथ प्रीति करता है संसार की मोह माया को अपना समझता है जिन कर्म को करके बार-बार जन्मता है और मरता है,और गर्भ के विष भरे दुख को पाता है,

अर्जुन कहते हैं कि यहां मन तो मदमस्त हाथी के समान है जो कि पांच इंद्रियों से घिरा हुआ है काम, क्रोध, मद,लोभ,अहंकार,इन सभी में मस्त है जिसके कारण मन वश में नहीं है तो वह कौन सा यत्न है जिससे मन को वश में किया जाए,भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि यह मन निश्चय ही हाथी की भांति है,वायु की तरह है तृष्णा इसकी शक्ति है,अहंकार इसमें भरा है, लेकिन हाथी जैसे अंकुश के वश में होता है,वैसे ही मन रूपी हाथी को वश में करने के लिए ज्ञान रूपी अंकुश की शरण जाना चाहिए अर्थात सत्संग करना चाहिए, गुरु की शरण लेनी चाहिए धर्म परिचर्चा में भाग लेना चाहिए, परमात्मा का आश्रय ग्रहण करना चाहिए भगवान के सुंदर-सुंदर लीलाओं का गुणगान करना चाहिए।

 आगे अर्जुन पूछते हैं कि जो आपका नाम लेकर वैराग्य धारण किए हैं, संत बन गए हैं हैं,धर्म करते हैं यज्ञ करते हैं वैष्णव है वे कौन है यहां पर श्री कृष्ण जी ने कहा कि जो वन वन घूमते हैं जटा धारण किए हुए हैं बैरागी बन गए हैं भस्म रमाते हैं उनमें मैं कभी नहीं होता उनमें तो केवल उनका अहंकार होता है,मैं तो केवल भाव मे ही रहता हूँ आगे अर्जुन ने प्रश्न किया कि भगवान ऐसा कौन सा पाप है जिसके करने से स्त्री की मृत्यु हो जाती है और पुत्र का भी नाश हो जाता है और व्यक्ति नपुंसकता को प्राप्त करता है,भगवान श्रीकृष्ण ने स्पष्ट किया कि कर्ज लेना और उसे ना देना या फिर कोई संकल्प करना और से पुरा ना करना, ऐसे लोगों को स्त्री दुख मिलता है और जो लोग अमानत रखते हैं और उसे पचा लेते हैं उनको पुत्र वियोग मिलता है,और किसी को वादा करके ऐसा किसी को कहे कि हम यह कार्य कर देंगे उसे ना करना उससे नपुंसकता मिलती है

 इस प्रकार आज ज्ञान से ओतप्रोत बाबाजी का सत्संग संपन्न हुआ

जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम सत्संग में जुड़ने हेतु 9425510729 पर मैसेज करें 

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