मुझको

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मुझको 

डॉ मीता अग्रवाल मधुर रायपुर छग 

मिला है प्रीत का संसार मुझको । दिया श्रृंगार का उपहार मुझको।। 

सजाएँ नैन कजरारे लुभाते। हुई बातें करे लाचार मुझको।। 

धनी है वो जगत में एक न्यारा। उसी की चाह अरु आधार मुझको।। 

गगन जो आसमानी रंग भरते। लुभाते मेघ मूसलधार मुझको।। 

निभे सागर लहर नाता घना ही । सिखाती सीख अरु व्यवहार मुझको ।। 

सजल दो नैन कहते है कहानी। मनो भाषा सुनाती सार मुझको ।। 

निभाया साथ राही-सा सलोना। बजी बंशी मधुर झंकार मुझको ।। 

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