"संत मिलन सम सुख जग नाही"-श्री राम बालक दास

श्री रामबालक दास जी के द्वारा ऑनलाइन सत्संग

" संत मिलन सम सुख जग नाही "
       
संत वे होते हैं जो संसार के दुख को भी सुख में बदल देते हैं, सौभाग्य से प्रतिदिन ऐसे ही महान संत का सानिध्य हमें  ऑनलाइन सत्संग के द्वारा प्राप्त हो रहा है, यह  ऑनलाइन सत्संग पाटेश्वर धाम के महान संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा उनके सीता रसोई  संचालन वाट्सएप ग्रुप में आयोजित किया जाता है जिसमें सभी भक्तगण  जुड़कर  अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करते हैं
        बाबाजी  ने सभी को सूचित करते हुए बताया की 12 जनवरी को  विवेकानंद जयंती पर श्री पाटेश्वर धाम तीर्थ में, एक बड़े कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है जिसमें पाटेश्वर धाम के  संस्कार वाहिनी की प्रक्रिया पूरी हो जाएगी,  इस दिन पाटेश्वर धाम के 7 एकड  की पाटेश्वर  संस्कार वाहिनी के द्वारा साफ सफाई की जाएगी, फिर   प्रभात फेरी निकाली जाएगी उसके पश्चात सामूहिक भोजन सीता रसोई में किया जाएगा फिर मंच का कार्यक्रम आयोजित होगा जिसमे  एकल गीत, सामूहिक गीत शक्ति प्रदर्शन स्व  मूल्यांकन अपने अपने व्यक्तित्व का परिचय आयोजकों की नियुक्ति बाबा जी का उद्बोधन संध्या में 4:00 बजे महाआरती से कार्यक्रम का समापन  किया जाएगा, जिसमें संभवत महामहिम राज्यपाल सुश्री अनुसुइया उइके जी भी आ सकती है
           आज के सत्संग परिचर्चा में प्रतिदिन की भांति ऋचा बहन के द्वारा मीठा मोती का प्रेषण किया गया," मनुष्य को नकारात्मकता तब घेरती है जब वह अपने श्रेष्ठ कर्म से वंचित रहता है",  इस पर अपने विचार व्यक्त करते हुए  है बाबा जी ने बताया कि गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि व्यर्थ चेष्टाओ  से दूर रहे साथ ही  अपने जीवन में उन सभी अच्छे, सकारात्मक विचारों को स्थान दे वे सभी आपके जीवन को महानता की ओर ले जाएंगे और आपके जीवन में नकारात्मकता  तभी आएगी जब आप श्रेष्ठ कार्य को त्याग कर व्यर्थ में उलझ जाते हैं
        गिरधर सोनवानी जी ने जिज्ञासा रखी कि क़्या  सूर्य को अर्ध्य देने के लिए आवश्यक है कि सूर्य उदय हो,  इस पर विचार रखते हुए बाबा जी ने बताया कि  " हे सूर्य देव मैं आपको  प्रसन्नता पूर्वक जल का अर्ध्य दे रहा हूं और आप हम पर प्रसन्न होकर अनुग्रह करें" जब इनती पवित्र भावना से आप अर्ध्य देंगे तो सूर्य नारायण तो अवश्य ही स्वीकार करेंगे,वास्तव मे तो सूर्य अस्त होता ही नही है,यह वैज्ञानिक सोच है,क्योकि हमारे देश मे जब सूर्य अस्त  होता है  तभी दूसरे देश मे सूर्य का उदय हो जाता है,इसलिए सूर्य का  अस्तित्व 24 घंटे  होता  है,आप किसी भी समय स्मरण करें,आपकी सेवा भाव को वे अवश्य स्वीकार करते हैं इसीलिए सूर्य का उदय हुआ हो या ना हुआ हुआ प्रातः 4:00 से 8:00 तक अर्घ  दे सकते हैं प्रतिदिन आदत डालिए प्रातः सूर्यदेव को अर्घ्य देकर ही अन्न ग्रहण करना चाहिए
          रामफल जी ने रामचरितमानस से जिज्ञासा रखते हुए "बड़ दुख कवन " कवन सुख भारी..... के भाव को स्पष्ट  करने की विनती बाबाजी से की, इनके भाव को विस्तार करते हुये  बाबा जी ने बताया कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने यह कहा है  कि दरिद्रता के समान कोई दुख नहीं सब कुछ होते हुए, भी मनुष्य दुखी रहता है , भगवान ने इतना कुछ दिया है उसे ना देख कर जो  नहीं मिला उसके लिए दुखी रहता है,जो भौतिक,सांसारिक ओर शरीरीक सुख मिला है उसके लिए तो वह प्रसन्न  नही है,जो नही है उस पर शोक कर विचलित  है,ऐसे छोटी छोटी व्यर्थ की चीजों मे आप दुखी  न हो,आज ही संकल्प करें की भगवान ने हमें जो इतना सुन्दर तन मन,वचन दिया है बोलने की कला दी है उसमे प्रसन्न  रहेंगे,ओर यह सुख केवल संतो के सानिध्य से ही सम्भव है
     इसलिये  तो कहा भी गया  है की आभाव मे भी जो भाव से रहना सीखा दे वह सन्त होते है
इस प्रकार आज का ज्ञान पूर्ण सत्संग सुंदर भजनो के साथ    सम्पन्न हुआ 

नरेंद्र विश्वकर्मा