जो नम्रता पूर्वक व्यवहार करता है वही संसार में अजेय होता है। श्री राम बालक दास

जो नम्रता पूर्वक व्यवहार करता है वही संसार में अजेय होता है। श्री राम बालक दास

जो नम्रता पूर्वक व्यवहार करता है वही संसार में अजेय होता है। श्री राम बालक दास

जीवन में आंतरिक आनंद की अनुभूति कराने वाले गीता महात्तम पर विस्तृत सारगर्भित उद्बोधन  संत श्री राम बालक दास जी द्वारा प्रतिदिन उनके ऑनलाइन सत्संग में किया जा रहा है जिससे जुड़ने वाले सभी भक्तों गणों के ज्ञान में  वृद्धि हो रही है

        आज के गीता चर्चा में बाबा जी ने बताया कि श्रीमद भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण हमारे व्यवहार के विषय में बताते हैं कि हमारा व्यवहार कैसा हो इसीलिए गीता भगवान श्री कृष्ण की वाणी तो है ही पर यह हमारा जीवन दर्शन और जीवनशैली का दर्शन भी है श्री  कृष्ण जी कहते हैं कि हे अर्जुन जो व्यक्ति विनम्र होता है, नम्रता पूर्वक व्यवहार करता है वही संसार में अजेय होता है उसे कोई नहीं हरा सकता जिसने अपने को हरा दिया हो जो अपने अहंकार पर विजय प्राप्त करके बैठा हो, समर्थ वान सहनशील हो संसार कभी उसे हरा नहीं सकता नम्रता के भाव से कभी किसी की हानि नहीं हुई है और अहंकार से किसी को भी विजय प्राप्त नहीं हुई है नम्र व्यक्ति संसार पर विजय भाव के साथ प्रेम भाव से भी परिपूर्ण होता है और समस्त संसार वासियों का वह प्रिय भी हो जाता है, अध्याय 12 श्लोक 9 में भगवान श्री कृष्ण अर्जुन से कहते हैं कि हे अर्जुन व्यक्ति समय अनुकूल यदि व्यवहार नहीं करता तो उसका नाश निश्चित होता है, अतः समय जिस तरह का हो हमें उसी तरह व्यवहार करना चाहिए, जैसे कि जब नदी में बाढ़ आती है तो बड़े-बड़े वृक्ष को भी बहा कर ले जाती है परंतु एक बेत का पेड़, अपने स्वभाव के अनुकूल उसकी धारा की ओर झुक कर अपने आप को सुरक्षित कर लेता है और बाढ़  चले जाने पर स्वयं फिर से खड़ा हो जाता है, बड़े-बड़े वृक्ष  अभिमान पूर्व अहंकार बस नदी के प्रवाह को नहीं समझ पाते वह इसी में बह जाते हैं और उनका अस्तित्व ही खत्म हो जाता है इसी प्रकार यह व्यवहार मानव जीवन पर भी लागू होता है, कि हमें हमारे व्यवहार में सदैव नम्र  रहना चाहिए
          सत्संग परिचर्चा में पाठक परदेसी जी ने भगवान श्री कृष्ण और श्री राम जी के मौलिक स्वभाव मैं अंतर  के विषय में जानने का जिज्ञासा  बाबा जी से कि बाबा जी ने इस विषय को स्पष्ट करते हुए बताया कि चाहे कृष्ण कहो या राम दोनों ही एक है दोनों में कोई अंतर नहीं महाप्रभु श्री विष्णु जी के दोनों ही अंश अवतार हैं श्री राम जी को  मर्यादा पुरुषोत्तम तो श्री कृष्ण जी को लीला पुरुषोत्तम कहते हैं, एक नर रूप के तीन मुख्य गुण होते हैं मौखिक मौलिक एवं दार्शनिक भगवान श्री राम में और भगवान श्री कृष्ण में यहां तीनों ही गुण आंतरिक एवं वैचारिक रूप से विद्यमान है जिनमें समसामयिक विषयों पर बोलने की व्यक्तित्व क्षमता सही समय पर सही निर्णय करने की क्षमता बिना किसी बात से सोचे समझे कुछ ना करने की धैर्य क्षमता दोनों ही रूपों में विद्यमान है, गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जब जब धर्म का नाश होता है तब तक मैं अवतार लेता हूं उसी प्रकार रामचरितमानस में भी भगवान राम ने कहा है जब धर्म की रक्षा करनी होती है, तब वे अवतार लेते है इस  तरह दोनों के ही अवतार के समान उद्देश्य  हैं 
 प्रकार आज का ज्ञानपूर्ण सत्संग संपन्न हुआ