आखिर क्यों नहिं अर्पित किया जाता भगवान शिव को केतकी का पुष्प-श्री राम बालकदास महात्यागी
प्रतिदिन ऑनलाइन सत्संग का आयोजन संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा उनके विभिन्न वाट्सएप ग्रुपों में प्रातः 10:00 बजे किया जाता है जिसमें सभी भक्तगण जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करते हैं
आज की सत्संग परिचर्चा में श्रीमती गौरी साहू जी ने प्रश्न किया कि भगवान शिव को केतकी का पुष्प नहीं अर्पित किया जाता इस पर प्रकाश डालने की कृपा करें, बाबा जी ने बताया कि इस विषय में कथा आती है कि एक समय पर भगवान शिव के दिव्य पुंज प्रकाश का आदि अंत जानने के लिए ब्रह्मा जी ऊपर आकाश की ओर और विष्णु जी नीचे पाताल की ओर गए और इस प्रकार से विजयी होने की लालसा में भगवान ब्रह्मा जी ने केतकी के पुष्प को झूठी गवाही देने के लिए कहा की उन्होंने इस दिव्य पूंज का प्रारंभ देख लिया है तब केतकी के पुष्प को भगवान शिव ने त्याग दिया, ब्रह्मा जी को भी श्राप प्राप्त हुआ कि वे कभी भी धरती पर पूजे नहीं जाएंगे
परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए रामफ़ल जी ने जिज्ञासा रखी की
यह चरित जे गावहि हरि पद पावहि ,तू न परहि भव कुपा।। इस पर प्रकाश डालने की कृपा हो, इन पंक्तियों पर प्रकाश डालते हुए बाबा जी ने बताया कि श्री ठाकुर जी के चरित्र को हमें चिंतन मनन करते रहना चाहिए और उस पर अनुसरण भी करना चाहिए अब यहां भाव यह आता है कि वह चरित्र कैसा है जिसका हमें अनुसरण करना चाहिए जिसका हमें मनन करना चाहिए और जिसका हमें सदैव ही श्रवण करना चाहिए और हृदय से चिंतन करते रहना चाहिए, वह चरित्र जो उन्होंने मर्यादा रूप, व्यवहारिक जीवन से लेकर आध्यात्मिक स्वरूप का उसमें चरित्र चित्रण करवाया ऐसे कथा का श्रवण करते हुए माता-पिता के गुरुजनों के जीव जंतुओं के मानव जगत के प्रति हमारा सदभाव सदैव ही निर्मल रहना चाहिए, अब यहां पर हम भव कूप के विषय में जानने का प्रयत्न करते हैं भवकूप से अभिप्राय हमारे संपूर्ण जीवन से हमारी पांच काम इंद्रिय और ज्ञानेंद्रियों से हैं, प्रभु कहते है कि इस भवकूप से तो मैं तुम्हे उबार लूंगा लेकिन संसार की महा माया के भवसागर से उबरने के लिए तुम्हें स्वयं प्रयत्न करना होगा अर्थात सत्संग का सहारा लेना ही होगा ताकि तुम इस भवसागर से उबरने का अपने मार्ग को प्रशस्त कर सको
पाठक परदेसी जी ने जिज्ञासा रखी की
जो छोड़े तो आंध्रा, खाए तो मरी जाए।
ऐसे संग छछूंदर ई, दोनों भांति पछताए।।
महात्मा कबीर के इस दोहे पर प्रसंग डालने की कृपा हो भगवान, दोहे के अर्थ को स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि छछूंदर एक ऐसा प्राणी है जो चूहे के समान दिखता है लेकिन वह जहरीला होता है, सांप उसे चूहे की गलतफहमी में खा लेता है तो, अगर वह उसे आधा खाकर उगल दे तो वह अंधा हो जाता है और पूरा खा ले तो उसकी मृत्यु हो जाती है तब कुछ सांप अंधा होना पसंद करते हैं और कुछ मर जाना तो ऐसे ही मनुष्य भी अपने आपको अपने कर्मों के द्वारा ऐसी स्थिति में डाल देता है जहां वह पछताता भी है और उस के लिए ना तो वहां संतुष्टि से जी पाता है और ना ही संतुष्टि से मर पाता है
रिपोर्ट//नरेंद्र विश्वकर्मा