श्री मद्भागवत कथा का आयोजन सात दिन से अधिक भी किया जा सकता है - श्री रामबालकदास जी

श्री मद्भागवत कथा का  आयोजन सात  दिन से  अधिक भी किया जा सकता है  - श्री रामबालकदास  जी
संत श्री राम बालक दास जी

प्रतिदिन की भांति ऑनलाइन सत्संग का आयोजन संत श्री राम बालक दास जी के सानिध्य में आज भी  किया गया जिसमें सभी भक्तगण जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त किये
          आज सत्संग परिचर्चा में गिरधर सोनवानी जी ने जिज्ञासा रखी की  हनुमान चालीसा पाठ के अनुसार जो सत बार पाठ कर कोई ,छूटय बंदी महा सुख होई
इसका क्या तात्पर्य है गुरुदेव जी
  कृपया मार्गदर्शन करें  
बाबाजी ने बताया की संतो के अनुसार ब्रह्म मुहूर्त मे जो भी पूर्व मुख होकर, कटीभर जल मे सौ बार हनुमान चालीसा का पाठ करता हैँ वह सभी तरह के बंधनों  से मुक्त हो जाता हैँ, और संतो के ही अनुसार इस पाठ को सत प्रतिशत सही उच्चारण करते हुए हनुमान जी का सच्चे मन से सुमिरण कर पाठ करे तो भी सारे बंधन से मुक्ति मिल जाती हैँ
          पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने जिज्ञासा रखी की बाबाजी, केंवट भगवान राम से कहते हैं आपका मिलना ही सबसे बड़ा सुख और आपसे बिछुड़ना ही सबसे बड़ा दुख है। कृपया केंवट के इस भाव को समझाने की कृपा करेंगे। बाबा जी ने बताया कि रामचरितमानस का यह सबसे अधिक मधुर प्रसंग हैँ जिसमें केवट भगवान श्री राम जी को पाने के लिए कछुए योनि को त्याग कर मनुष्य जन्म लेते हैं क्षीर  सागर में रहकर प्रभु श्री राम जी के पैर को पखार नही पाने के कारण उन्होंने  केवट रूप में जन्म लिया, और श्री राम जी से अपने कुल का भी उद्धार कराया और स्वयं का भी उद्धार किया, अपने पूर्वजों के लिए तर्पण भी करवाया और श्री राम जी के पैर भी पखारे, भगवान श्री राम जी से कभी भी दूर नहीं होना चाहते थे इसलिए वे चाहते थे कि श्री राम प्रभु उनकी नाव में अधिक से अधिक समय तक  रहे इसीलिए वे बार-बार नौका को आधे नदी में ही लौटा लौटा कर ले आते थे, इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास जी ने इस बात को रामचरितमानस पर उद्धृत किया
    रामकुमार साहू जी  ने   जिज्ञासा रखी कि श्री मद्भागवत कथा का सात ही दिनों के आयोजन का क्या महत्व है, प्रकाश डालने की कृपा करें 


बाबा जी ने बताया कि श्रीमद् भागवत के महत्व को स्पष्ट करते हुए बताया कि यह बिल्कुल ही नहीं है कि श्रीमद भगवत कथा सात ही दिन की हो यह एक माह से लेकर के 108 दिन की भी हो सकती है यह तो हमारे आयोजन पर और भगवान के सुमिरन पर निर्भर करता है क्योंकि परीक्षित के पास केवल 7 दिन का ही समय था इसलिए सुकदेव महाराज जी ने उन्हें 7 दिनों में भागवत कथा सुनाएं हम इसे अपने समय एवं सुविधा के अनुसार आयोजन को 7 दिन का 9 दिन का  या 1 महीने का या तो 108 दिन का भी करा सकते हैं
     इस प्रकार आज का सत्संग संपन्न हुआ

रिपोर्ट // नरेन्द्र विश्वकर्मा