वेदों के अनुसार 49 प्रकार की होती है वायु ,, सन्त राम बालक दास

वेदों के अनुसार 49 प्रकार की होती है वायु ,, सन्त राम बालक दास
वेदों के अनुसार 49 प्रकार की होती है वायु ,, सन्त राम बालक दास


पाटेश्वर धाम के संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा उनके विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुप में प्रातः 10:00 से 11:00 तक 1 घंटा ऑनलाइन सत्संग का आयोजन रोज होता है जिसमें भक्तगण समसामयिक,धार्मिक, पारिवारिक और सभी तरह के अन्य विषय में अपनी जिज्ञासाओं को बाबा जी के समक्ष रखते हैं और उसका समाधान प्राप्त करते हैं एवं अपनी ज्ञान को बढ़ाते हैं 
        आज तपन द्वेवेदी दिल्ली के  द्वारा जिज्ञासा रखी गई  की 
हरी प्रेरित  तेही अवसर चले मरुत उनचास 
अट्टहास करी गरजा कपि बढ़ी लागि आकाश
 सुंदरकांड के इस चौपाई पर प्रकाश डालें बाबाजी, बाबा जी ने बताया कि रामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदास जी ने यहां पर 49 पवनों को वर्णित किया है यह 49 पवन क्या है इसे हम जानने का प्रयत्न करते हैं वायु मंडल में  जो वायु चलती है वह एक प्रकार की नहीं होती हर आभा का अपना वायु प्रवाह होता है जैसे आकाश में चलने वाली वायु धरती पर चलने वाली वायु अंतरिक्ष में चलने वाली वायु, नभ मंडल में चलने वाली वायु ब्रह्मांड में चलने वाली वायु नक्षत्र को चलाने वाली वायु ग्रहों को चलाने वाली वायु इस तरह से वायु के प्रवाह के साथ रूप है जी के नाम है प्रवाह अवह, उद्धव संवह विवह परिवह और परवाह, इन सभी वायु के नाम के साथ ही इनका कार्यस्थल भी अलग अलग है और इसके गुण भी अलग-अलग है प्रभाव पृथ्वी पर, आवह सूर्य मंडल में,उद्धव चंद्र मंडल में, संवह नक्षत्र मंडल में, विवह गृह मंडल में, परिवह सप्त ऋषि मंडल में और परवाह ध्रुव चक्र को चलाने वाली पवन है, और भूलोक की सातों दिशा इसके साथ चरण है, प्रत्येक वायु प्रवाह का सात रूप हैँ इस तरह से उनके कूल 49 रूप हुए और जब हनुमान जी ने लंका दहन किया तो सभी वायु अपना अपना विकराल रूप लेकर लंका दहन के लिए हनुमान जी के साथ प्रकट हुए


        रामफ़ल जी ने जिज्ञासा रखी की  तुलसी इस संसार में पांच रत्न हैं सार हरी भक्ति साधु मिलन दया दान उपकार इस पर प्रकाश डालने की कृपा हो भगवन, इन पंक्तियों के भाव को स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि संसार में पांच रत्न हे भगवान की भक्ति, क्योंकि इसके बिना हमारा जीवन ही व्यर्थ है  साधु का मिलना क्योंकि इनके मिलन के बिना हमारा जीवन पशु जीवन के समान है, दया का भाव  आपके हृदय में होना ही चाहिए इसके बिना जीवन में करुणा का प्रेम भाव नहीं आता, और दान, दान का मतलब धन लूटाना नहीं है दान किसी भी चीज का किया जा सकता है आपके पास जो भी है आपके पास यदि विद्या का  ज्ञान है तो आप उसे दान करिए परोपकार है तो उसे दान के करिये और उपकार, जब भी जैसा भी अवसर मिले सभी की सहायता अवश्य करना चाहिए दीन दुखी का ख्याल रखना चाहिए यही उपकार की भावना हमारे हृदय में होनी चाहिए
 इस प्रकार आज का सत्संग संपन्न हुआ

             

रिपोर्ट //नरेन्द्र विश्वकर्मा