10 महाविद्या की उपासना का पर्व है गुप्त नवरात्रि , जानिये श्री राम बाल दास जी से कब होती है गुप्त नवरात्रि,

10 महाविद्या की उपासना का पर्व है गुप्त नवरात्रि , जानिये श्री राम बाल दास जी से कब होती है गुप्त नवरात्रि,

 

दस महाविद्या की उपासना का पर्व है गुप्त नवरात्रि , जानिये श्री राम बाल दास जी से कब होती है गुप्त नवरात्रि,



       सत्संग परिचर्चा में पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने जिज्ञासा रखी थी माघ और आषाढ़ माह की नवरात्रि को गुप्त नवरात्रि क्यों कहते हैं इन नवरात्रियों की क्या विशेषता है तथा इसमें की जाने वाली दस महाविद्याओं की देवी उपासना क्या है ? कृपया प्रकाश डालने की कृपा करेंगे। बाबा जी ने बताया कि, माघ के महीने शुक्ल पक्ष एकम से गुप्त नवरात्रि अनुष्ठान के रूप में मनाया जाता है वैसे तो हिंदू  धर्म पुराणों में इसे बहुत ही गुप्त रखा गया है, क्योंकि नवरात्र काल में जो भी ब्राह्मण यजमान के घर जा कर पूजा पाठ करवाते हैं उन्हें स्वयं की आराधना के लिए समय ही नहीं मिल पाता, उन्हें भी स्वयं की उर्जा और साधना हेतु माता के अनुष्ठान की आवश्यकता होती है, बताया जाता है कि एक बार कण्व ऋषि ने माता भगवती की आर्त भाव से आराधना की, और मां ने प्रसन्न होकर फल स्वरूप आर्शीवाद दिया कि  जो भी गुप्त नवरात्रि में  मां की आराधना करेगा वह मां भगवती का आशीर्वाद का भागी होगा 
   शंकर लाल जी ने जिज्ञा सा रखी  की उमा जे राम चरन रत बिगत काम मद क्रोध। निज प्रभुमय देखहिं जगत् केहि सन करहिं बिरोध॥ बाबा जी ने बताया कि  रामचरितमानस का यह बहुत ही मार्मिक दोहा है, शिव जी माता पार्वती से कहते हैं कि जिनका भगवान प्रभु राम में रति हो गया हो, वह संपूर्ण संसार में ही प्रभु को देखता है तो उस भक्त में काम क्रोध और लोभ रह ही  नही जाता क्योंकि संपूर्ण जगत में जब वह प्रभु की छवि देखेगा तो द्वेष भाव तो होगा ही नही
        पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने जिज्ञासा रखी की बाबाजी, गीता के पंचम अध्याय में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि इंद्रिय और विषयों के संयोग से उत्पन्न होने वाले सांसारिक भोग दुख के कारण हैं। कृपया सविस्तार समझाने की कृपा करेंगे। बाबा जी ने बताया कि यह भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण के द्वारा कहा गया शाश्वत सत्य है जिसमें भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि भोग जो है वह दो प्रकार का होता है, जब मनुष्य इंद्रियों से भोग भोगता है और उसे मन से नही बंधता तब वह, भोग भोगता हुआ भी योगी, और जब इंद्रियों द्वारा किया गया कार्य विषय आसकेक्त हो गया हो तब वह दुख का कारक बन जाता है, श्री कृष्ण जी ने स्पष्ट किया है कि केवल इंद्रियों द्वारा भोगा गया भोग दुख का कारक नहीं होता लेकिन जब वह विषयों से आसक्त हो जाता है तभी वहां दुख का कारण बनता है
छत्तीसगढ़ के तीर्थ पाटेश्वर धाम में बन रहे विश्व के अद्वितीय मां कौशल्या मंदिर तीर्थ के निर्माण हेतु आज भी बढ़-चढ़कर लोगों ने प्रतिवर्ष 1000 देने का संकल्प कर सदस्यता ग्रहण की

Narendra vishwakarma