अपने इंद्रियों को वश में रखने हेतू सात्विक आहार करें -संत श्री राम बालक दास
श्री रामबालक दास जी पाटेश्वर धाम छत्तीसगढ़ के द्वारा प्रतिदिन प्रातः 10 बजे उनके विभिन्न वाट्सएप ग्रुपों में ऑनलाइन सत्संग का आयोजन किया जाता है, जिसमें हजारों भक्तगण एकसाथ जुड़कर बाबाजी से सीधे बातचीत करके अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करते हैं
आज की परिचर्चा में पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने विषय रखा कि इस कोरोना काल मे हमने कई नजारे देखे ईश्वर ने मानव तन की रचना आत्मशुद्धि के लिए है फिर भी उसके मन मे घृणित कार्य करने की इच्छा क्यों बलवती हो जाती है इस पर प्रकाश डालने की विनती की, इसे स्पष्ट करते हुए बाबाजी ने बताया कि , कई लोगों ने तो जनसेवा किया तो कई लोगों ने सेवा सामग्री लुटा अलग अलग प्रकार के कार्य हुए ,हम यह बिल्कुल नहीं कह सकते कि कोरोना काल मे सब गलत ही हुआ बल्कि यह कह सकतें है कि लॉकडाउन में अच्छे कार्य ही ज्यादा हुए, प्रकृति पवित्र हुई है पर्यावरण शुद्ध हुआ है , कई लोगों ने नशा-व्यसन छोड़ा । निकृष्ट भाव को रोकने के लिए आप जहाँ रहते हैं उसके परिवेश को पवित्र रखे,अपने रस इंद्रियों को वश में रखने के लिए भोजन को सात्विक रखें ,अपने मन को नियंत्रित कीजिये जिससे वह मनोभाव को निकृष्ट न करके उत्कृष्ठ कर सकें।
पाठक परदेसी जी ने
कबीर सागर लहरी की , मोती बिखरे आय । बगुला परख न जानई, हंसा चुनी चुनी खाय।
संत कबीर जी की वाणी पर प्रकाश डालने की विनती की बाबा जी ने संत कबीर की इस वाणी को स्पष्ट करते हुए बताया कि जैसे सद्गुरु अपने शिष्यों को चुन चुन के ज्ञान की अच्छी बातें बता रहे है , एक शिष्य होता है जो ध्यान से एक एक शब्द को ग्रहण करता है लेकिन एक होता है जो भावार्थ ना समझते हुए केवल सुन रहा है , ऊंघ रहा है तो कबीर दास जी ने इस पंक्ति में दो प्रकार के शिष्यों के वर्णन किया है
रामफल जी बकेला ने निम्न चौपाई को स्पष्ट करने की विनती बाबाजी से की
जहां सुमति तहां संपति नाना। जहां कुमति तहां बिपति निदाना।। इस पर प्रकाश डालते हुए बाबा जी ने बताया कि सुमति- कुमति सबके पास है लेकिन उसका कितना प्रतिशत है वो ध्यान देना चाहिए कुमति को अपने ऊपर हावी नही होने देना चाहिए जैसे हमारे शरीर मे अमृत और विष दोनों है अगर हम विष को निकाल दे या दोनों में से किसी भी को तत्व को निकाल देंगे तो हम मर जायेंगे इसी लिये दोनों की मात्रा बराबर रखा गया है तभी हम जीवित है , इसी प्रकार कुमति हमारे जीवन मे आये भले ही किंतु हमे उससे बचना है और सुमति को जितना हो सके उसका विस्तार करना है । सुमति हो तो गरीब भी अमीर हो जाता है ,मूर्ख भी ज्ञानी हो जाता है और अगर कुमति हो ज्ञानी भी मूर्ख हो जाता है इसीलिए सुमति का आदर करें , सावधानी से उसका परिपालन करें और कुमति को सावधानी से अपने जीवन से हटाए।