साभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति रहस्यमय लोक से

साभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति रहस्यमय लोक से
साभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति रहस्यमय लोक से

साभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति रहस्यमय लोक से

 

सभी को समझा-बुझाकर भेज दिया। दोपहर चिलचिलाती धूप में सूचना दी--1:00 बजने वाला है।एकाएक मेरे मुंह से निकला मैं गुफा में जा रहा हूं। मुझे कोई भी किसी भी क्षण पुकारने की कोशिश न करें। वह बोला--ऐसा क्यों? बस ऐसे ही। कब निकलेंगे--दिनांक 29-6-2003 अमावस्या दिन रविवार संध्या 5:00 बजे। विनोद अचंभित हो गया। वह बोला--ऐसा मत करें। अब आप जो कहेंगे, वही हम लोग करेंगे। मैंने कहा तुम्हें जो करना है, वह करो। क्या सुबह-शाम, खाना, दूध वगैरह लेंगे न। नहीं मैं कुछ नहीं लूंगा, न ही दरवाजा खोलना। मैं स्वयं से मिलने जा रहा हूं। स्वयं से मिलने पर व्यक्ति को क्षुद्ध -प्यास नहीं सताती है। मैं गुफा में प्रवेश कर दरवाजा अंदर से बंद कर दिया। 

अपने मन का निरीक्षण करने लगा। निरीक्षण करते ही मन रुक गया।"स्व"मे लीन रहा‌।  

ध्यान  टूटा, बाहर से आवाज आ रही है। समझ में आया-इंद्र देवता का आगमन हुआ है। रिमझिम वर्षा हो रही थी। बादल गड़ गड़ा रहे थे। ऐसा क्यों? क्या इंद्रदेव स्वागत कर रहे हैं? मेरी स्मृति पीछे को खींच गई--जब मैं प्रथम बार--दिनांक 12 -4- 2001के संध्या 4:00 बजे रामेश्वरम पहुंचा, इंद्र देवता ने बारिश से स्वागत किया।वहां की जनता बोली कि यहां इस प्रकार वर्षा कभी नहीं होती है। दिनांक 16-08 -2001 को एकलव्य की दशमी पर इंद्रदेव का आगमन हुआ। मां कामाख्या के बुलावे पर दिनांक 03-04 -2002 को गोहाटी 7:00 बजे प्रातः उत्तरा तो इंद्रदेव स्वागत में खड़े थे। दिनांक 19-10-2001 दिन शुक्रवार नवरात्र चल रहा था सभी कुछ ठीक-ठाक था कि अचानक इंद्रदेव आश्रम के दक्षिण का कैनाल अर्धरात्रि को काट दिया। प्रातः काल पूरा आश्रम पानी से भर गया था। नहर पूरे जोर पर थी। दिन के 10:00 बजे लगभग पुलिस की मदद से नहर बंद की गई। पानी चारों तरफ फैल गया। हमारे गुफा में भी प्रवेश कर गया। कमल जैन तीन-चार आदमियों को लेकर पानी निकाल रहे थे। कि एक अजनबी आदमी कमल जैन का साथ देने लगा। वह पानी बाहर निकालने के बदले अंदर ही डाल रहा था। मैंने आकर देखा तो वे बोले गुरुदेव पानी घटने के बदले बढ़ता जा रहा है। मैं इंद्र को देखकर पहचान गया बोला---'आप इसे पकड़ कर रखें मैं आ रहा हूं।"आकर पूछा--वह आदमी कहां गया।। सभी खोजने लगे। बोले--गुरुदेव अभी यहां था। उसे हम लोग ने कभी नहीं देखा था। वह तो एकाएक अंतर्ध्यान हो गया।

दिनांक 23-03 -2003 को सुबह 5:00 बजे द्वारिका प्रथम बार पहुंचा। स्टेशन से बाहर निकलते ही इंद्रदेव स्वागत किए। इसी वर्ष दिनांक 4 से दिनांक 6 2003 तक स्वामी आत्मा दास का निर्माण दिवस का कार्यक्रम चल रहा था। दिनांक 05 -06-2003 को गुरुवार था। गंगा के किनारे वाराणसी में सुबह शिलान्यास संपन्न हुआ। दिन भर दिव्य गुप्त विज्ञान की कक्षाएं चली। सत्संग वगैरह संपन्न हुआ। शाम को 8:00 बजे आशा जी आकर बोली, गुरुदेव पुष्पा का स्वास्थ्य खराब हो गया है। मैंने पूछा क्या कारण है? वह बोली---गर्मी के चलते। मैंने कहा कि देखूं कूलर वगैरह का प्रबंध करने को कहा था। परंतु ऐसा नहीं कर पाए लोग। मैं उसे तत्काल देखने छत पर गया। आचार्यों से शांति पाठ करने को कहा। तथा मेरे मुंह से निकला--इंद्र! तुम्हारी हरकत ठीक नहीं है। फिर मैं बिस्तर पर चला गया। आधा घंटा के अंदर शीतल बयार बहने लगी। हम लोगों के कार्यक्रम तक शीतल हवा चलती रही। दिनांक 09-06- 2003 को सभी लोग लौटने तक पुनः गर्मी आ गई। मैं तो वहां 15 तारीख तक रहा।

ये सभी दृश्य मेरे मन- मस्तिष्क में घूम रहे थे। फिर न मालूम कब खो गया। वापस आया तो सुबह के 4:00 बज रहे थे। मेरे मन में आया कि क्या आप पंडित गोपीनाथ कविराज के द्वारा लिखित पुस्तक"मनीषी की लोक यात्रा'में वर्णित तथ्य सही है। उसका अन्वेषण होना चाहिए। चलचित्र के सदृश्य दृश्य दृष्टिगोचर होने लगे। जून 2001 का दिन था। मैं बरईपुर आश्रम में बैठा था।कुछ लोग मिलने आए तथा अपना परिचय छिपा कर बोले कि महाराज यह 2 माह से अस्वस्थ है। इनका इलाज कराया गया। बहुत साधु-संतो को दिखाया गया। यह ठीक नहीं होते हैं।मैंने अनायास कह दिया कि रोग का इलाज तो अस्पताल में होता है। यह आश्रम है। अच्छा आप लोग कल सुबह 8:00 बजे आइएगा। वे लोग बिना मन के चलने लगे। उनके साथ एक औरत भी थी।उसे बुलाकर मैंने धीरे से कह दिया कि तुम रात्रि को सावधान रहना। हो सकता है कि यह तुम्हारे साथ मार-पीट करें।

दूसरे दिन वही दो आदमी एवं एक औरत आई। मैंने पूछा--क्या हुआ? दूसरा आदमी अहंकार में बोला--कुछ भी तो नहीं। मैंने कहा यह मार-पीट नहीं किया? नहीं जी नहीं। क्या यह बिना गुरु धारण किए पूजा-पाठ कर रहा था? नहीं कभी पूजा-पाठ नहीं किए। हर प्रश्न का उत्तर अहंकार पूर्ण नकारात्मक था।मैं उसे डांटते हुए कहा कि तुम यहां से चले जाओ। द्वार खुला है। तुमसे कुछ लिया नहीं है। तुम लोग झूठ बोलते हो। उसके साथ आई औरत घबरा कर बोली--महाराज! यह जो उत्तर दे रहे हैं, मेरे जेष्ठ है। उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पुलिस अधिकारी हैं। यह मेरे पति हैं। यह भी मिलिट्री के वरिष्ठ अधिकारी हैं। तब मैं क्या करूं?वह बोली महाराज इन्हें विभिन्न अस्पतालों एवं साधु बाबा को दिखाया गया। निराशा ही हाथ लगी। इससे यह लोग घबराए हैं।एक पंडित गोपीनाथ कविराज द्वारा लिखित कई पुस्तकें खरीद कर लाए तथा मंत्र जाप कर जब मंत्र का हवन करने लगे, तब हमारी बाउंड्री के बाहर से भी इनके समानांतर कोई मंत्र बोलने लगा। वह भी हवन में शरीक हो गया। हम लोग डर गए। सोचने कि ये न सुने इसलिए हम लोग भी जोर-जोर से मंत्र का उच्चारण करने लगे। हवन समाप्ति के बाद से पागल की तरह बात करने लगे।