बालोद ग्यारहवी शताब्दी गोंडवाना राज

बालोद ग्यारहवी शताब्दी गोंडवाना राज
बालोद ग्यारहवी शताब्दी गोंडवाना राज

 

बालोद ग्यारहवी शताब्दी गोंडवाना राज"  का पुरात्तव धरोहर रख रखाव  का अभाव '''

ग्यारहवी शताब्दी का गोंडवाना राज" बालागढ़ (बालोद) अपने पूर्ववर्ती काल में गौरवशाली व समृद्ध राज्य रहा है, जिसके अवशेष आज भी भग्नावशेष अवस्था में विद्यमान हैं ।

 

 बालोद बालागढ़ :-  (बालोद) का सम्बन्ध गढ़ा, मण्डला से रहा है तत्कालीन समय में जब इस देश में राजतंत्र प्रचलित था तब बालोद का परगना राज्य बावनगढ़ और छत्तीसगढ़ के मध्य हुआ करता था ।

तथा सीमावर्ती क्षेत्र होने के कारण हमेशा युद्ध की विभीषिका से पीड़ित व प्रभावित बालोद गोंडवाना परगना राज तहस-नहस हो कर रह गया । प्राचीन काल की स्मृतियां आज भी मूर्तियों ,खंडहरों से परिलक्षित होता है, ।

बालोद के आसपास अनेक गांवों ,कस्बों में मिले गोंडकालीन प्राचीन मूर्तियों को बालोद नगर के बूढ़ा तालाब के पास खुला संग्रहालय बनाकर रखी गई है । पर इन प्राचीन धरोहरों की सुध लेने वाला कोई नहीं है , ।

प्रदेश का पहला गोंड कालीन संग्रहालय

प्रदेश का पहला गोंड कालीन संग्रहालय वर्तमान में जर्जर स्थिति में है । प्रदेश का अति महत्वपूर्ण गोंडवाना संग्रहालय में संग्रहित मूर्तियां जर्जर हो गई है ।

    शासन,प्रशासन सहित राज्य के पुरातत्व विभाग को इस सम्बन्ध में समय समय पर जानकारी दी गई ,पर अब तक इसके सुधार पर किसी भी प्रकार ध्यान नही दिया गया ।

         यहां की अव्यवस्था को देख वीरान पड़े इस संग्रहालय तक सैलानी भी नही आते ।

   प्रदेश का प्रथम मुक्ताकाश संग्रहालय जो गोंड कालीन मूर्तियों का अनूठा संग्रह है उचित देखभाल के अभाव में यह संग्रहालय पूरी तरह जर्जर की स्थिति में है ।

    संग्रहालय के भीतरी भाग में जहां लोग घूम-घूमकर मूर्तियों का अवलोकन करते थे , वहां जंगल बनकर रह गया है । वर्ष 1991- 92 में पुरातत्व विभाग और स्थानीय नगर पालिका परिषद द्वारा बालोद नगर के बुढा तालाब के पार में एक भव्य खुला संग्रहालय का निर्माण करके बालोद तथा आसपास के गांव में पड़ी गोंड कालीन प्राचीन प्रतिमाओं को सहेज कर रखी गई थी ।

    ज्ञात हो कि तत्कालीन समय में इन प्राचीन प्रतिमाओं की तस्करी होने लगी थी। तस्करों से इन प्राचीन प्रतिमाओं को बचाने व मूर्तियों को समुचित संरक्षण व संवर्धन के लिए बालोद में एक अदद संग्रहालय की स्थापना की गई जिसमें 105 मूर्तियों को एकत्रित किया गया । संग्रहालय में रखी सभी मूर्तियां 12 वीं शताब्दी में निर्मित गोंड कालीन सभ्यता से ओतप्रोत है तथा सभी प्रतिमाएं दर्शनीय है।

     

     संभवत बालोद का गोंड कालीन खुला संग्रहालय प्रदेश में और कहीं नहीं है जहां 12 वीं शताब्दी के गोंड शासकों के युद्ध कला कौशल ,राजतंत्र ,प्राचीन कला संस्कृति और उनके रहन सहन की व्यथा कथा इन प्रतिमाओं में प्रदर्शित है ।

       मुक्ताकाश संग्रहालय में रखी मूर्तियों के अवलोकन मात्र से गोंड राजाओं की वीरता, साहस और कला के प्रति समर्पण की भावना जागृत होती है । संग्रहालय में भगवान बुद्ध के उपासकों की भी प्रतिमा दर्शनीय है जिसे देखने लोग दूर दूर से यहां आते थे ।

               ** विशेष् **

वर्तमान में छत्तीसगढ़ शासन के मुख्य सचिव विवेक ढांड जब दुर्ग जिले के कलेक्टर थे तब उन्होंने भी इस खुले संग्रहालय का अवलोकन कर यहां स्थापित मूर्तियों को सहेज कर रखने की बातें कही थी और उन्होंने भी इस संग्रहालय को और अधिक विकसित करने की बातें कही थी ।

।।।मुख्य द्वार में ताला बंद ।।

 

 

    बालोद के इस खुला संग्रहालय की कोई सुध लेने वाला नहीं है वर्ष 91--92 में निर्माण अवधि में यहां के दीवारों का रंग रोगन किया गया था ,तब से आज तक वैसे ही है कभी इसकी पुताई तक नही की गई ।

     इसकी दशा सुधारने कई बार पुरातत्व विभाग को जानकारी दी गई परंतू विभाग द्वारा किसी भी प्रकार कार्य नहीं किया ।

      बालोद जिला बनने के बाद जिला पुरातत्व संघ बालोद द्वारा यहां मूर्तियों को संरक्षित करने की योजना बनी थी प्राकलन भी बनाया गया और शासन को प्रेषित की गई लेकिन अब तक शासन द्वारा इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया 

 वरिष्ठ  क्षेत्रीय अन्वेषक  अरमान अश्क ने बताया कि स्थानीय नगर पालिका द्वारा यहां आसपास बागवानी की देखरेख के लिए एक चौकीदार रखा गया है वह भी नाम मात्र है ।

संग्रहालय के मुख्य द्वार में तो हमेशा ताला बंद रहने से दूर दराज से आए लोगों को संग्रहालय का प्रवेश द्वार भी तलाशना पड़ता है, यहां कोई देख-रेख करने वाला भी नहीं है ।

  संग्रहालय पूरी तरह उपेक्षा का शिकार हो के रह गया है । जिससे गोंड कालीन सभ्यता की मूर्तियां जर्जर होने लगी हैं व विलुप्त के कगार में है ।

(अरमान अश्क   क्षेत्रीय अन्वेषक, बालोद )

खास रिपोर्ट :- अरुण उपाध्याय बालोद ,, मो न :- 9425572406