यज्ञों में प्रमुख है अग्निहोत्र - रामबालकदास महात्यागी

यज्ञों में प्रमुख है अग्निहोत्र - रामबालकदास महात्यागी

वेदोक्त विधियों से अग्नि में दी गयी आहुति सूर्य को प्राप्त होती है। सूर्य से मेघ द्वारा वर्षा होती है और वर्षा होने से अन्न पैदा होता है तथा अन्न से प्रजा उत्पन्न होती है। अन्न से ही सभी प्राणियों की उत्पत्ति होती है।
        पाटेश्वरधाम के आनलाईन सतसंग में पुरूषोत्तम अग्रवाल की जिज्ञासा पर अग्नहोत्र विधान का महत्व बताते हुये बाबा रामबालकदास जी ने कहा कि जिस प्रकार नदियों में सागर, मनुष्यों में राजा, छंदों में सावित्री छंद मुख्य है उसी प्रकार यज्ञों में अग्निहोत्र प्रमुख है। अग्नहोत्र करने से मानसिक शांति और आनंद की अनुभूति होती है। वायुमण्डल पुष्टिदायक बनता है। घर का वातावरण सर्वदा शुद्ध शांत प्राणवायुदायक होता है। ऐसे वातावरण में मन जल्दी स्थिर एवं एकाग्र होता है। मन का तनाव दूर होता है। रक्त संचार सुगमता से होता है। हानिकारक कीटाणु नष्ट होते हैं।


         बाबा जी ने कहा अग्नि में हवन करना, होता बनकर उपस्थित होना, अग्नि का पूजन, अग्नि की स्थापना, दीप जलाना यह सब अग्निहोत्र के प्रकार हैं। प्रत्येक घर में अग्निहोत्र का होना आवश्यक है। लोग कहते हैं ब्राह्मण वही जिसके घर में अग्नहोत्र हो हम तो कहते हैं मनुष्य वही जिसके घर में अग्निहोत्र हो। धूपदान में कण्डा जलाकर थोड़ा गूगल, लोभान, घी, चाॅवल डालकर मंत्र से घी की आहूति दें। सभी लोगों को महिने में, पंद्रह दिनों में, सप्ताह में या प्रतिदिन श्रद्धानुसार हवन अवश्य करना चाहिये। इसका धुॅआ घर में फैलने से वातावरण शुद्ध होगा विचारों में पवित्रता आयेगी। बच्चे संस्कारित होंगे। बाबा जी ने कहा पहले प्रत्येक घर में चौबीसों घण्टे अग्नि का वास होता था चाहे चूल्हे की आग के रूप में हो या जलते दीपक के रूप में। दोनों समय की अग्नि की स्थापना कर भोजन तैयार किया जाता था परंतु अब यह परंपरा लुप्त हो गयी है। अग्नि के छ: मुख तथा सात जिव्हा होते हैं सबका अलग - अलग विश्लेषण है। अग्नि छ: जगह पर स्थापित रहती है ज्ञानेन्द्रिय के रूप में मस्तिष्क में, हृदय देश में, जठराग्नि के रूप में पेट में, गर्माहट के रूप में पैर में, प्रत्यक्ष अग्नि तथा सूर्य का ताप। अग्निहोत्र करने से शत्रु भी नष्ट होते हैं इसीलिये सभी को अग्निहोत्र होना आवश्यक है।
 

रिपोर्ट //नरेन्द्र विश्वकर्मा