चीन की सीमा पर भारत की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स का क्या है किरदार?

चीन की सीमा पर भारत की स्पेशल फ्रंटियर फोर्स का क्या है किरदार?

लद्दाख के पैंगोंग लेक के दक्षिणी किनारे से लगे इलाके में भारत के 'स्पेशल फ्रंटियर फोर्स' की विकास रेजिमेंट के कंपनी लीडर नीमा तेंजिन का शनिवार रात एक सैनिक अभियान के दौरान मौत हो गई। आफिसर नीमा तेंजिन का तिरंगे में लिपटा शव मंगलवार सुबह लेह शहर से छह किलोमीटर दूर चोगलामसार गांव लाया गया।

 

तिब्बत की निर्वासित-संसद की सदस्य नामडोल लागयारी के मुताबिक, यहां पर तिब्बती-बौद्ध परंपराओं के मुताबिक उनके अंतिम संस्कार की तैयारियां जारी हैं।

नामडोल लागयारी के अनुसार, कभी स्वतंत्र-मुल्क लेकिन अब चीन के क्षेत्र तिब्बत के "नीमा तेंजिन भारत के स्पेशल सैन्यदल 'स्पेशल फ्रंटियर फोर्स' (SFF) की विकास रेजिमेंट में कंपनी लीडर थे और दो दिन पहले भारतीय टुकड़ी और चीनी पीपल्स लिबरेशन आर्मी के बीच पैंगोंग झील क्षेत्र में हुई भिड़ंत में उनकी जान चली गई।"

शनिवार की घटना में एसएफएफ के एक अन्य सदस्य घायल भी हो गए थे। भारतीय फौज ने इस मामले पर किसी तरह की टिप्पणी नहीं की है। हां, 31 अगस्त को भारतीय फौज ने एक बयान में एक घटना का जिक्र किया था। भारतीय सेना के मुताबिक, इस घटना में चीनी फौज ने पूर्वी लद्दाख़ में उकसाऊ सैन्य गतिविधियां कर यथास्थिति को बदलने की कोशिश की थी।

भारतीय सेना के प्रवक्ता कर्नल अमन आनंद की तरफ से जारी बयान में कहा गया था कि पैंगगॉंग झील के दक्षिणी तट पर की गई चीनी फौज की गतिविधि को भारतीय टुकड़ियों ने शुरू होने से पहले ही रोक दिया और हमारी स्थिति को कमजोर करने और जमीनी हालात को बदलने की चीन की कोशिश को नाकाम कर दिया।

क्या है एसएफएफ
भारतीय सेना के पूर्व कर्नल और रक्षा मामलों के विशेषज्ञ अजय शुक्ला ने अपने ब्लॉग में कंपनी लीडर नीमा तेंजिन और स्पेशल फ्रंटियर फोर्स का जिक्र किया है। मगर साथ ही कहा है कि कंपनी लीडर नीमा तेंजिन के शव को परिवार को सौंपते हुए घटना को 'गुप्त रखने की हिदायत' दी गई थी।

दरअसल, 1962 में तैयार की गई स्पेशल टुकड़ी एसएफएफ भारतीय फौज की नहीं बल्कि भारत की गुप्तचर एजेंसी रॉ यानी रिसर्च एंड एनालिसिस विंग का हिस्सा है। इस यूनिट का कामकाज इतना गुप्त है कि शायद फौज को भी मालूम नहीं होता कि ये क्या कर रही है। ये डायरेक्टर जनरल ऑफ सिक्यॉरिटी के माध्यम से सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करती है; इसलिए इसके 'शौर्य की कहानियां' आम लोगों तक नहीं पहुंच सकतीं।

आईबी के संस्थापक डायरेक्टर भोला नाथ मल्लिक और दूसरे विश्व युद्ध के सैनिक और बाद में ओडिशा के मुख्यमंत्री रहे बीजू पटनायक की सलाह पर भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने तिब्बती गुरिल्लाओं की ऐसी टुकड़ी तैयार करने की सोची जो हिमालय के ख़तरनाक क्षेत्र में चीनियों से लोहा ले सके।

भारत से जंग होने की सूरत में चीनी सीमा में घुसकर ख़ुफिया कार्रवाइयां करने के इरादे से तैयार की गई एसएफएफ के पहले इंस्पेक्टर जनरल मेजर जनरल (रिटायर्ड) सुजान सिंह उबान थे। सुजान सिंह उबान दूसरे विश्व युद्ध के समय ब्रितानी भारतीय सेना के 22 माउंटेन रेजिमेंट के कमांडर थे। इस वजह से कुछ लोग एसएफएफ को 'इस्टैब्लिशमेंट 22' के नाम से भी बुलाते थे।

कई ऑपरेशंस शामिल रही है एसएफएफ
लद्दाख, सिक्किम वग़ैरह के तिब्बती मूल के लोग काफी पहले से आधुनिक भारतीय फौज का हिस्सा हैं। सीधे प्रधानमंत्री की देख-रेख में तैयार और इंटेलिजेंस ब्यूरो यानी आईबी का हिस्सा बनाई गई एसएफएफ अब रॉ के अधीन है और इसका हेडक्वॉर्टर उत्तराखंड के चकराता में है।

कहा जाता है कि शुरुआती दौर में अमरीकियों और भारतीय इंटेलिजेंस ब्यूरो के प्रशिक्षकों द्वारा ट्रेन की गई एसएफएफ का भारत ने बांग्लादेश की जंग, कारगिल, ऑपरेशन ब्लू स्टार और दूसरी कई सैन्य कार्रवाइयों में इस्तेमाल किया है। कई लोग मानते हैं कि इसमें शामिल लोग 1950 के दशक के उन खंपा विद्रोहियों के उत्तराधिकारी हैं, जो तिब्बत पर चीनी हमले के ख़िलाफ उठ खड़े हुए थे।

चीन के कब्जे में आने के बाद तिब्बत के नेता दलाई लामा को 1959 में 23 साल की उम्र में वहां से भागकर भारत आना पड़ा था जिसके बाद तिब्बतियों की एक बड़ी आबादी भारत के उत्तर-पूर्व, दिल्ली, हिमाचल और कई दूसरे इलाकों में आबाद है। इनमें से कई लोग ऐसे हैं, जो नीमा तेंजिन और तेंजिन लौनदेन की तरह एसएफएफ का हिस्सा बनते हैं।