भगवत सम्मिलन की उत्कट उत्कंठा ही भक्ति है- मानस पुत्री

भगवत   सम्मिलन की  उत्कट उत्कंठा ही भक्ति है- मानस पुत्री

भगवत   सम्मिलन की  उत्कट उत्कंठा ही भक्ति है।
 मानस पुत्री

 दैनिक सत्संग की परिचर्चा में जुड़ रहे भक्तों के द्वारा किए गए भगवत संबंधी प्रश्नों के उत्तर मानस पुत्री दीदी पुष्पांजलि जी द्वारा ऑनलाइन व्हाट्सएप ग्रुप के द्वारा सत्संग मैं दिया जा रहा है पूज्य दीदी ने कहा जब से प्राणी भगवान का अर्चन स्मरण आरंभ करता है तभी से प्राणी का प्राकृत भाव नष्ट होने लगता है और भगवत स्वरूप भूत अप्राकृत  रसात्मकता आ जाती है   ब्रज कुमारीकाये युगो से श्री कृष्ण प्राप्ति के लिए तप ध्यान कर रही थी बहुत अंशों में  उनका  प्राकृत तत्व नष्ट हो चुका था अप्राकृत रसरूपता  भी उनमे बहुत अंशो मे आ गयी थी  ।   तथापि अभी वह सब अपूर्ण ही था भगवत सम्मिलन की उत्कट उत्कंठा  और ध्यान में सम्मिलन   परिरम्यभणादिजन्य रस के  आसवादन से रसमय  देहइंद्रिय मन और बुद्धि की पुष्टि होती है  पूज्य दीदी ने कहा श्री कृष्णा लीला कृष्ण के लिए ही है किसी दूसरे के लिए नहीं है जैसे अग्नि के समान कोई सर्व भक्षी नहीं हो सकता कृष्ण के समान गोवर्धन नहीं उठा सकता रुद्र के समान कालकूट भौजी नहीं बन सकता वैसे ही चीर हरण और रासलीला का भी आचरण कोई नहीं कर सकता यदि मूर्खता से कोई करेगा तो अवश्य ही उसका सर्वनाश हो जाएगा शास्त्र विरुद्ध श्रेष्ठो के चरणों का अनुकरण कदापि नहीं करना चाहिए श्रुति ने कहा है वही कार्य किसी के लिए अदोषावह होता है । ऋषभदेव के लिए अवधूत चर्या   ठीक है परंतु औरों के लिए वही अनुचित है वैसे ही कृष्ण लीला कृष्ण के लिए उत्तम है दूसरों के लिए अनुकरणीय नहीं है दूसरे तो यही शिक्षा ग्रहण कर सकते हैं की परम सुंदरी ब्रज आंगन आए उनके सम्मुख निर्वस्त्र आए तब भी वह ब्रह्मचर्य और मन की स्थिरता को बना करके सुख प्रदान करते रहे