दाई"(11 मई,मातृ दिवस विशेष समर्पित कविता
आर के देवांगन

"दाई"(11 मई,मातृ दिवस विशेष समर्पित कविता)
दाई तोर बर मँय का-का लिखँव
मोला तहिंच ह तो ये लिखे हस ,
का होथे जग, तँय मोला देखाये
तहिं तो मोला भगवान दिखे हस !
मोर म अतेक औकात कहाँ हे
के तोर महिमा के पार ल पाहूँ ,
जतका बताहूँ ओतका ह कम हे
कइसे दूध के करजा ल चूकाहूँ !
तहिं मोर निबंध,कविता,कहानी
ये चारों बेद अउ अट्ठारह पुरान,
नइ जाँनव ये रमायन,गुरुग्रंथ ल
अउ नइ जाँनव बाईबिल,कुरान !
तोर ले उबरगेंव त तिरथ-ब्रत हे
तब अउ हे बाकी के चारों धाम,
सङ्ग म रहिके सेवा नइ करेंव त
अबिरथा हे ये मोर जम्मों काम !
मोर आँखी म दाई-ददा ह झूलै
मिलय इंखरे अँचरा के छंईयाँ,
सबरदिन जतन करे बर मिलय
तुहि मन आवय छंईंयाँ -भूंईंयाँ !
*गौंटनिन देवकुंवर लोधी के लाल*
*राजकुमार 'मसखरे'*
भदेरा/पैलीमेटा,(गंडई)