सीएसव्हीटीयू में नियम विरुद्ध कार्यरत संविदा कर्मचारियों पर कार्यवाही करने से कतरा रहे कुलसचिव

सीएसव्हीटीयू में नियम विरुद्ध कार्यरत संविदा कर्मचारियों पर कार्यवाही करने से कतरा रहे कुलसचिव

*सीएसव्हीटीयू में नियम विरुद्ध कार्यरत संविदा कर्मचारियों पर कार्यवाही करने से कतरा रहे कुलसचिव*

भिलाई ।  छत्तीसगढ़ स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय भिलाई में उड़ रही हैं नियमों की धज्जियाँ। छत्तीसगढ़ राज्य के गठन पश्चात वर्ष 2005 में स्थापित छत्तीसगढ़ स्वामी विवेकानंद तकनीकी विश्वविद्यालय,भिलाई में सर्वप्रथम विश्वविद्यालय के संचालन हेतु किए गए वैकल्पिक चतुर्थ व तृतीय श्रेणी कर्मचारियों की नियुक्ति संविदा वेतनमान पर तो कर दिया गया था। जिसमें तदसमय  प्रचलित संविदा भर्ती नियम 2004 को ताक में रखकर बिना विज्ञापन जारी किए, बिना आरक्षण रोस्टर का पालन किए,बिना चयन प्रक्रिया अपनाए और नियुक्ति आदेश में सेवा अवधि का बिना उल्लेख किए ही कुछ  विशेष लोगों को लाभ पहूंचाने के लिए नियुक्ति आदेश जारी कर दिया गया था, जिसमें बहुत से कर्मचारियों का तो चयनित पद के लायक शैक्षणिक योग्यता भी नहीं था और ना कभी उनके दस्तावेजों का सत्यापन कभी किया गया है।एक कर्मचारी को तो सिधे सहायक ग्रेड-2 के पद पर भी संविदा नियुक्ति दिया गया है। वहीं दूसरे मामले में संविदा भर्ती नियम 2004 के तहत वर्ष 2008 एक वर्ष की सेवा अवधि का संविदा नियुक्ति हेतु विज्ञापन जारी कर कर्मचारियों का भर्ती किया गया जिसमें चयनित कर्मचारियों के लिए नियम विरूद्ध साल दर साल कार्यकाल बढ़ाया जा रहा है।संविदा कर्मचारियों में एक भी कर्मचारी अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति वर्ग से नहीं है। समय के साथ राज्य शासन द्वारा संविदा भर्ती नियम 2004 को विलोपित कर संविदा भर्ती नियम 2012 लागू कर दिया गया परंतु ढर्रे रवैया पर चलते विश्वविद्यालय द्वारा हुए अवैधानिक संविदा भर्ती में नियुक्त दर्जनों कर्मचारियों पर ना कार्यवाही हुआ ना उनके सेवा अवधि संबंधित आदेश नियमानुसार कभी  जारी हो सका और वे आज पर्यंत तक अवैधानिक नियुक्ति पाकर भी संवैधानिक संस्था में कार्यरत हैं। एक आवेदक ने अपना दर्द बयां करते हुए बताया कि उन्होंने उपरोक्त प्रकरण का शिकायत माननीय कुलाधिपति एवं राज्यपाल से भी किया परंतु शिकायत पत्र इन्साफ की दरकार में राजभवन से मंत्रालय व तकनीकी शिक्षा संचालनालय का ठोकर खाते हुए विश्वविद्यालय प्रशासन के हाथों में आ गया और विश्वविद्यालय कुलसचिव उक्त पत्र पर जांच कर कार्यवाही करने के बजाय अपने हाथों में दही जमाकर बैठे हुए हैं। पत्रकारों द्वारा पूछे जाने पर कुलसचिव गोलमोल जवाब देते हैं लगता है मानो वे इतने गंभीर प्रकरण पर कार्यवाही करने के पक्ष में ही नहीं है।