कृषि महाविद्यालय एवं अनुसंधान केंद्र राजनांदगांव के RAWE विद्यार्थियों द्वारा किया गया अजोला उत्पादन तकनीक का प्रदर्शन
संपादक आर के देवांगन
ग्राम धामनसरा मे पंडित शिव कुमार शास्त्री कृषि विश्वविद्याला एवं अनुसन्धान केन्द्र राजनांदगांव के RAWE के छात्रों द्वारा अधिष्ठिता महोदया डॉ. जयालक्ष्मी गाँगुली के मार्गदर्शन मे ग्राम धामनसरा में अजोला उत्पादन तकनीक का प्रदर्शन कर उसके उपयोग तथा लाभ से अवगत कराया गया l
इस उत्पादन प्रदर्शन के दौरान ग्राम धामनसरा के सरपंच लोकेश गंगवीर तथा मुख्य किसान योगेंद्र वैष्णव तथा अन्य किसान शामिल हुए अजोला खेती के बारे में छात्र छात्राओं ने जानकारी दिया अजोला एक पौष्टिक चारा है इसमें प्रोटीन विटामिन खनिज लवण और एमीनो एसिड जैसे पोषक तत्व पाए जाते हैं अजोला खिलाने से पशुओं के दूध में वसा और वसा रहित प्रदार्थ बढ़ता है अजोला खिलाने से पशुओं का शारीरिक विकास अच्छा होता है और पशुओं में बांझपन की समस्या दूर होती है तथा पेशाब में खुन आने के समस्या दूर होती है अजोला की खेती करके किसान कम लागत अधिक बचत कर सकते हैं अजोला का इस्तेमाल जैव उर्वरक के रूप में किया जा सकता है अजोला की खेती से धान की फसल पैदावार में बढ़ोतरी होती है अजोला के कारण धान के खेत में खरपतवार नहीं उगते अजोला की खेती से धान के खेत में सिंचाई के दौरान वाष्पीकरण की दर कम होती है अजोला मच्छरों के प्रजनन को रोकता है इसे मच्छर फर्न भी कहा जाता है अजोला उत्पादन के लिए तकनीकों का इस्तेमाल किया जा सकता है 15-20 सेंटीमीटर गहराई का गड्ढा बनाना चाहिए गड्डे का आकार 4 मीटर लंबा और 1,5 मीटर चौड़ा होना चाहिए गड्डे में प्लास्टिक शीट बिछाकर आस पास के पेड़ पौधे की जड़ों को गड्ढे में जाने से रोकना चाहिए गड्डे में 15/15 किलोग्राम छनी हुई मिट्टी डालनी चाहिए इससे बाद 5 किलोग्राम गोबर और अजोफरट या एसएसपी को 10 लीटर पानी में घोलकर डालना चाहिए तब गड्ढे में पानी डालकर पानी का स्तर 8 सेंटीमीटर कर लेना चाहिए इनके बाद 1/2 किलो ग्राम ताजा और रोगमुक्त अजोला का बीज गड्ढे में डालना चाहिए अजोला 10 दिनो में पूरी तरह से बढ़ जाता है 20 दिनों पूर्ण रूप तैयार किया जा सकता है