*दूग्ध उत्पादन से स्वर रहा हरिश चन्द्र पैकरा का जीवन, घरेलू अवस्थाओं की पूर्ति में मिला सहयोग*

*दूग्ध उत्पादन से स्वर रहा हरिश चन्द्र पैकरा का जीवन, घरेलू अवस्थाओं की पूर्ति में मिला सहयोग*

*राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम से बदल गई हरीश चंद्र पैंकरा की जिंदगी*

*देशी गाय से कर रहे दुग्ध उत्पादन, घरेलू आवश्यकता हो रही पूरी*

       

          मोहला 

 विकासखंड अंबागढ़ चौकी अंतर्गत ग्राम खुर्सीटिकुल, ग्राम पंचायत परसाटोला निवासी श्री हरीश चंद्र पैंकरा की आजीविका में राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम ने उल्लेखनीय परिवर्तन लाया है। हरीश चंद्र पैंकरा विगत कई वर्षों से पशु पालन का कार्य कर अपने परिवार का भरण-पोषण करते आ रहे थे। लेकिन सीमित उत्पादन के कारण उन्हें कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता था।

      पशुधन विकास विभाग से राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम की जानकारी मिलने के बाद हरीश चंद्र ने अपनी देसी नस्ल की गायों में कृत्रिम गर्भाधान कराने का निर्णय लिया। कार्यक्रम के तहत उन्होंने साहिवाल एवं गिर नस्ल के हिमीकृत वीर्य का उपयोग कराया। परिणाम बेहद सफल रहे उनकी गायों से उन्नत नस्ल की बछियाएं (एफ-1 एवं एफ एफ-2) जनरेशन जन्म लेने लगीं। समय के साथ जब ये बछिया गाय बनीं, तो इनके दुग्ध उत्पादन में वृद्धि देखने को मिली। बढ़ते उत्पादन ने हरीश चंद्र पैंकरा के जीवन में महत्वपूर्ण बदलाव लाया।

        अब उन्हें बाहर से दूध खरीदने की आवश्यकता नहीं पड़ती। घर पर ही पर्याप्त मात्रा में दूध उपलब्ध हो रहा है, जिससे उनके परिवार को दही, घी, मक्खन जैसे पौष्टिक खाद्य पदार्थों की नियमित उपलब्धता सुनिश्चित हो रही है। इस प्रकार परिवार के लिए प्रोटीन और पोषण के स्रोत घर पर ही तैयार होने लगे हैं। राष्ट्रीय कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम ने हरीश चंद्र पैंकरा को न सिर्फ आर्थिक रूप से सशक्त बनाया, बल्कि उन्हें पशुपालन के क्षेत्र में उन्नत और वैज्ञानिक पद्धति अपनाने की दिशा में भी आगे बढ़ाया। आज उनकी कहानी ग्रामीण क्षेत्र में पशुधन सुधार का एक प्रेरणादायक उदाहरण बन चुकी है, जो बताती है कि सही जानकारी और तकनीक अपनाने से ग्रामीण आजीविका कैसे मजबूत हो सकती है।