धरती टेर लगा रही,गगन गुहार लगाई वृक्षों को मत काटिये,हमें सदैव सहाय ,पर्यावरण पर वक्ता मंच की ऑन लाईन गोष्टी सम्पन्न

धरती टेर लगा रही,गगन गुहार लगाई वृक्षों को मत काटिये,हमें सदैव सहाय ,पर्यावरण पर वक्ता मंच की ऑन लाईन गोष्टी सम्पन्न
धरती टेर लगा रही,गगन गुहार लगाई वृक्षों को मत काटिये,हमें सदैव सहाय ,पर्यावरण पर वक्ता मंच की ऑन लाईन गोष्टी सम्पन्न

"धरती टेर लगा रही,गगन गुहार लगाय वृक्षों को मत काटिये,हमें सदैव सहाय" पर्यावरण पर वक्ता मंच की ऑनलाइन काव्य गोष्ठी सम्पन्न-

रायपुर//वक्ता मंच की ऑनलाइन काव्य गोष्ठी सम्पन्न हुई।वक्ता मंच के अध्यक्ष राजेश पराते ने जानकारी दी है कि गूगल मीट पर आयोजित इस गोष्ठी में प्रदेश भर से 50 से अधिक कवियों ने भाग लिया।सरस्वती वंदना से आरम्भ हुई इस गोष्ठी का प्रभावी संचालन वक्ता मंच के संयोजक शुभम साहू द्वारा किया गया।राजिम क्षेत्र के वरिष्ठ साहित्यकार तुकाराम कंसारी ने काव्य गोष्ठी की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए खत्म होते वनों,बढ़ते प्रदूषण और वृक्षो की अंधाधुंध कटाई पर गहरी चिंता व्यक्त की।वरिष्ठ कवि सुनील पांडे जी की इन विचारोत्तेजक पंक्तियों ने पर्यावरणीय चिंताओं को रेखांकित किया:- जब सूखे का स्वाद हम चखते है उम्मीद से आसमान को तकते है गाड़ कर एक पौधा झंडे की तरह क्यो न साँसों का बैकअप रखते है। वरिष्ठ कवियत्री आशा विग:- सावन में झूले नही होंगे गमलों में बसंत जब आयेंगे चित्रकार के चित्रों में ही हम प्रकृति को पायेंगे। उर्मिला देवी "उर्मि":- सुनो कभी ध्यान लगाकर धरती की ये करुण पुकार मेरी ही संतान यह मानव मुझ पर क्यूं करे अत्याचार? किरणलता वैद्य:- धरती टेर लगा रही,गगन गुहार लगाय वृक्षों को मत काटिये,हमें सदैव सहाय। प्रेम तपस्वी:- दरिया दरख़्त आबो हवा बचाना सीख लो इंसानों सलीके से दुनिया चलाना सीख लो इन्हें सम्हालो ये तुम्हें सलामत रखते है ख़ुदपरस्ती छोड़ो जहां बसाना सीख लो। विनोद गोयल:- भोर लालिमा लिये खड़ा था पूरब की दीवारों पे संध्या रक्तिम आभा लेकर जा बैठी अंगारों पे चटक चांदनी चंद्रनाथ के घर से यूं बाहर आई ज्यूं आती है पुलकित लहरे रत्नाकर के धारो पे। चंद्रकला त्रिपाठी:- तुला है मानव उजाड़ने में मुझको हरे भरे जंगल को उतारू है बदलने कांक्रीट के जंगल मे। दुष्यंत साहू:- रूख राई के सुघर छईहा मन हमरो मगन हो जाय शितल छईहा हवा पानी प्राकृति हमर जीवन आय पेड़ लगाबो प्राकृति बचाबो सब मिलके करव जी परन हवा-पानी बिन जिनगी बिरथा कइसे होही प्राकृति बिना तरन काव्य गोष्ठी में उर्मिला देवी, किरणलता वैद्य, सुनील पांडे, डॉक्टर गौरी अग्रवाल , शोभा मोहन श्रीवास्तव, प्रेम तपस्वी, कमल वर्मा, कमलेश वर्मा, यशवंत यदु, विनोद ओम प्रकाश गोयल, सिंधु झा, चेतन सिंह, कुमुद लाड, मोहन लाल मानिकपन, नीता भंडारकर, प्रीति रानी तिवारी,डॉ सीमा श्रीवास्तव, मनोज साहू "आजाद",दुष्यंत साहू,तुकाराम कंसारी ,नेहा ठेठवार,तीजन सिन्हा सहित 50 से अधिक कवियों ने हिस्सेदारी की।