माता पार्वती ने शिव जी को कैसे पाया पौराणिक कथा
माता पार्वती ने शिव जी को कैसे पाया पौराणिक कथा
तुलसीदास ने श्रीरामचरितमानस में पार्वती के तप का वर्णन में कहा है। सयानी पार्वती को देखकर माता मैना और पिता हिमालय को पुत्री के विवाह की चिंता हुई। इतने में महर्षि नारद वहां आ गए। नारद जी को घर में आया देखकर राजा-रानी ने पार्वती के भविष्य के विषय में पूछा तो नारद जी ने पार्वती का हाथ देखकर भविष्यवाणी की ।
नब लच्छन संपन्न कुमारी। होइहि संतत पियहि पिआरी। नदा अचल एहि कर अहिवाता । एहि तें जसु पैहहिं पितु माता ।
महले पार्वती के गुणों की प्रशंसा की। नारदजी चतुर और मनोवैज्ञानिक वक्ता हैं। सद्गुणों की एक लंबी सूची नारदजी ने प्रस्तुत की किंतु जब पार्वती के पिता ने पूछा कि महाराज! कोई दोष हो तो उसे भी बताइए आप तब नारद जी ने कहा कि जोगी जटिल अकाल मन नगन अमंलग बेष। अस स्वामी एहि कहं मिलिहि परी हस्त असि रेख'
नारदजी ने कहा कि पार्वती पुत्री तो सर्वगुण संपन्न हैं, किंतु इसका पति जटाजुटधारी, दिगम्बर तथा अमंगल वेश वाला होगा।
भाव यह है कि मन और इन्द्रियों का निग्रहकर पार्वतीजी ग्रीष्मकाल में अपने चारों ओर अग्नि जलाकर बीच में बैठ गईं तथा ऊपर से सूर्य के प्रचंड ताप को सहन करती ई तन को तपाती रहीं। वर्षाकाल में वे खुले आकाश के नीचे शिलाखंड पर बैठकर दिन-रात जलधारा से शरीर को सींचती रहीं ।
भयंकर शीत ऋतु में जल के बीच रात-दिन बैठकर उन्होंने कठोर तप किया। इस प्रकार निराहार रहकर पार्वती ने पंचाक्षर मंत्र का जप करते हुए सकल मनोरथ पूर्ण करने वाले भगवान सदाशिव के ध्यान में मन को लगाया।
तब जाकर शिव ने वरदान मांगने को कहा । पार्वती माता में शिव को वर के रूप में चुना और उनकी अर्धांगिनी बनाने के लिए कहा । इसी प्रकार माता पार्वती ने शिव जिनको कठोर तपस्या से प्रसन्न किया और उनकी अर्धांगिनी बनी।
स्तुति
शिव है अजर अमर अविनाशी शिव है महादेव भोला भंडारी
सर्प गले में लपेटे चंद्र मुकुट विराजे
जटा में गंगा साजे हाथ में डमरू बाजे
हो कर मगन ऐसे आज शंकर नाचे
कैलाश निवासी भूत प्रेत संग वासी
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