कोरोना काल में आनलाईन सतसंग बना हजारों भक्तों का सहारा

कोरोना काल में आनलाईन सतसंग बना हजारों भक्तों का सहारा

कोरोना काल में आनलाईन सतसंग बना हजारों भक्तों का सहारा

*आनलाईन सतसंग को हुआ एक वर्ष पूर्ण
आध्यात्मिक चर्चाओं से ओतप्रोत ऑनलाइन सत्संग परिचर्चा के एक वर्ष पूर्ण होने पर विशेष चर्चा में संत रामबालकदासजी ने कहा कि कोरोना के कहर से जब कथा प्रवचनों में पाबंदी लग गयी, मंदिरों के पट हो गये, यज्ञ हवन के स्वाहा की ध्वनि मंद पड़ गयी, तीर्थयात्रा संकट में पड़ गयी तब पाटेश्वरधाम से संचालित आनलाईन सतसंग ने श्रद्धालुओं को आध्यात्म से जोड़े रखा।
          आनलाईन सतसंग की उत्पत्ति के बारे में बाबा जी ने कहा कि जब परिस्थितियाॅ प्रतिकूल होती हैं तब मन मस्तिष्क में नकारात्मक विचार आते हैं। परंतु ऐसी विषम परिस्थिति में सकारात्मक सोचना योगी पुरूष की पहचान है। गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा कि स्थिति काल को देखते हुये जो उचित एवं तत्कालिक निर्णय लेता है वही योगी है। इसी सोच और दृष्टि ने आनलाईन सतसंग को जन्म दिया। आवश्यकता ही आविष्कार की जननी है। इस सतसंग ने कोरोना काल की हताशा को मिटाकर हजारों लोगों का कल्याण किया। सभी भक्तों को शुभकामनायें देते हुये बाबा जी ने घर में सुरक्षित रहने, मास्क और सेनेटाईजर का उपयोग करने, सामाजिक दूरी एवं शासन के अन्य दिशानिर्देशों का पालन करने तथा एक - दूसरे का परस्पर सहयोग करने की बात कही। 
         आज सत्संग परिचर्चा में संतोष जी के द्वारा नवरात्र पर्व में कई जगहों पर दी जाने वाली बलि प्रथा की मान्यता के संबंध में की गयी जिज्ञासा पर बाबाजी ने कहा कि धर्म के नाम पर जीव हत्या गलत है निंदनीय है। भारतीय परंपरा में इसे कहीं भी मान्यता नहीं दी गयी है। वेद रामायण और महाभारत के सभी सुपात्रों ने सदैव इसका विरोध किया है। शास्त्रों में अहिंसा परमो धर्म: कहा गया है। बलिदान देना ही है तो अहंकार, पाखण्ड, असत्य की दें न कि निरीह जीव की।
     पुरुषोत्तम अग्रवाल ने नवरात्र में किए जाने वाले शक्ति पाठ और बीज मंत्र "ऐ" के उच्चारण के महत्व पर प्रकाश डालने की विनती की। इसके महत्व को बताते हुए बाबा जी ने कहा कि शक्ति व बीज मंत्र में "ऐ" शब्द का अभिप्राय भगवती माता द्वारा चंड मुंड संहार के समय किये गये हुंकार से है। जो केवल अपने हुंकार से दुष्टों का नाश कर देती हैं ऐसी माॅ भगवती मेरे भीतर आत्मज्वाला भर दें।
            कौशल वर्मा ने ज्योति कलश के महत्व पर प्रकाश डालने की विनती की। बाबा जी ने बताया कि दीप ज्योति स्वयं परमात्मा का स्वरुप है। यह ज्ञानिक और वैज्ञानिक दोनों ही महत्व रखता है। ज्ञानिक अर्थ से देखें तो दिव्य ज्योति की स्थापना कर 9 दिन परमात्मा के सानिध्य में साधना का भाव है। वैज्ञानिक रूप से देखें घी की ज्वाला से पूरा वातावरण पवित्र और स्वच्छ हो जाता है। बाबा जी ने इस बात पर दुख व्यक्त किया कि ज्योति जलाने की परंपरा ने भी अनेक स्थानों पर व्यापार का रूप ले लिया है। इसमें प्रयोग किये जाने वाले अशुद्ध तेल की वजह से लाखों, करोड़ों ज्योति जलने के बाद भी वातावरण पवित्र नहीं होता। ज्योति कलश में केवल घी के उपयोग पर बल दिया।

रिपोर्ट//नरेन्द्र विश्वकर्मा​​​​