बालोद जिला मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर ग्राम भोथली का अति प्राचीन बूढ़ादेव का मन्दिर जहाँ जहरीले जन्तुओ के काटने का किया जाता है उपचार क्या है इसके पीछे की कहानी     

बालोद जिला मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर ग्राम भोथली का अति प्राचीन बूढ़ादेव का मन्दिर जहाँ जहरीले जन्तुओ के काटने का किया जाता है उपचार क्या है इसके पीछे की कहानी      
बालोद जिला मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर ग्राम भोथली का अति प्राचीन बूढ़ादेव का मन्दिर जहाँ जहरीले जन्तुओ के काटने का किया जाता है उपचार क्या है इसके पीछे की कहानी      

 

 बालोद जिला मुख्यालय से महज 6 किलोमीटर ग्राम भोथली में है अति प्राचीन बूढ़ादेव , का मन्दिर जहाँ जहरीले जन्तुओ के काटने का किया जाता है उपचार क्या है इसके पीछे की कहानी 

    बालोद :-बालोद जिला मुख्यालय से 6 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत भोथली में बूढ़ादेव धार्मिक स्थल हैं। वहां पर आधा दर्जन पेड़ों के झुंड के बीच में एक चबूतरे पर दो घोड़े और भगवान शंकर का और नाग की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। ग्रामीणों की मानें तो यह धार्मिक स्थल आदिकाल से है। जो खुले आसमान के नीचे स्थित है। जहां सर्पदंश का इलाज किया जाता है। बूढ़ादेव में अभी तक सर्पदंश से सैकड़ो लोगो की जान बचाई हैं, इसके साथ ही बूढेदेव कि ऐसी कृपा है कि कोई भी व्यक्ति की मानसिक स्थिति ठीक नही रहती वो भी पूरी तरह से स्वस्थ होकर जाते है।

◆चिरहुट पेड़ के नीचे स्थापित है ।

बूढ़ादेव गाँव के तालाब के तट पर बूढ़ादेव का मंदिर स्थित है। जो चिरहुट पेड़ के नीचे स्थित है। जहाँ पर मन मे शांति और आनंद की अनुभूति प्राप्त होती है। मंदिर प्रांगण मे एक विस्तृत क्षेत्र में मैदान में जहाँ पर महाशिवरात्रि में तीन दिवसीय रामायण का आयोजन होता है और अंतिम दिवस पर मेले का भी आयोजन रहता है, जहाँ पर आस पास के ग्रामीण हजारों की संख्या मे आते है। जिसके कारण यह मेला बहुत ही प्रसिद्ध है। यहाँ पर शंकर जी की मूर्ति बहुत ही शोभनीय है जो तालाब के किनारे है। राधा कृष्णा की भी मूर्ति शोभित है। तालाब मे निर्मल जल तालाब के किनारे कदम, पीपल, बरगद के पेड़ है जो प्राकृतिक छटा को सुन्दर बनाती है। वर्तमान की प्रसिद्धि जिसके कारण भोथली का बूढ़ादेव प्रसिद्ध है। यह जो मंदिर है वह बूढ़ादेव के नाम से जाना जाता है।

●बूढ़ादेव आस्था का प्रमुख केंद्र

इस बूढ़ादेव मंदिर मे सर्पदंश और बिच्छू के डंक मारने पर मरीजों का इलाज किया जाता है। यह प्रणाम इस मंदिर मे सिद्ध होता है। इलाज के लिए विभूति दिया जाता है जिसे खाने व लगाने से सर्पदंश व्यक्ति पूर्ण रूप से ठीक हो जाता है। इस दरमियान बूढ़ादेव पर आस्था रख कर भगवान के नाम से श्री फल चढ़ाया जाता है। इस मंदिर मे ठीक हुए लोगो का प्रणाम आज भी मंदिर में सुरक्षित है। सर्पदंश के शिकार हुए लोग आज भी अपना इस मंदिर के प्रति आस्था रखते है। जिसके चलते आज चैत नवरात्रि और क्वाँर नवरात्रि मे ज्योत जलाते है। वर्तमान समय मे इस मंदिर मे इन पावन पर पर लगभग सौ ज्योति प्रज्वलित की जाती है जो आस्था का प्रतीक है। बुढ़ादेव की महिमा आज ग्रामीण क्षेत्रों के साथ साथ पुरे जिले में विख्यात हो रहा है जो लोगो के आस्था और विश्वास का केंद्र बना हुआ है।

यहां सर्पदंश का होता है इलाज

बालोद जिला मुख्यालय से 6 किलोमीटर दूर ग्राम पंचायत भोथली में बूढ़ादेव नामक धार्मिक स्थल हैं। वहां पर आधा दर्जन पेड़ों के झुंड के बीच में एक चबूतरे पर दो घोड़े और भगवान शंकर का और नाग की प्राचीन प्रतिमा स्थापित है। ग्रामीणों की मानें तो यह धार्मिक स्थल आदिकाल से है। जो खुले आसमान के नीचे स्थित है। जहां सर्पदंश का इलाज किया जाता है।

मान्यता और उपचार की विधि बताया जाता है।

यहां पर किसी भी सर्पदंश से पीडि़त को लाने से वह बच जाता है। पीडि़त का इलाज सिर्फ भभूत के माध्यम से किया जाता है। शर्त यह होती है कि पीडि़त की सांसे चल रही हो, तब इलाज किया जाता है और बचने की ग्यारंटी रहती है। यह मान्यता क्षेत्र के अलावा दूर-दराज के गांवों में प्रचलित है। सैकड़ों किलोमीटर से सर्पदंश पीडि़तों को यहां बचने की उम्मीद में लाते हैं। लोगों की मान्यता भी पूरी होती है। बूढ़ादेव मन्दिर में प्रतिवर्ष महाशिवरात्रि को मेले का आयोजन किया जाता हैं।जहाँ दूरदराज के लोग हजारो की सख्या में पहुचते हैं।

रिपोर्ट :- अरूण उपाध्याय बालोद