सतगुरू ही भवसागर पार कराते है : धर्मगुरू नसी साहेब

सतगुरू ही भवसागर पार कराते है : धर्मगुरू नसी साहेब
सतगुरू ही भवसागर पार कराते है : धर्मगुरू नसी साहेब

सतगुरू ही भवसागर पार कराते है : धर्मगुरू नसी साहेब

करहीडीह (अहिवारा) पहूंचे गुरू सतनाम रावटी में गुरूद्वारा भंडारपुरी धाम से आए धर्मगुरू नसी साहेब ने गुरूवाणी के माध्यम उपदेश दिया की सिर्फ सतगुरू ही परमब्रह्म सतपुरुष पिता तक पहूंचाते है और भवसागर से पार कराते हैं कोई दूसरा नहीं कर सकता,सतगुरू बिना आपकी यात्रा कभी पूरी नहीं हो सकती। परमपूज्य बाबा गुरूघासीदास ने मानव समाज को सदाचरण व सात्विकता के साथ सतपुरुष पिता तक पहुंचाया और सतमार्ग से मानव जाति को भवसागर पार करवाया। उन्होंने मूर्ति पूजा और कर्मकांड पर विश्वास नहीं किया क्योंकि वह सब मानव जीवन के उत्थान में बाधा है। जहां धर्म के नाम पर दुकानें लगी हैं, वहां धर्म के नाम पर आदमी के बनाए हुए मुर्ति, आदमी की बनाई हुई किताबें - कर्मकांड बैठी हैं, वे भटका देती हैं। बाहर से किसी तरह आदमी बचता है वह कुएं से बचता है और खाई में गिर जाता है, उस भटकन में चल पड़ता है। उस भटकन से कुछ कर्मकांडी लोगों को फायदा है। कुछ कर्मकांडी लोग शोषण कर रहे हैं, हजारों साल से कुछ लोग इसी तरह का शोषण कर रहे हैं। आदमी की इस कमजोरी का, आदमी की इस नासमझी का, आदमी की इस असहाय अवस्था का-कि आदमी जब कर्मकांडों से विमुख होकर सतगुरू की तलाश की तरफ मुड़ता है तो वह अनजान होता है, उसे कुछ पता नहीं होता कि कहां जाऊं? वहां फिर ऐसे लोग खड़े हुए हैं। वे कहते हैं, आओ, हम तुम्हें कर्मकांड से मुक्ति का रास्ता बताते हैं।

हमारे पीछे चलो। हम जानते हैं। और ध्यान रहे, जो आदमी कहता है, मैं कर्मकांड जानता हूं, मेरे पीछे आओ, यह आदमी बेईमान है। क्योंकि शाश्वत सतनाम धर्म की दुनिया और सतपुरुष पिता कर्मकांड से परे है। लोगों को तथाकथित कर्मकांडी धर्मज्ञों की दुकानें अपने पीछे ले जाती हैं और आदमी के बनाए हुए कर्मकांड जाल में उलझा देती हैं। करोड़ों-करोड़ों लोग चींटियों की तरह यात्रा करते रहते हैं पीछे एक- दूसरे के।

यह सारी-की सारी यात्रा व्यर्थ है। न सत्य कोई का तीर्थ है, न सत्य कोई का मंदिर है, न सत्य कोई की किताब है, सत्य का बोध सतगुरू के सानिध्य में है। और जब तक हम कर्मकांडों की बातों में भटके रहेंगे, तब तक हम कभी भी शाश्वत सतनाम धर्म व सतपुरुष पिता को नहीं जान सकते। लेकिन आप कहेंगे, फिर हम क्या करें? अगर हम कर्मकांड के पीछे न जाएं तो हम कहां जाएं? सतगुरू के शरण में जाकर उनसे मार्गदर्शन लो और तुम वहां पहुंच जाओगे जहां पहुंचना जरूरी है।

कुछ चीजें हैं, जहां चलकर पहुंचा जाता है और कुछ चीजें ऐसी हैं जहां सतगुरू पहुंचाते है। सत्य ऐसी चीज है, वहां चलकर नहीं पहुंचना पड़ता, सतगुरू पहूंचाते है। लेकिन साधारणतः अज्ञान की दशा में, तो हम सतपुरुष पिता को कर्मकांड,शास्त्रों से खोजते है और सतपुरुष पिता नहीं मिलते न भवसागर पार होता है।