पांच बिंदुओं पर सहमति के बाद भी लद्दाख में भारत और चीन के बीच तनाव घटने के संकेत नहीं ...

पांच बिंदुओं पर सहमति के बाद भी लद्दाख में भारत और चीन के बीच तनाव घटने के संकेत नहीं ...

मॉस्को से विदेश मंत्री एस जयशंकर और चीन के विदेश मंत्री वांग यी के बीच पांच बिंदुओं पर सहमति तो बन गई है, लेकिन लग रहा है कि यह सूचना लद्दाख क्षेत्र में तैनात दोनों देशों के सैन्य बलों तक नहीं पहुंच पाई है। अमर उजाला को प्राप्त जानकारी के अनुसार काला टॉप, हेलमेट टॉप, रोजी लॉ, डेपसांग समेत 06 स्थानों पर भारत और चीन के सैनिकों के बीच की दूरी 200-950 मीटर ही रह गई है। कालाटॉप, हेलमेट टॉप की चोटी पर भारतीय सेना के जवान तो नीचे चीन के सैनिक डटे हैं। सूत्र बताते हैं कि शुक्रवार को दोनों देशों के ब्रिगेड स्तर के अधिकारियों की वार्ता भी हुई और चीन की सेना ने अपनी सैन्य तैनाती बढ़ाई है।

 

भारत तनाव बढ़ाने का इच्छुक नहीं

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने चीन के विदेश मंत्री से दो टूक कहा कि भारत सीमा (वास्तविक नियंत्रण रेखा, एलसीए)पर तनाव बढ़ाने का इच्छुक नहीं है। विदेश मंत्री ने कहा कि चीन को लेकर भारत की नीति में कोई बदलाव नहीं आया है। उन्होंने अपने समकक्ष से साफ कहा कि भारत ने हमेशा अंतर्राष्ट्रीय सहमतियों, समझौतों का पालन किया है। इस दौरान विदेश मंत्री ने चीन की तरफ से इतनी बड़ी सैन्य तैनाती पर चिंता जताई। उन्होंने कहा कि इस तौनाती को लेकर चीन की तरफ से कोई संतोषजनक जवाब नहीं आया। हालांकि दोनों विदेश मंत्री शीर्ष स्तर के राजनीतिक नेतृत्व के बीच में बनी सहमति के अनुरूप भिन्नता वाले मुद्दों को भी टकराव और विवाद में न बदलने के पक्षधर रहे।

वांग यी आखिर क्या संकेत कर रहे हैं

वांग यी ने भारत के विदेश मंत्री के सामने कुछ गंभीर मुद्दे उठाए हैं। चीन के दूतावास द्वारा दोनों विदेश मंत्रियों के बीच चर्चा के बाद जारी विज्ञप्ति के मुताबिक चीन ने भारतीय सैनिकों के आक्रामक रूख, उनके द्वारा की जाने वाली फायरिंग के मुद्दे को उठाते हुए भारत पर भड़काने का आरोप लगाया है। चीन के विदेश मंत्री वांग यी ने भारत के विदेश मंत्री से उम्मीद जताई है कि भारतीय सैनिक आगे से इस तरह के व्यवहार नहीं करेंगे। इस तरह के आक्रामक रुख के बाद भारतीय सैनिकों द्वारा काबिज पोस्ट से वांग यी ने पीछे हटने की मांग की है। दोनों देशों के वक्तव्य, सूत्रों के हवाले से प्राप्त जानकारी के अनुसार विदेश मंत्रियों की वार्ता की सकारात्मकता भविष्य की गर्त में ही छिपी है।

 

भारत का आरोप अब चीन लगाने लगा है

29 अगस्त के पहले की स्थिति पर गौर करें तो अब भारत का आरोप चीन लगाने लगा है। पहले भारत चीन पर तीन आरोप लगाता था। पहला, उसके(चीन) सैनिक घुसपैठ करके वास्तविक नियंत्रण रेखा, एलएएसी की वास्तविकता को नए सिरे से परिभाषित करने का एकतरफा प्रयास कर रहे हैं। आरोप नंबर-2, भारत-चीन की वास्तविक नियंत्रण रेखा पर चीन के सैनिक 2017 में डोकलाम और उसके बाद लद्दाख में बहुत आक्रामक व्यवहार कर रहे हैं।

 

आरोप नंबर-3, 05 मई, 15 जून 2020 की हिंसक झड़प की शुरुआत करके भड़काने, उकसावे की कार्रवाई कर रहे हैं। 15 जून के बाद दोनों देशों के विदेश सचिवों में बात हुई। 5 जुलाई को विशेष प्रतिनिधियों(एनएसए डोभाल और स्टेट काऊंसलर वांग यी) में सहमति बनी। इसके बाद भारत ने इसी सहमति के आधार पर 28 अगस्त तक चीन से सेना को पुराने स्थायी तैनाती स्थल पर ले जाने की अपील की। उससे अंतरराष्ट्रीय और द्विपक्षीय सहमतियों, समझौतों, मानदंडों का पालन करने का आग्रह किया।

 

अब चीन के विदेश मंत्री इसी तरह के आरोप भारत पर लगा रहे हैं। वह भारतीय सैनिकों के आक्रामक रुख पर सवाल उठा रहे हैं। भारत से हेलमेट टॉप, काला टॉप, रोजी लॉ को खाली करने की मांग कर रहे हैं। स्पांगुर गैप और स्पांगुर लेक एरिया में उन्हें भारतीय सैनिकों का दबदबा अखर रहा है।

 

आखिर चीन ने क्यों तैनात की है इतनी सेना?

लद्दाख क्षेत्र में चीन ने अपनी करीब 50 हजार की संख्या में सेना तैनात की है। स्थाई बंकर, सैन्य संरचना खड़ी की है। उसके बख्तरबंद वाहनों की काफी बड़ी संख्या तैनात है। सूत्र बताते हैं कि आस-पास के क्षेत्र में करीब 1500 फाइटर जेट, हेलीकॉप्टर, टैंक, तोप, यूएवी, निगरानी के अन्य उपकरण तैनात हैं।

 

चीन की यह सैन्य तैनाती सैन्य मामले के जानकारों को हैरान करती है। एक आशंका भी प्रबल है कि क्या चीन किसी बड़ी लंबी तैयारी के साथ युद्ध जैसी मंशा लेकर आया है? इसके लिए चीन की सरकारी एजेंसी शिन्हुआ द्वारा साल के शुरू में जारी रिपोर्ट की तरफ ध्यान जाता है। इसमें राष्ट्रपति शी जिनपिंग की अनुमति के बाद चीन की सेना तिब्बत में युद्धाभ्यास के बहाने आई और युद्धाभ्यास खत्म होने के बाद उसने एलएसी की तरफ फोकस किया है।

 

हालांकि भारत ने चीन की मंशा को देखकर किसी भी चुनौती से निबटने के लिए अपनी सैन्य तैयारी कर रखी है। भारत चाहता है कि दोनों देशों के बीच में और टकराव, तनाव की नौबत न आए। इसके लिए उच्चस्तर पर सतर्कता बरती जा रही है।

 

क्या सोच रहे हैं चीन के रणनीतिकार?

इसका जवाब देना पेचीदा है। चीन मामलों के जानकार, पूर्व विदेश सचिव, पूर्व सैन्य अधिकारी और सामरिक मामलों के विशेषज्ञ इस सवाल पर खुलकर जवाब नहीं देना चाहते। लेकिन समझा जा रहा है कि लद्दाख में सैन्य तैयारी के साथ आना चीन की विस्तार वादी नीति से भरी कुटिल चाल है। इसको लेकर अमेरिकी राजनयिक, विदेश मंत्री माइक पोम्पियो और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आशंक सही जान पड़ती है। चीन को पता है कि कोविड-19 जैसी महामारी में भारत जैसे देश की अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान हआ है।

 

चीन इसी का फायदा उठाना चाहता है। उसे लग रहा है भारत पर दबाव डालने, अपनी बात मनवाने का यही समय है। उसके द्वारा युद्ध जैसे हालात पैदा करने, वास्तविक नियंत्रण रेखा पर घुसपैठ करने, कूटनीतिक तरीके से अपने एजेंडे को नया मोड़ देने की कोशिशें इसी का हिस्सा जान पड़ती हैं।

 

चीन की इस बहाने कोशिश है कि वह पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह से पाक अधिकृत कश्मीर, अक्साई चिन, लद्दाख होते हुए चीन के प्रांत तक जाने वाली वन-बेल्ट-वन रोड परियोजना को भारत की छाया से पूरी तरह सुरक्षित कर ले। माना जा रहा है कि इसी उद्देश्य को साधने के लिए पाकिस्तान भी उसकी लगातार सहायता कर रहा है।

 

सीडीएस जनरल विपिन रावत द्वारा हाल में दिए गए वक्तव्य का भी निहितार्थ यही निकाला जा रहा है। हाल में ही सीडीएस जनरल रावत ने कहा था कि भारतीय सैन्य बल पाकिस्तान और चीन दोनों की चुनौतियों से निबटने में सक्षम हैं।

 

नहीं बनी बात तो आगे उम्मीद पर दुनिया कायम है.....पीएम मोदी हैं

दोनों विदेश मंत्रियों के बीच में ढाई घंटे की मास्को चर्चा का नतीजा कदाचित नहीं निकलता तो अभी तनाव बने रहने के आसार हैं। विदेश मंत्रियों की बातचीत के बाद अब दोनों देशों के विशेष प्रतिनिधियों (एनएसए अजीत डोभाल और स्टेट काउंसलर वांग यी) के बीच में तनाव घटाने को लेकर चर्चा हो सकती है। इस चर्चा में ध्यान रखना होगा कि भारत के वार्ताकार बदलेंगे। विदेश मंत्री एस जयशंकर के स्थान पर एनएसए अजीत डोभाल रहेंगे, लेकिन चीन की तरफ से विदेश मंत्री और स्टेट काऊंसलर वांग यी विशेष प्रतिनिधि रहेंगे।

 

ऐसी भी संभावना है कि भारत और चीन के बीच में लद्दाख का तनाव कम करने के लिए शंघाई सहयोग संगठन(एससीओ) के शिखर सम्मेलन के दौरान दोनों देशों के शीर्ष राजनीतिक नेतृत्व (प्रधानमंत्री मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग) को वार्ता की मेज पर आना पड़े।