कथा वाचन करने का अधिकारी वास्तव में कौन है - संत श्री राम बालकदास जी

कथा वाचन करने का अधिकारी वास्तव में कौन है - संत श्री राम बालकदास जी

प्रतिदिन की भांति संत श्री राम बालक दास जी का ऑनलाइन सत्संग भक्त जनों की जिज्ञासाओं का समाधान करते हुए आज भी 1 घंटे आयोजित किया गया जिसमें सब भक्तगण जोड़कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त कीये। 
आज की सत्संग परिचर्चा में 
शिव कुमार टेमभुरकर ने जिज्ञासा रखी की रामायण, शिवपुराण,भागवत पुराण ,या किसी भी वेदों ,उपनिषद की कथा वाचन करने का अधिकारी वास्तव में कौन है ,क्या  इसका कोई मापदंड होना चाहिए, या ज्ञान ही सरवोपरि है, या फिर इसमें जाती आधारित कोई प्रतिबंध भी होता है ।, बाबाजी ने बताया कि हमारे वेद पुराणों के अनुसार भागवत महापुराण या फिर कथा व्यास के गद्दी का अधिकार केवल और केवल ब्राह्मण जाति के वर्ग का ही है लेकिन उसके लिए भी आवश्यक है कि वह पूर्ण ज्ञानी हो उसका यज्ञोपवित हो चुका हो, हां जो भी व्यक्ति ज्ञानी है वह किसी भी जाती का है तो वह रामायण गायन, गीता का गान कर सकता है लेकिन उसको यह अधिकार प्राप्त नहीं की वेदकथा के व्यास गद्दी  पर बैठ सके या फिर किसी मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा कर सके या फिर भागवत महापुराण कर सके या फिर से यज्ञ आदि संस्कार कर सकें हमें अपने सनातन धर्म की परंपराओं को मानना ही चाहिए तभी तो हम अपने धर्म की रक्षा कर सकेंगे।


   विजय शर्मा जी ने जिज्ञासा रखी की                
क्लैब्यं मा स्म गम: पार्थ नैतत्वय्युपपद्यते।
क्षुद्रं हृदयदौर्बल्यं त्यक्त्वोत्तिष्ठ परंतप॥

श्लोक को वर्तमान समय परिस्थिति में सनातनी हिन्दू कैसे व्यवहार में लाये?, बाबाजी ने बताया , कि श्रीमद भगवत गीता में श्रीकृष्ण ने अर्जुन जी को आह्वान करते हुए कहा कि है अर्जुन तु नपुंसको की भांति  कायर बनते हुए, युद्ध क्षेत्र से डरता है, परंतु जो डरकर जीता है वह जीते जी मर जाता है, इस से अच्छा है कि अपने प्राणों को त्याग दो, इसीलिए अपने हृदय के हीन भावना से ग्रसित  दुर्बलता को त्याग कर ,, हे कर्म वीर अर्जुन तू युद्ध के लिए खड़ा हो, और इस श्लोक को हम वर्तमान परिवेश में देखे तो, हम जो संत लोग आपके उद्धार के लिए कहते हैं वह हम नहीं भगवान ही तो हमसे कहलवाते हैं ताकि हम अपने धर्म हिंदू सनातन की  रक्षा कर सकें। 
     प्रतिदिन की भांति ऋचा बहन के मीठा मोती पर प्रकाश डालते हुए बाबा जी ने कहा कि क्षमा कायरों का नहीं वीरों का आभूषण है क्षमा से बड़ा कोई शस्त्र नहीं होता इसलिए निरपराध और असहाय और अबोध पर क्षमा करना एक दिव्य गुण है पुरुषोत्तम अग्रवाल जी के सुंदर मधुर भजन, डूबोबति यादव जी की मानस की चौपाइयां और बाबा जी के सुंदर भजन के साथ आज का सत्संग संपन्न हुआ.

         

रिपोर्ट //नरेंद्र विश्वकर्मा