कर्म परमात्मा को अर्पित करते चलें : संत रामबालकदास

कर्म परमात्मा को अर्पित करते चलें : संत रामबालकदास
कर्म परमात्मा को अर्पित करते चलें : संत रामबालकदास

कर्म परमात्मा को अर्पित करते चलें : संत रामबालकदास  

थानखम्हरिया//(नईदुनिया न्यूज)। पाटेश्वरधाम के आनलाइन सतसंग में . गिरधर सोनवानी की जिज्ञासा पर संत श्री रामबालकदास ने कहा कि हिंदू धर्म में सभी एकादशियों का महत्व है लेकिन आज की एकादशी भगवान विष्णु की योग मुद्रा रूप की उपासना की है। आज के दिन भगवान विष्णु के योग मुद्रा रूप का स्मरण करते हुए उनसे अपने स्वास्थ्य की कामना करते हैं। आज सभी स्वास्थ्यवर्धक चीजें जैसे तिल, लड्डू, गुड़, फल आदि का दान किया जाता है और गुड़ से बनी चीजों को खाया जाता है क्योंकि यह समय ऋतु परिवर्तन का समय होता है तो सभी स्वास्थ्यवर्धक चीजें खाई जाती हैं। 

तिलक दुबे ने अमृत वचन में कहा कि भूख लगे तो खाना प्रकृति है भूखे को खिलाना संस्कृति है और भूख न लगे तो खाना विकृति है। इसके मूल को समझाते हुए बाबा ने इस पर भर्तृहरी जी की कथा सुनायी 

कि जब भर्तृहरी जी बाबा गोरखनाथ जी के पास सन्यास लेने जाते हैं तो बाबा ने उन्हें अपनी मां से अनुमति लेने को कहा। भर्तृहरी अपनी मां के पास जाते हैं तो मां उनसे कहती है कि तुम सन्यास अवश्य ले सकते हो यदि तुम मुझे तीन वचन दो। हमेशा छप्पन भोग खाओगे, मखमल की शैया पर सोओगे और किले में रहोगे। जब भर्तृहरी वापस गुरु गोरखनाथ के समक्ष आते हैं और बाबा उनसे पूछते हैं क्या तुम्हें माँ से आज्ञा प्राप्त हुई तो भर्तृहरी बताते हैं कि मां ने आज्ञा दी भी है और नहीं भी। उनके द्वारा दिए गए तीनों वचन बताते हैं तब बाबा गोरखनाथ ऐसी माता को नमन करने के लिए उतावले हो जाते हैं और उनके दर्शन हेतु जाते हैं भर्तृहरी हरि की मां को प्रणाम करते है और भर्तृहरी को समझाते हैं कि जब हमें भूख लगे तब भोजन करना चाहिए उस समय सूखी रोटी भी छप्पन भोग के समान प्रतीत होती है जब बहुत तेज नींद आती है तभी सोना चाहिए। 

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