ब्रम्हमुहूर्त में सोकर उठने का महत्व

जो भी व्यक्ति  ब्रह्म मुहूर्त में उठते  हैं वे स्वास्थ्य को  तो प्राप्त करते हैं साथ में अनुशासित दिनचर्या भी पालन करते हैं

ब्रम्हमुहूर्त में सोकर उठने का महत्व

ब्रम्हमुहूर्त में सोकर उठने का महत्व


प्रतिदिन की भांति ऑनलाइन सत्संग का आयोजन सीता रसोई संचालन ग्रुप में श्री राम बालक दास जी द्वारा किया गया, प्रतिदिन अनेक लोग सत्संग परिचर्चा से लाभान्वित हो रहे हैं, सभी सत्संगी भाई बहन अपनी विभिन्न जिज्ञासाओं को  बाबाजी के समक्ष रखते हैं और उनका समाधान भी प्राप्त करते हैं
        तन्नू साहू,शिवाली  साहू, पुरुषोत्तम अग्रवाल जी के मधुर मधुर भजनों के साथ परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए पाठक परदेसी जी ने  जिज्ञासा  की, ब्रह्म मुहूर्त  मैं सोने वालों के स्वास्थ्य पर पड़ने वाले दुष्प्रभावों पर प्रकाश डालने की विनती,इसे स्पष्ट करते हुए बाबा  जी ने बताया कि यदि कोई भी कार्य सुनिश्चित समय पर होता है तो वह हमारे लिए उचित है जो भी व्यक्ति  ब्रह्म मुहूर्त में उठते  हैं वे स्वास्थ्य को  तो प्राप्त करते हैं साथ में अनुशासित दिनचर्या भी पालन करते हैं,  कहा जाता है कि ब्रह्म मुहूर्त में प्रकृति के कण-कण में ब्रह्म तत्व विराजमान होता है, भगवान सूर्य की ऊष्मा,ब्रह्मांड में फैली हुई शीतलता, प्रकृति के प्रत्येक अंग की अंगड़ाई लेकर जागना, चिड़ियों की चहचहाहट,वायु में फैली हुई प्राणवायु जिसके लिए कहा गया भी है कि "सुबह की हवा हजारों रोगों की दवा" यह केवल और केवल आपको ब्रह्म मुहूर्त में उठने पर ही प्राप्त हो सकता है, हमारा शरीर ही इसी प्रकृति के अनुसार बना है नियमों का पालन आवश्यक है यह समय प्रकृति के विभिन्न  देनो को अपने में समाहित करने का होता है,चिंतन हेतु, ब्रह्म कार्य के लिए होता है, कहा जाता है कि ब्रह्म विद्या के जागरण हेतु योगी मुनि साधु सन्यासी इसी समय से सूर्योदय अर्थात इस डेढ़ से 2 घंटे का उपयोग करते हैं आयुर्वेद विज्ञान में भी कहा गया है कि रात्रि में किया गया भोजन धीरे-धीरे जठरागनी की ओर लौटता है तब नीचे उतरने वाला यह भोजन समाप्त होकर अपने गुणों को खोकर मल रूप में परिवर्तित हो जाता है तो सुबह 4:00 बजे से वह ऊपर की और उठने लगता है और यही सभी बीमारियों का मूल गैस बन जाता  है अतः प्रातः 4 बजे शौच आदि से निवृत्त होकर स्नान आदि करके  हम भगवान चिंतन करें अध्यात्मिक चर्चा करें तो आध्यात्मिक कार्य में लग जाते हैं तो हमारा शरीर ही नहीं मन और बुद्धि सभी निर्मल  हो जाते हैं
         परिचर्चा को आगे बढ़ाते हुए पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने जिज्ञासा रखी थी किसी वस्तु, राशि के दान तथा जप आदि में हम सवा की संख्या या मात्रा लेते हैं जैसे सवा लाख जप। इस सवाया संख्या के पीछे क्या महत्व है कृपया प्रकाश डालेंगे महाराज जी, सवा  के महत्व को बताते हुए,बाबा जी ने बताया कि जब भी कोई शुभ कार्य किया जाता है तो उसे जितनी  बिंदी लगती है वह  शुभ माना जाता है इसका तात्पर्य यह है कि हम एक चरण से दूसरे चरण की ओर जाने को तैयार है और इसे भी शुभ कदम माना जाता है और सवा को लिखने का तरीका बहुत ही सरल है एक के बगल में जब छोटी सी बिंदी लगा दी जाती है, भगवान के सभी रूपों के सभी नामों में हम इस सवा का उच्चारण अवश्य रूप से देखते हैं कृष्ण जी के कृ में गणेश जी के ण में राम जी के आ की मात्रा में दुर्गा मैया के र्ग  मे, हम हर भगवान में यह सवा रूप में मात्रा देखते हैं जो कि अति शुभ माना गया है इस प्रकार हमारे हर कार्य में सवा बहुत महत्वपूर्ण शुभ का घोतक हैँ
   इस प्रकार आज का सत्संग पूर्ण हुआ

नरेन्द्र विश्वकर्मा मो .7028149519