बुरे कर्म करके अच्छे बनने का प्रयास करना दो नाव में पैर रखने के समान। राम बालक दास जी
बुरे कर्म करके अच्छे बनने का प्रयास करना दो नाव में पैर रखने के समान। राम बालक दास जी
प्रतिदिन की भांति ऑनलाइन सत्संग का आयोजन सन्त श्री राम बालक दास जी के द्वारा, उनके सीता रसोई संचालन ग्रुप में किया गया,
परिचर्चा में ऋचा बहन के द्वारा प्रतिदिन की भांति कम शब्दों में बहुत ही सुंदर एवं पूर्णतः अर्थ समाहित मीठा मोती का प्रेषण किया गया " बुरे कर्म करते हुए अच्छे जीवन जीने की आश करना वैसे ही है,जैसे कि दो नाव में पैर रखना,जिसका फल असफलता ही है।"जिस पर अपने विचार रखते हुए बाबा जी ने बताया कि जो भी व्यक्ति दो नावों में पैर रखते हैं उनका डूबना निश्चित रहता है वैसे ही बुरे कर्म करते हुए अच्छा जीवन जीने की आशा रखने वाला व्यक्ति महामूर्ख होता है निश्चित ही वह अपने आप नाश को प्राप्त करता है
सत्संग परिचर्चा में जिज्ञासा रखते हुए,भोलाराम साहू जी ने बाबा जी से पूछा कि क्या हनुमान जी का प्रसाद माता बहनों को दिया जा सकता है, इसको स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि माता बहनों को किसी भी क्षेत्र में पीछे नहीं रखना चाहिए हमारे धर्म संस्कृति ने कभी उनको पीछे रहना नहीं कहा गया है जरा सोचिए कि जब हनुमान जी को वरदान स्वयं माता सीता ने दिया था,उसी वरदान से हनुमान जी प्रसाद देने योग्य हुए अतः माताओं और बहनों को उनका पूजा दूर से ही करना चाहिए परंतु उनकी पूजा करना उनको पुष्प अर्पित करना उन को भोग अर्पण करना नारियल चढ़ाना उनका सुंदरकांड पथ करना चाहिए, समय आने पर वे उनका नारियल भी फोड़ सकती है उसे बांट सकती है
पुरुषोत्तमअग्रवाल जी ने जिज्ञासा रखते हुए प्रश्न किया कि घर की नींव में हम सर्प और कलश स्थापना क्यों करते हैं
इसे स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि वास्तु शास्त्र का निर्माण ही वैज्ञानिक दृष्टिकोण से हुआ है इसे धर्म विशेष से जोड़कर नहीं देखा जा सकता जैसे जापान में भी परंपरा है कि वहां भी मकान के नीचे आग राख पानी बहुत सी प्राकृतिक विषयक चीजे रखी जाती है है, ईसाई धर्म में भी वे लोग मेटल क्रॉस रखते हैं जो कि उनके धर्म से नहीं जुड़ा है जैसे कपूर और भस्म भी वे लोग रखते हैं थाई लोग अच्छे कर्म से संबंधित कोई भी धार्मिक कार्य में बर्तन में पानी भरकर उसमें पुष्प रखते हैं वैसे ही सर्प कलश भी प्राकृतिक है वास्तु शास्त्र में सभी चीजें निश्चित होती है क्योंकि उसमे घर को जड नहीं माना गया है वह भी हमारे शरीर की तरह ही माना गया है, यदि हम अपने भोजन की स्थिति पर ध्यान दें उसके खाने की दिशा पर ध्यान दें, खाते समय हमारे विचारों में जो ऊर्जा और मन की स्थिति है उस पर ध्यान दें तो हमारा भोजन भी अमृत के समान हो जाता है वह हमारे तन और मन को ही नहीं हमारे पर लोक परलोक तक को प्रभावित करता है,उसी प्रकार हमारा घर की स्थिति भी,हमें प्रभावित करती है और हमारे आने वाली पीढ़ियों को भी प्रभावित करती है इसीलिए घर के निर्माण समय पर इसमें बहुत अधिक सावधानी होनी चाहिए साथ ही नियम एवं मुहूर्त आदि का भी स्मरण अवश्य रखना चाहिए, निर्माण के समय नींव खोदते हुए जो जो वस्तुएं प्राप्त होती है उसके भी शुभ और अशुभ प्रभाव होते हैं, कौन सा कमरा किस दिशा में होगा स्नान घर कहां होगा रसोईघर कहां होगा बैठक कहां होगी सीढ़ियां तक निश्चित होती है, अतः जब भी घर निर्माण का विषय आए तो अवश्य ध्यान रखें,ताकि आप ही नहीं आपके आने वाली पीढ़ियां भी तर जाए,एवं इस घर के प्रभाव से समाज और देश दोनों का ही कल्याण करें
इस प्रकार आज का आनंददायक एवं ज्ञान पूर्ण सत्संग पूर्ण हुआ
नरेन्द्र विश्वकर्मा