वक्ता मंच की ऑनलाइन काव्य गोष्ठी सम्पन्न यूं बरसता रहेगा कहर कब तक सहमे रहेंगे शहर कब तक:सतीश शर्मा -----------------^--^----------

वक्ता मंच की ऑनलाइन काव्य गोष्ठी सम्पन्न  यूं बरसता रहेगा कहर कब तक सहमे रहेंगे शहर कब तक:सतीश शर्मा -----------------^--^----------
वक्ता मंच की ऑनलाइन काव्य गोष्ठी सम्पन्न  यूं बरसता रहेगा कहर कब तक सहमे रहेंगे शहर कब तक:सतीश शर्मा -----------------^--^----------

वक्ता मंच की ऑनलाइन काव्य गोष्ठी

सम्पन्न यूं बरसता रहेगा कहर कब तक,सहमे रहेंंगे शहर कब तक - सतीश  शर्म्मा

रायपुर।कोरोना के प्रति सावधानी,सजगता व जागरूकता का संदेश देने आज 12 अप्रैल को सामाजिक संस्था वक्ता मंच द्वारा गूगल मीट पर ऑनलाइन कवि सम्मेलन आयोजित किया गया।इसमे बड़ी संख्या में कवि व श्रोता उपस्थित रहे।काव्य गोष्ठी के मुख्य अतिथि नवापारा राजिम के वरिष्ठ पत्रकार व साहित्यकार तुकाराम कंसारी थे।गोष्ठी का प्रभावी संचालन वक्ता मंच के अध्यक्ष राजेश पराते द्वारा किया गया।वरिष्ठ कवियत्री किरणलता वैद्य द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना के साथ गोष्ठी आरम्भ हुई।काव्य पाठ का शुभारंभ करते हुए वरिष्ठ कवि सुनील पांडे ने अपनी कविता प्रस्तुत की:- हाथ धोते धोते पत्थर न बन जाये मास्क ढोते ढोते मुकद्दर न बन जाये कुटिल कोरोना जटिल जिंदगी किससे कहे कैसे जान बचाये और कैसे जिंदा रहे। ग्राम डूंडा से उपस्थित कवि दुष्यंत साहू की छत्तीसगढ़ी कविता प्रभावपूर्ण रही:- उधो के लेना न ,माधो के हे देना आये हे चीन ले, वाइरस हे कोरोना कोन जनी कतेक दिन रही हहाकार भारी मचाये हे का करही ये बइरी हां नाव कोरोना अपन धराये हे मुह कान ल तोप ढांक के घर लें निकल बने ठिकाना अपन सुरक्षा अपनेच रक्षा असने वाइरस फैले हे कोरोना नौजवान कवि खेमराज साहू की इन पंक्तियों ने बहुत वाहवाही लूटी: आये हे कोरोना बीमारी येकर ले कोनो झन डरंव बीमारी ले बचे बर सुरक्षा उपकरण उपयोग करंव सुरक्षा उपकरण ल उपयोग करना हवय जरूरी मुंह में मास्क, हाथ में सेनेटाइजर, लोगन से दुरी यशवंत यदु 'यश'की इन पंक्तियों ने बहुत सराहना प्राप्त की:- मै अपने भविष्य सुरक्षित करने , के लिए लांक डाउन अखाडे पर आया हूं। दुश्मन कोरोना को हराने आया हू।। कोरोना तू कितना भी कर ले मनमानी कोरोना को हराकर रहेगें यह हमने भी ठानी।। वरिष्ठ कवियित्री किरणलता वैद्य ने नवरात्रि पूर्व माता की आराधना के साथ कोरोना नाश की कामना की- *हे महिषासुर मर्दिनी मैया,कोरोना का अंत कर दे।*

*आतंकित सहमे इस जग को,सुख-शांति से अब भर दे।

* *कोरोना से मुक्ति मिले, नवरात्र सुफल हो जाएँ।*

*पुलकित मन मुक्त कंठ से, तेरे जयकारे गाएँ।* वरिष्ठ कवियित्री कुमुद लाड ने इन पंक्तियों में अपनी व्यथा व्यक्त की:- कोरोना नही यह बला है इसने दुनिया को छला है इसकी अब दुनिया से जाने की बारी है इसलिए धूम धड़ाका जारी है। वरिष्ठ कवियत्री सिंधु झा ने अपने अनुभवों को इन पंक्तियों में समेटा:- बड़े दौर गुजरे है जिंदगी के ये भी गुजर जायेगा गर थाम लोगे अपने पांवों को कोरोना भी थम जायेगा। युवा कवि सतीश शर्मा की धारदार प्रस्तुति ने गहरा असर छोड़ा:- यूं होता रहेगा कहर कब तक, यूं सहमें रहेंगे शहर कब तक। बाहर निकलना मुनासिब नहीं, हवाओं में रहेंगी ज़हर कब तक। काम करते, दो रोटियां कमाते, इस तरह हम करेंगे बसर कब तक। युवा कवि मिनेश साहू ने छत्तीसगढ़ी भाषा मे अपनी रचना पढ़ी:- आए हे कोरोना, तैं झन रो न रोना। रोए ले जिनगी के, नइहे कुछू होना।। जाग अउ जगाना हे ना। भागही कोरोना ............. भागही कोरोना ना,,,,

कवि सम्मेलन के मुख्य अतिथि वरिष्ठ साहित्यकार तुकाराम कंसारी ने लॉक डाउन की पीड़ा इस प्रकार प्रदर्शित की:- सड़के सूनी है बस्तियां वीरान है इस सदी का ये कैसा फरमान है। काव्य गोष्ठी का आभार प्रदर्शन वक्ता मंच के संयोजक शुभम साहू द्वारा किया गया। कुल मिलाकर लॉक डाउन और मौतों के स्याह दौर में यह ऑनलाइन काव्य गोष्ठी जनता और प्रशासन दोनो में कर्तव्यबोध की भावना का अहसास कराने में सफल रही।