*मनखे अव रे भाई...* मानवीय आचरण को रेखांकित करने वाली बेहतरीन छत्तीसगढ़ी कविता
*मनखे अव रे भाई...* मानवीय आचरण को रेखांकित करने वाली बेहतरीन छत्तीसगढ़ी कविता
*मनखे अव रे भाई...* मनखे अव रे भाई...मनखे कस "जी" लव। दुआभेदी तुम काबर करथव? मनखे ल तो चीन्ह लव।
"नफ़रत, घृणा अऊ छुआछूत" नोहय हमर सिंगार। मनखे अव रे भाई मनखे ले कर लव पिंयार। मनखे अव रे भाई...मनखे कस "जी" लव। दुआभेदी तुम काबर करथव? मनखे ल तो चीन्ह लव। कुकुर चराए अउ टट्टी कराये बर होत बिहनिया, जग जाथव। फेर दाई-ददा ल एक गिलास पानी देहे बर जीव ल काबर चोराथव? मनखे अव रे भाई...मनखे कस "जी" लव। दुआभेदी तुम काबर करथव? मनखे ल तो चीन्ह लव। अन्न उगईया किसान मन ल भाई, नीच तुमन कहिथव जी। फ़ेर ख़ैरात के खवईया जांगरचोट्टा मन ल महान कइसे समझथव जी। मनखे
अव रे भाई...मनखे कस "जी" लव। दुआभेदी तुम काबर करथव? मनखे ल तो चीन्ह लव। गोबर-पिसाब ल पी के कइसे? पतित पावन हो जाथव जी। मनखे के छुए ले, कांही नई होवय फेर छइन्हा म घलो छूआथव जी।
मनखे अव रे भाई...मनखे कस "जी" लव। दुआभेदी तुम काबर करथव? मनखे ल तो चीन्ह लव। काबर घुमत हवव धरे-धरे जब्बर बरछी अउ तलवार। गुसियाये गुसियाये टिहक़त हवव अपन देवता के तो बन जव चिन्हार।
मनखे अव रे भाई...मनखे कस "जी" लव। दुआभेदी तुम काबर करथव? मनखे ल तो चीन्ह लव। भाई रे... अगास म काबर, फ़ेंकत हव तलवार। एक फुल तो गोंदा के फ़ेंकव मिलहि तुँहला मया दुलार।
मनखे अव रे भाई...मनखे कस "जी" लव। दुआभेदी तुम काबर करथव? मनखे ल तो चीन्ह लव। धरम के नाव म, भाई तुमन धरम ले काबर भटकत हव। "जम्मो जीव हे भाई-बहिनी बरोबर" फेर तुम ईंखरे जीव ल लेवत हव।
मनखे अव रे भाई...मनखे कस "जी" लव। दुआभेदी तुम काबर करथव? मनखे ल तो चीन्ह लव।
रचनाकार : श्री हुलेश्वर प्रसाद जोशी, नारायणपुर-बस्तर (छत्तीसगढ़)