सभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति रहस्यमय लोक से

सभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति रहस्यमय लोक से
सभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति रहस्यमय लोक से

सभार सद्विप्र समाज सेवा एवं सदगुरु कबीर सेना के संस्थापक सद्गुरु स्वामी कृष्णानंद जी महाराज की अनमोल कृति रहस्यमय लोकसे

प्रदीप नायक प्रदेश अध्यक्ष सदगुरु कबीर सेना छत्तीसगढ़

 मैने पूछा--+तुम ठीक होने पर क्या करना चाहते हो? वे बोले--महाराज! मैं नौकरी करूंगा तथा रिटायर होने के बाद साधना करना चाहता हूं। उसकी पत्नी से पूछा कि तुम क्या चाहती हो? वह बोली---हमें पुत्र-पुत्री नहीं है। अतएव इनके रिटायर्ड होने पर इनसे दुकान कराऊंगी। जिससे हम लोग उसमें फंसे रहेंगे। क्या भजन करना नहीं चाहते हो? नहीं---कभी नहीं। बस इन्हें ठीक कर दें। हम लोग अपना काम करें। मैंने कहा इसी की तरह बिना गुरु का आदेश लिए वह मंत्र जाप करते हुए शरीर छोड़ दी है। यह भी बिना गुरु किए, दीक्षा ग्रहण किए बिना, पुस्तक से ही मंत्र सिद्धि करना चाहता था।वह भटकी मृत आत्मा इस भटके व्यक्ति के शरीर में प्रवेश कर गई है। वही इसके साथ-साथ हवन कर रहा था। अब इसके साथ रहना चाहता है। वह लोग आर्त स्वर में निवारण के लिए निवेदन किए। तथा वह औरत कही की गुरुदेव! कल घर पर हमें रात्रि में बहुत मारे हैं। देखिए, मेरा गाल-मुंह फूल गया है। मैं तो तलाक देने पर उतारू हो गई थी। यह हमें अभी तक अपशब्द नहीं बोले थे। आज इतना मार-पीट कर दिए।लेकिन सुबह आपकी बात याद आई कि देखना यह रात्रि में मार-पीट कर सकता है।

मैंने कहा--यह भटकी आत्मा तुम्हारे ही क्षेत्र के ब्राम्हण की है।जो बिना गुरु धारण किए मंत्र सिद्ध करने के चक्कर में शरीर छोड़ दिया है। जब वह उस मार्ग से गुजर रहा था। तब यह हवन कर रहे थे। वह तुरंत समझ गया कि यह भी हमारी तरह ही भटका व्यक्ति है। वह तुरंत आकाश से उतर आया। इसमें प्रवेश कर गया। यदि गुरु धारण किया रहता, गुरुद्वारा प्रदत्त मंत्र का जाप करता रहता, तब उसकी रक्षा सूक्ष्म शरीर से गुरु करता है। इस तरह का व्यवधान नहीं होता है।

जो व्यक्ति प्रेत की तरह आचरण करता है, उसके शरीर एवं गृह में प्रेतों का वास होता है। संधि, शादी, संबंध सदैव समानता में होती है। अच्छा तुम यह लौंग लो। प्रतिदिन एक-एक करके इसे 7 दिन तक खाना। जब तुम यहां इसे लाए थे। वह उसी समय जान गया कि उसका अस्तित्व खतरे में है। अतएव रात्रि में तुमसे मार-पीट किया। वह तो चाहता ही है कि तुमसे इस का तलाक हो जाए। खैर एक-2 दिन में पुनः आकर मिल लेना। वह तुम्हें छोड़ देगा। 3 दिन तक हमसे मिले, उसके बाद वह ठीक हो गया, वे फिर कभी नहीं मिले।

मेरी उत्सुकता हो गई कि पंडित गोपीनाथ कविराज द्वारा लिखित पुस्तक'मनीषी की लोक यात्रा'देखूं। उसी दिन एक आदमी को वाराणसी भेज कर वह पुस्तक मंगवाई। फिर उनका अन्वेषण देखा। कविराज जी विभिन्न साधु-संतो से मिले हैं। उनसे संपर्क किए हैं। उनके अनुभव को प्राप्त कर लिये है।

वे लिखते हैं कि एक दिन उन्हें सूचना मिली कि बंगाली टोला में एक लड़का है। जो इस शरीर से निकलकर रहस्यमय लोक में जाता है। वे उसकी खोज में निकल पड़े। उस बालक के घर गए। अपना परिचय देने के बाद बातें किए। आप कैसे इस शरीर से निकलते हैं। वह लड़का बोला---मैं 1 दिन बाजार में जा रहा था।बंगाली टोला के मुख्य रोड पर जैसे ही पीपल के वृक्ष के समीप पहुंचा था कि एक प्रकाश उस से उतरकर मेरे सिर के ऊपर आया एवं मुझ में प्रवेश कर गया। मैं घर आया। वह हमसे बोली कि तुम्हें अन्य लोक में चलना है। मैं मना नहीं कर सका। शरीर से निकल कर चला गया। इस तरह वह प्रतिदिन आने लगी। मैं उसके साथ चला जाता। अपना शरीर अपनी मां या बहन को दिखा देता।जैसे ही कोई अशुद्ध औरत मेरे शरीर को स्पर्श करती तो शरीर में दर्द होने लगता तथा मैं तत्क्षण उस लोक से इस शरीर में लौट आता। इस तरह आते-जाते अब मैं स्वयं भी शरीर से निकलना जान गया हूं। 

पंडित कविराज जी ने कहा--क्या अभी निकल सकते हो? हां क्यों नहीं? परंतु कार्य क्या है? यह विश्व कैसा है? यही देख कर बताओ। वह बालक कहा, आप मेरे शरीर को देखिएगा। इसे कोई स्पर्श नहीं करें। मैं 1 घंटे में वापस आ जाऊंगा। 

कुछ देर के बाद बालक उठ कर बैठ गया। बोला कि ऐसा ज्ञात होता है कि कोई आदमी अपने दोनों हाथ फैला कर खड़ा है। पंडित कविराज जी ने कहा कि यह बालक उपनिषद नहीं पढ़ा है। देख रहा है। मैं पढ़ा हूं। देख नहीं रहा हूं। हमारे उपनिषदीय ऋषि इसे ही 'वैश्वानर' कहे हैं। यह सृष्टि वैश्वानर है।

वे अवसर पाते ही उस बालक के पास चले जाते। एक दिन वह बालक बताया कि पंडित जी हमारे यहां एक महात्मा आए थे। वे बोले कि तुम गलती से आ गए हो। तुम हमारे मठ पर चलो। वे अपना मठ अंधा पुल से नीचे बनाए हैं। पंडित कविराज सोचने लगे-उधर तो केवल खेत है। कोई भी मठ नहीं है। खैर वे पूछे कि क्या आप गए? हां कल ही गया था। पुल के समीप जाकर टीले से देखा तो विशाल आश्रम दिखाई दिया। मैं उसमें गया तो वही आदमी मिला। वह बोले कि गुरुदेव तुम्हारे लिए इंतजार कर रहे हैं। बहुत महात्मागण थे। मैं उनसे मिला। उनसे बातें हुई। फिर वे हमें आने हेतु बोले। जब मैं वापस आया तो काशी स्टेशन से बाहर निकला। आज भी जा रहा हूं। पंडित जी भी साथ हो लिए। जब उस टीले पर चढ़कर आश्रम दिखाना चाहा तो दिखाई ही नहीं पड़ा। पंडित जी समझ गए कि हमारी नजर से दिखाई नहीं पड़ रहा है। वह कहे आप जाएं।मैं लौट रहा हूं। उन्हें लौटते ही दिखाई दिया। बालक चला गया। आश्रम में बैठे गुरुदेव ने कहा, तुम दूसरे व्यक्ति को साथ में कभी मत लाया करो।क्या गुरुदेव यह आश्रम हम लोगों के घर या अन्य आश्रमों की तरह नहीं है? नहीं ऐसा नहीं है। सूक्ष्म शरीरी लोगों का सूक्ष्म आश्रम है। इस काशी से भी दिव्य काशी है। जिसमें महात्मागण निवास करते हैं। वह बाहर निकला तो वाराणसी स्टेशन के समीप पहुंचा था। इस तरह कभी लंका, तो कभी भदैनी। पंडित कविराज ने सोचा कि इस पृथ्वी का कोई भी बिंदु केंद्र बिंदु हो सकता है। रहस्यमय लोक का अस्तित्व आज भी है।

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