डिटीजल बाबा को रोज की तरह ONLINE सत्संग पढ़िये सत्संग का मूल उद्देश्य आज का
डिटीजल बाबा को रोज की तरह ONLINE सत्संग पढ़िये सत्संग का मूल उद्देश्य आज का
छत्तीसगढ़/डौंडीलोहारा-पाटेश्वर धाम के संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा उनके भक्त गणों को प्रतिदिन प्रातः 10:00 से एक घण्टे के लिए अद्भुत सत्संग का लाभ प्राप्त होता है जो कि उनके विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुप में आयोजित किया जाता है, प्रतिदिन भक्त इसमें जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं का भी समाधान प्राप्त करते हैं और नित्य नवीन ज्ञान से भी परिचित होते हैं
आज की सत्संग की बेला में डुबोवती यादव जी ने जिज्ञासा रखी की ...राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा। हदय हरष कपि सज्जन चीन्हा।। एहि सन सठि करिहउँ पहिचानी। साधु ते होई न कारज हानि।।
इस प्रसंग पर प्रकाश डालने की कृपा हो भगवन, इस प्रसंग पर प्रकाश डालते हुए बाबाजी ने बताया कि यह संत मिलन का प्रसंग है श्री हनुमान जी जब लंका पहुंचते हैं तो विभीषण जी का घर देख कर चौक जाते हैं उनके घर में एक तरफ तीर बने हैं तो एक तरफ धनुष बने हैं, कहीं-कहीं राम नाम भी अंकित है, घर के आंगन में तुलसी का वृंद स्थापित है, जिसे देखकर हनुमान जी बहुत ही प्रसन्न हो जाते उन्हें लगता है कि निश्चित ही यह किसी संत का घर है, पर यह भी विचार भी आता हैं यह रावण की कोई माया तो नहीं, तो वे थोड़ा इंतजार करने लगते हैं उसी समय प्रातः काल ब्रह्म मुहूर्त में विभीषण जी जागते हैं और उनके मुंह से राम का नाम सुनकर, हनुमान जी प्रसन्न हो जाते हैं और विचार आता है कि जरूर यह सज्जन पुरुष है, तो इनसे परिचय करने में कोई परेशानी नहीं क्योंकि जो संत होते हैं उनसे कोई खतरा होता ही नहीं पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने जिज्ञासा रखी की उल्लेख मिलता है कि विश्वकर्मा जी को जल पर चलने की खड़ाऊॅ बनाने का सामर्थ्य था कृपया इसके बारे में बतायेंगे बाबा जी।, इस विषय पर प्रकाश डालते हुए बाबा जी ने बताया कि विश्वकर्मा जी पूरे विश्व को बनाने वाले हैं जल थल नभ आकाश पृथ्वी सभी के रचयिता है, भगवान विश्वकर्मा ब्रह्मा के वह स्वरूप हैं जिनके द्वारा पूरी सृष्टि का निर्माण किया गया है, ब्रह्मा के स्वरूप विश्वकर्मा जी के लिए जल थल नभ में चलना कोई भी बड़ी बात नहीं है, विश्व का सर्वप्रथम हवाई जहाज विश्वकर्मा जी द्वारा ही निर्मित किया गया था जिसे पुष्पक विमान कहा गया , जो कि मन की गति से चलता था ऐसे विश्व को आश्चर्य चकित कर देने वाली कई चीजें विश्वकर्मा जी द्वारा निर्मित की गई है जिसमें जल में चलने वाली खड़ाऊ भी सम्मिलित है सत्संग की सुंदर बेला में पुरुषोत्तम अग्रवाल जी के द्वारा एक और जिज्ञासा प्रस्तुत करते हुए संत श्री के समक्ष जिज्ञासा रखी गई की कल आने वाली एकादशी को जलझूलनी, परिवर्तिनी, डोल आदि कई नामों से जाना जाता है। इसके अनेक नाम क्यों हैं कृपया प्रकाश डालने की कृपा करेंगे बाबा जी।, बाबा जी ने बताया कि, डोल एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु करवट लेते हैं इसीलिए इसे डोल एकादशी कहा जाता है, क्योंकि भगवान की स्थिति परिवर्तित होती है इसलिए इस एकादशी को परिवर्तन एकादशी कहा जाता है कहीं-कहीं माता लक्ष्मी के साथ भगवान विष्णु को नोका बिहार कराया जाता है इसीलिए इसे जलझूलनी एकादशी कहा जाता है और इनका धूमधाम से झूला सजाकर झांकी निकाली जाती है कल की एकादशी के दिन वामन भगवान की पूजा की जाती है क्योंकि कल ही के दिन बामन भगवान जी ने राजा बाली को मोह पास में बांधकर तीन पग में उसकी संपूर्ण संपत्ति अर्जन की थी एवं बली को पाताल का राजा बनाया था इस प्रकार आज का ऑनलाइन सत्संग संपन्न हुआ जय गौ माता जय गोपाल जय सियाराम