आखिर क्यों तीजा के 1 दिन पूर्व महिलाए करेला और भात या खीरा क्यों खाते हैं-श्री रामबालकदास जी
प्रतिदिन की भांति ऑनलाइन सत्संग का आयोजन संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा आज प्रातः 10:00 बजे उनके विभिन्न वाट्सएप ग्रुपों में किया जिसमें भक्तगण जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त किए
रामफल जी ने जिज्ञासा रखी की, भरत सरिस को राम सनेही। जगु जप राम रामु जप जेहि।। इस पर प्रकाश डालने की कृपा हो प्रभु, बाबा जी ने बताया कि महर्षि भारद्वाज ने मानस में कहा है कि हमने जितने भी जीवन में पुण्य किए हैं उसके कारण है कि हमें राम जी के दर्शन हुए, लेकिन राम के दर्शन का फल से हमें भरत जी के दर्शन हुए, राम जी को तो पूरी दुनिया भजती है लेकिन रामजी जिसका स्मरण करे जिसका भजन करें जिसे जपे, जिसके प्रेम से वशीभूत हो जाए, वे है भरत जी महाराज
जो कि अपने प्रभु राम के लिए महल में रहकर भी सारी सुविधाओं को त्याग कर चुके थे, कि मेरे प्रभु कंदमूल खाते हैं तो वे भी वैसा ही करते मेरे प्रभु जमीन में सोते हैं तो वे गड्ढा खोदकर जमीन में सोते, श्री राम वनवासी बने अपनी पिता की आज्ञा के कारण और श्री भरत जी वनवासी बने अपने भाई प्रेम के कारण ऐसी भरत महाराज जी का यहां पर वर्णन है
महिलाओं के लिए अति विशिष्ट त्यौहार तीजा पर भी विशेष आज के सत्संग में चर्चा हुई जिसमें किरण पांडे जी रायपुर ने, कृष्ण कुमार जी बेलरगोंदी ने जिज्ञासा रखी की तीजा के 1 दिन पूर्व माताएं
करेला ओर भात या खीरा क्यों खाते हैं
बाबा जी ने बताया कि इसका मुख्य कारण वैज्ञानिक कारण है क्योंकि यदि 24 घंटा पहले हम करेला भात साथ में खाए तो हमें 24 घंटे प्यास नहीं लगती तीजा का व्रत पूरी दिन निर्जला रहकर ही करना पड़ता है, और खीरे में भी इसी तरह के गुण होते हैं जो कि 24 घंटे तक हमारे शरीर में पानी की मात्रा एवं ग्लूकोज की मात्रा को संतुलित करके रखता है इसीलिए 1 दिन पूर्व खीरा तथा करूं भात खाने का विधान रखा गया है
हर तालिका तीज का महत्व बताते हुए बाबा जी ने बताया कि यह व्रत शंकर भगवान के परिवार से संबंधित है, माता पार्वती जब अविवाहित थी तब वे शिव को प्राप्त करने के लिए घने जंगलों में जाकर और तपस्या की और संपूर्ण व्रत में उनके साथ उनकी मित्र हरतालिका रही, जैसा पार्वती माता करती वैसा वैसा ही हरतालिका भी यह व्रत करती संपूर्ण व्रत जब सिद्ध हो गया था,भगवान शिव उनको बर रूप में प्राप्त हुए, लेकिन माता पार्वती ने अपनी सहेली को देखा और उनसे कहा कि तुमने भी यह व्रत मेरे साथ ही किया है तो तुम जो मुझसे चाहो मांग सकती हो तब हरतालिका ने उनसे विनती और प्रार्थना करते हुए कहा कि हे मां आप इस व्रत को करें और आपको शिव जैसे वर प्राप्त हुए वैसे ही जो यह व्रत करें उसे आप ही की तरह वर प्राप्त हो और जिस तरह से आप का सुहाग अचल अमर है वैसे ही सभी सुहागिनों का वर अचल रहे माता पार्वती ने भी उन्हें तथास्तु कहते हुए यह व्रत करने वाले सौभाग्यवतियों को वर प्रदान किया इस तरह से जो भी तीज व्रत करता है वह अचल सुहाग पाता है और कुवारि कन्या मनचाहा शिव जैसा पति प्राप्त करती है, इस व्रत को करने की कामना कुछ इस प्रकार होनी चाहिए कि चाहे स्त्री करें चाहे पुरुष करें उन्हें शिव प्राप्त हो क्योंकि माता पार्वती ने भी यह शिव को प्राप्त करने की इच्छा से ही किया था
नरेंद्र विश्वकर्मा