रिटायर्ड शिक्षक नोखेलाल देशमुख ने किया देहदान, संत रामपाल जी महाराज से मिली प्रेरणा 

R K DEWANGAN

रिटायर्ड शिक्षक नोखेलाल देशमुख ने किया देहदान, संत रामपाल जी महाराज से मिली प्रेरणा 

बालोद // छत्तीसगढ़ के बालोद जिले से एक प्रेरणादायक खबर सामने आई है। ग्राम सांकरा निवासी नोखेलाल देशमुख, उम्र 79 जो कि एक रिटायर्ड शिक्षक थे। अंतिम समय में देहदान करके मानवता की एक मिसाल पेश की है। संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी रहे नोखेलाल देशमुख जी ने अपने इस पुण्यमय कार्य से समाज को एक नई दिशा दिखाई है। उनके इस पुण्यमय कार्य से न केवल उनके परिवार बल्कि पूरा समाज आज गौरवान्वित हुआ है। 

नोखेलाल देशमुख संत रामपाल जी महाराज के अनुयायी थे। संत रामपाल जी महाराज के प्रत्येक अनुयायी हमेशा ऐसे अनेक समाज हित के कार्यों में अग्रणी रहते हैं। चाहे रक्त दान हो या देहदान, वे मानव सेवा को सर्वोपरि मानते हैं और समाज के हर वर्ग के लोगों के लिए कार्य करते रहते हैं। नोखेलाल देशमुख ने भी संत रामपाल जी महाराज के बताए मार्ग पर चलते हुए देहदान का पुण्य कार्य किया है।

कबीर साहेब जी ने 600 वर्ष पहले कहा था —
कबीर, पशु के चाम की जूती बन जा, नौबत और नगारा। 
नर देही कुछ काम ना आवे, जल बुझ हो जा छारा।। 

पुराने समय की परिस्थिति के अनुरूप कबीर साहेब जी ने कहा था कि मरने के बाद पशुओं के चाम की जूती बनाकर उसे भी उपयोग में ले लिया जाता है, लेकिन इस मनुष्य शरीर से कुछ नहीं बन सकता। यह तो केवल जल कर राख हो जाता है। इसलिए इस शरीर से शास्त्रानुकूल भक्ति करके भक्ति धन इकट्ठा करके हम इसे सोने जैसा मूल्यवान बना सकते हैं। वहीं वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उन्हीं के अवतार संत रामपाल जी महाराज ने शास्त्रानुकूल भक्ति के साथ-साथ अब इस मिट्टी के शरीर को मरने के बाद भी परोपकार में लगा देने की अनोखी प्रेरणा अपने शिष्यों को दी है। 

देहदान करने से मिलेंगे चिकित्सा में निपुण डॉक्टर
यदि आप देहदान करते हैं तो चिकित्सा के क्षेत्र में पढ़ने वाले छात्रों को प्रैक्टिकल के लिए किसी डमी बॉडी पर नहीं बल्कि आपके वास्तविक मृत शरीर पर मानव शरीर की कार्यप्रणाली को जानने और सीखने को मिलता है। साथ ही, किसी बड़े ऑपरेशन के लिए डॉक्टरों को जो जानवरों के शरीर पर एक्सपेरिमेंट करना पड़ता था। वे वास्तविक मनुष्य शरीर पर करके चिकित्सा को और भी आसान बना सकते हैं। 

समाज में देहदान के लिए जरूरत है जागरुकता की
आज भी हमारे समाज में देहदान को लेकर कई भ्रांतियां हैं। जिसकी वज़ह से कोई भी व्यक्ति देहदान के लिए स्वयं से आगे नहीं आ रहे हैं। जबकि इस पाँच तत्व के शरीर का मरने के बाद कुछ नहीं बनना है और यदि हम इसे विज्ञान को दान कर देते हैं तो इससे अनेक लोगों की जान बचाई जा सकती है। हमारे मृत शरीर की कुछ जिवित कोशिकाएं, किडनी, लिवर, फेफड़े, त्वचा, हृदय और आंतों को भी किसी अन्य व्यक्ति के शरीर में ट्रांसप्लांट करके उसे मरने से बचाया जा सकता है।