छत्तीसगढ़ में अनोखी दिवाली, इस जिले में आखिर क्यों दस दिन बाद मनाई जाती हैं दिवाली? जानिए अनोखी परंपरा

संपादक आर के देवांगन

छत्तीसगढ़ में अनोखी दिवाली, इस जिले में आखिर क्यों दस दिन बाद मनाई जाती हैं दिवाली? जानिए अनोखी परंपरा
छत्तीसगढ़ में अनोखी दिवाली, इस जिले में आखिर क्यों दस दिन बाद मनाई जाती हैं दिवाली? जानिए अनोखी परंपरा

सरगुजा: छत्तीसगढ़ के सरगुजा संभाग में जनजातीय समाज की बड़ी आबादी निवास करती है, जो अपनी अद्भुत परंपराओं के लिए मशहूर है। यहां के लोग दीपावली का त्योहार दिवाली के दस दिन बाद मनाते हैं। कार्तिक अमावस्या के दिन, समाज विशेष के लोग माता लक्ष्मी और नारायण की पूजा करते हैं।

देवउठनी एकादशी का महत्व
सरगुजा के जनजातीय लोग मानते हैं कि देवउठनी एकादशी के दिन भगवान जागते हैं, इसी कारण दीपावली पर माता लक्ष्मी की पूजा अकेले नहीं की जाती। दोनों की पूजा एक साथ करने की परंपरा है।

गाय का पूजन और गुरु-शिष्य परंपरा
दीपावली के ग्यारहवें दिन, सरगुजा के लोग गाय को लक्ष्मी मानते हैं और उसका पूजन करते हैं। इस दिन गुरु-शिष्य परंपरा का पालन भी होता है। झाड़-फूंक करने वाले बैगा गुनिया अपने शिष्यों को मंत्र देते हैं, और शिष्य गुरु का पूजन कर उन्हें भोजन कराते हैं और कपड़े भेंट करते हैं।

सोहराई पर्व की धूमधाम
दस दिन बाद मनाई जाने वाली दिवाली पर लोक कला सोहराई का धूमधाम से आयोजन होता है। इस दौरान लोक गीतों से पूरा सरगुजा संभाग गूंज उठता है, और लोक नृत्य का आयोजन किया जाता है।

देवउठनी सोहराई
सरगुजा के जनजातीय ग्रामीण अंचल में दीपावली के दस दिन बाद देवउठनी एकादशी को सोहराई पर्व के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व यहां के जनजातीय लोग देवउठनी सोहराई के नाम से जानते हैं।