भारत समेत इन देशों में कोरोना वायरस जल्द खाएगा मात और मौसमी बीमारी भर रह जाएगा

भारत समेत इन देशों में कोरोना वायरस जल्द खाएगा मात और मौसमी बीमारी भर रह जाएगा

कोरोना महामारी के खिलाफ पूरी दुनिया जंग लड़ रही है। भारत में भी रिकॉर्ड संख्या में मामले बढ़ रहे हैं, वहीं कोरोना का इलाज खोजने की कोशिश भी हो रही है। इस बीच, एक शोध रिपोर्ट में अच्छी खबर आई है। दुबई से जारी इस रिसर्च में वैज्ञानिकों ने कहा है कि कोरोना वायरस जल्द कमजोर पड़ जाएगा और वह दिन भी दूर नहीं है जब यह महज एक मौसमी बीमारी बनकर रह जाएगा। उस स्थिति में इसका इलाज भी आसान होगा। रिपोर्ट के मुताबिक, एक दिन ऐसा आएगा जब लोगों में हर्ड इम्युनिटी विकसित हो जाएगी और कोरोना खांसी, सर्दी व अन्य मौसमी बीमारियां फैलने वाले वायरस की तरह ही रह जाएगा। वहीं अभी लोगों को इससे सावधानी रहने और मास्क पहनने तथा अन्य नियमों का पालन करने की सलाह ही दी गई है। यह रिपोर्ट फ्रंटियर्स इन पब्लिक हेल्थ मैग्जीन में छपी है।

भारतीयों के लिए इसलिए है अच्छी खबर

रिपोर्ट में भारत का भी खासतौर पर जिक्र किया गया है। लिखा गया है कि समशीतोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में जब हर्ड इम्युनिटी विकसित हो जाएगी तब कोरोना वायरस का प्रभाव कम हो जाएगा। समशीतोष्ण जोन में भारत समेत अमेरिका, कनाडा, जापान, न्यूजीलैंड, पश्चिम एशिया तथा उत्तरी अफ्रीका आदि आते हैं।

रिसर्च टीम का हिस्सा लेबनान स्थित अमेरिकन यूनिवर्सिटी ऑफ बेरूत के डॉ. हसन जराकेट कहते हैं, कोरोना महामारी अभी रहने वाली है। अभी सालभर और इसकी लहरें आ सकती हैं, लेकिन हर्ड इम्युनिटी विकसित होने के बाद इसका प्रभाव कम हो जाएगा।

वहीं कतर यूनिवर्सिटी के डॉ. हादी यासीन कहते हैं, सांस की बीमारी फैलाने वाले कई वायरस का मौसमी पैटर्न होता है। खासकर समशीतोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में। उदाहरण के लिए समशीतोष्ण जलवायु वाले क्षेत्रों में ठंड के दिनों में इन्फ्लूएंजा तथा अन्य वायरस अधिक सक्रिय होते हैं, जिनके कारण सर्दी-खांसी होती है।

कोरोना से ठीक हुए 30.73 फीसदी लोगों में नहीं मिली एंटीबॉडी

इस बीच, नई दिल्ली से खबर है कि कोरोना महामारी से ठीक होने के बाद कई मरीजों में ज्यादा एंटीबॉडी नहीं बन पा रही हैं। शरीर में एंटीबॉडी बनने के बाद वह कब तक बरकरार रहेगी, अब तक यह भी स्पष्ट नहीं है। दिल्ली में हुए दूसरे सीरो सर्वे में यह भी देखा गया कि संक्रमित होने के बाद बिल्कुल ठीक हो चुके 257 में से 30 फीसदी लोगों में एंटीबॉडी नहीं पाई गई।