आन लाइन सत्संग व्यास पाटेश्वर धाम जामड़ी ..
आन लाइन सत्संग व्यास पाटेश्वर धाम जामड़ी डौंडीलोहारा:--
प्रतिदिन की भांति पाटेश्वर धाम के संत राम बालक दास जी द्वारा ऑनलाइन सत्संग का आयोजन सीता रसोई संचालन ग्रुप में प्रातः 10:00 से 11:00 बजे और दोपहर 1:00 से 2:00 बजे किया गया इसमें भक्तों ने अपनी जिज्ञासाओं को बाबा जी के समक्ष प्रस्तुत किया और जिनका समाधान बाबा जी ने किया
कौशल वर्मा जी ने जिज्ञासा रखी की स्वतंत्रता से संबंधित कोई प्रसंग आपके श्री मुख से बताने की कृपा करें बाबा जी ने कथा श्रवण कराते हुए कहा कि, हमारे वेद पुराणों में जिस प्रकार राम कथा कृष्ण कथा और अलग-अलग समय पर अलग-अलग कथाओ का वर्णन मिलता है और उन्हें जानकर और सुनकर हमें अद्भुत आनंद का अनुभव भी होता है और आश्चर्य भी होता है कि यह सब संरचना उस समय किस प्रकार होती थी और सब घटनाएं कैसे घटित होती थी ऐसे ही मुगल काल में शिवाजी का छापा मार तरीके से युद्ध करना नाना जी का बलिदान वीर सपूतों मराठो, राठौरो के द्वारा अपने देश व अपनी माटी के लिए लड़ मरना वीरगति को प्राप्त होना उसके परिणाम स्वरूप लाखों पद्मिनीयों का जौहर कर लेना सती हो जाना आश्चर्य का प्रसंग रहा है
जैसे यह अद्भुत प्रसंग का अध्याय रहा वैसे ही भारत का स्वर्णिम अध्याय जो कि हमारे पीढ़ियों के लिए अद्भुत अविस्मरणीय अध्याय है आजादी की लड़ाई है, आजादी की लड़ाई की जितनी कहानियां कहे कम है हालांकि उस समय हम उस दृश्य को देखने के लिए वहां नहीं थे परंतु अपने बड़े बुजुर्गों से आजादी के कथा हम सुनते आए हैं और इसे बार-बार हमें सुनना चाहिए इससे देशभक्ति का ज्वार हमारे भीतर बना रहता है आजादी की लड़ाई में बहुत से प्रसंग है जिसे हम पुरानी फिल्मों के माध्यम से देख सकते हैं पुरानी फिल्मों में देशभक्ति के भाव ओतप्रोत से भरे पड़े हैं पुराने देशभक्ति के गीत आज भी ऊर्जा रूप में स्वतंत्रता दिवस एवं गणतंत्र दिवस पर बजाए जाते हैं देश के स्वतंत्रता से संबंधित साहित्य पढ़ना चाहिए ताकि जान पाए कि किस तरह हमारा देश आजाद हुआ आज हम जिस आजाद देश में रह रहे हैं वह हमें किस प्रकार प्राप्त हुआ कैसे कठिनाइयों से और विकट बलिदानों से यह प्राप्त हुआ बाबा जी ने कहा कि वह समय ऐसा था जब देश की जवान पीढ़ी देश के लिए सोचती थी देश के लिए मर मिटने के लिए उसमें जज्बा रहता था, हमें उन देशभक्तों से कुछ प्रेरणा लेना चाहिए|
उस समय की देशभक्ति से भरे भाव को उद्धृत करते हुए बाबा जी ने एक कथा सुनाई जिसमें एक अंधा बालक अपनी मां की आज्ञा लेकर बलिदान हेतु देश प्रेम से ओतप्रोत होकर स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित हो जाता है बल्कि वह जानता है कि वह अपने देश के लिए कुछ नहीं कर सकता पर वह शत्रु की एक गोली को ही समाप्त करने हेतु देश के स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित हो जाता है और अपनी मां से कहता है कि कम से कम आप एक देशभक्त शहीद की मां कहलाएंगे और इस तरह से मैं कम से कम अपने देश का झंडा ऊंचा रखूंगा और शत्रु के एक गोली को समाप्त कर दूंगा और अपने देश के लिए शहीद हो जाऊंगा यही उसका देश भक्ति है इस प्रकार उस समय के नागरिक देश के लिए मर मिटने को तैयार रहा करते थे|
पाठक परदेसी ने कृष्ण भगवान और उद्धव प्रसंग को बताने की जिज्ञासा बाबाजी के समक्ष रखी, बाबा जी ने इस प्रसंग पर प्रकाश डालते हुए बताया कि, एक समय श्री कृष्ण गोपियों को याद करते हुए सिमरन करते हुए, विचलित हो गए तब उद्धव जी ने कहा कि हे भगवन जिसे तीनो लोक स्मरण करता है जिसका ध्यान करता है वह भगवान उन गवार, वृंदावन की गोपियों का ध्यान करते हैं ऐसा क्यों प्रभु आप उन गोपियों से इतना अधिक प्रेम क्यों करते हैं, तब श्री कृष्ण जी ने गोपी प्रेम को उजागर करने और उद्धव जी के ज्ञान घमंड को दूर करने के लिए उन्हें वृंदावन भेजा, उद्धव जी भी अपने ज्ञान की प्रखरता को लिए गोपियों को देखने वृंदावन पहुंचे वहां जाते ही उन्हें अद्भुत अनुभव हुआ जहां गोपिया श्री कृष्ण के प्रेम में डूबी हुई मिली उद्धव जी ने उनको गोपियों से कहा कि हे गोपी यों तुम विचलित ना हो श्री कृष्ण का संदेश में लेकर आया हूं तब गोपियों ने उनसे कहा श्री कृष्ण का संदेश हमारे लिए क्यों आएगा क्योंकि श्री कृष्ण तो यही है तब उद्धव जी ने उनसे कहा श्री कृष्ण यहां कैसे हो सकते हैं वह तो मथुरा में हैं, तब गोपियों ने उन्हें स्पष्ट किया कि वह तो हमारे हृदय में, हमारे दिल में, और हमारे मन में रहते हैं इस प्रकार जब उद्धव वृंदावन से लौटे तो वह अपने ज्ञान के घमंड से मुक्त होकर और गोपियों के प्रेम भाव से भर कर लौटे जब उन्होंने प्रथम बार राधा रानी का दर्शन किया तब जाना कि भगवान को प्रेम भाव से प्राप्त किया जा सकता है ज्ञान से नहीं|
पाठक परदेसी जी ने ब्रज रज की महिमा पर प्रकाश डालने की विनती गुरुदेव से की, ब्रजरस की महिमा बताते हुए बाबा जी ने कहा कि एक बार भगवान श्री कृष्ण वृंदावन की गलियों में किलोल कर रहे थे आनंद ले रहे थे, उसी समय देवी शक्तियां देवी देवता है उनका दर्शन करने एकांत में आया करती थी, एक दिन एक देवी शक्ति माता वहां पधारी, उन्होंने हाथ जोड़कर कृष्ण को प्रणाम किया और व्यधित भाव से कहा हे कन्हैया, हे माधव आज तो आप यहां विद्यमान है परंतु जब घोर कलयुग आएगा हमारा कल्याण कैसे हो पाएगा दिव्य शक्ति साक्षात मुक्ति थी जिसे पाने के लिए दुनिया भर के जतन किए जाते हैं भगवान श्री कृष्ण ने उन्हें बताया कि, जब मैं इस संसार में नहीं रहूंगा तब मेरे भक्तजन मेरे संतजन मेरे नाम का कीर्तन करते हुए राधा राधा करते हुए इस वृंदावन की गलियों में विचरण करेंगे और अपने रज का प्रसार इस मिट्टी वृंदावन में करेंगे तब आपको स्वयं मुक्ति को भी इस रज के प्रभाव से, मुक्ति मिल जाएगी इस प्रकार ब्रजरज की महिमा है|
संतोष श्रीवास ने जिज्ञासा रखी की क्या 1947 मे हमे पूर्ण आजादी मिली थी। गुरूदेव
या देश अभी भी कुछ साजिश के घेरे में है।और यदि ऐसा है तो हम सबको किस तरह से सजग रहकर राम राज्य की कल्पना कर सकते हैं प्रकाश डालने की कृपा, बाबा जी ने कहा कि यह चिंतनीय विषय है कि क्या 1947 में हमें पूर्ण आजादी प्राप्त हो पाई है और क्या उससे हम संतुष्ट हैं उससे हमें कुछ नहीं चाहिए अभी भी हम परतंत्र हैं धार्मिक गुलामी आध्यात्मिक गुलामी, पाश्चात्य सभ्यता की संस्कृति की मानसिकता से जकड़े हुए हैं हमें और मेहनत करना होगा हर नागरिक को पूर्ण नागरिक होना उसका कर्तव्यनिष्ठ होना आवश्यक है
गीता साहू ने जिज्ञासा रखी की
अकाल मृत्यु क्या है,हम लोग ये सुनते हैं कि ईश्वर की इच्छा के बिना और अपने निर्धारित समय से पहले कोई नहीं मरता, तो किसी की मृत्यु को अकाल मृत्यु क्यों कहते हैं? इस विषय पर प्रकाश डालते हुए बाबा जी ने बताया कि भगवान शालिग्राम को जब हम स्नान कराते हैं तो उस जल से हमें पंचतत्व माता तुलसी, गंगाजल, भगवान का स्पर्श, चंदन एवं पवित्र जल प्राप्त होता है, इस जल को यदि प्रतिदिन चरनोदक मंत्र के साथ ग्रहण किया जाए तो अकाल मृत्यु नहीं होती, लेकिन यह कहा जाए कि सब कुछ पूर्व निर्धारित होता है तो हम कैसे भी कर्म करें चाहे कितना भी पाप करें हमारी मृत्यु तो निर्धारित है तो यह अनुचित है यदि आप पाप कर्म करेंगे तो आपकी आयु निश्चित ही घटेगी और पुण्य प्रताप कमाएंगे तो आपकी आयु निश्चित ही बढ़ेगी इसीलिए कहा जाता है कि बड़ों का आशीर्वाद ग्रहण करें अच्छे कर्म करे शुभ कर्म करें एवं ईश्वर में ध्यान लगाए, घर में तुलसी का वृक्ष हो माथे पर चंदन का टीका हो घर में हमेशा गंगाजल रहे ताकि अकाल मृत्यु ना हो पाए
नोमेश साहू ने जिज्ञासा रखी की अमृत कथा सुनने वाले धन्य है या अमृत पिने वाले धन्य है, कृपया प्रकाश डाले, बाबा जी ने इस प्रसंग को स्पष्ट करते हुए बताया कि, अमृत पान करने वाले देवता गण भी मनुष्य रूप को प्राप्त करने में अक्षम है, वह मनुष्य तन जो प्रतिदिन भक्ति भावना कर सकता है सत्संग जैसे कर्म को प्राप्त कर सकता है भगवान जब अवतरित होते हैं उनकी लीलाओं को देख सकता है उनकी लीलाओं को सुन सकता है पढ़ सकता है वह सब मनुष्य तन में ही कर सकता है देवता तन में यह नहीं प्राप्त हो सकता है इस प्रकार अमृत पान से अधिक अमृत कथा सुनना श्रेष्ठ है
इस प्रकार आज का सत्संग अति ज्ञान पूर्ण तो रहा ही देश को समर्पित भी रहा।