बिना मांगे सबके मन की इच्छा पूरी कर देते हैं इसीलिए भगवान शिव को अवढर दानी कहा जाता है,, संत श्री राम बालक दास जी
प्रतिदिन की भांति आज भी ऑनलाइन सत्संग का आयोजन संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा उनके विभिन्न वाट्सएप गुपों में किया गया,जिसमें भक्तों की जिज्ञासाओं का समाधान बाबा जी के द्वारा प्रस्तुत किया गया
आज की सत्संग परिचर्चा में
रामफल जी नहीं जिज्ञासा रखी कि भगवान भोलेनाथ को औढंरदानी क्यों कहा जाता है, बाबा जी ने स्पष्ट किया कि औढंरदानी का अभिप्राय होता है कि जिससे निर्भय होकर मांगा जा सके, निसंकोच हो कर मांगा जा सके और वह उसे अवश्य प्राप्त हो जाए, और जो सबसे ज्यादा प्रचलित अभिप्राय हैं वह है कि जो बिना मांगे ही सब कुछ भक्तों को प्रदान कर दे, ऐसे हमारे भगवान महादेव शिव शंकर भोलेनाथ औढंरदानी है
आशुतोष मिश्रा बेमेतरा ने जिज्ञासा रखी की अपनी स्मृति क्षमता का विकास कैसे करें इस विषय पर प्रकाश डालने की कृपा करें,बाबा जी ने बहुत विस्तार से आज इस विषय पर बताया कि स्मृति का विकास तो बचपन से ही होता है लेकिन जैसे-जैसे हमारी उम्र बढ़ती जाती है यह क्षीण होती जाती है ऐसा इसलिए है क्योंकि हम ज़ब अपने स्थाई भागों को स्मृति रुप में स्थान दे देते हैं तो वह कम होते जाती है,बचपन में स्मृति क्षमता तेज होती है, ऐसा इसलिए होता है क्योंकि उस समय बच्चों का मन विचलित एवं चलायमान नहीं होता वह केवल कुछ ही चीजों पर आकर एकचित् हो जाता है जैसे खाने का खेलने का जो भी सामान उसे एक रूप में दिखाई देता है वह उसी में अपना वित्त और चित लगाता है उसे अन्यत्र बातों से कोई अभिप्राय नहीं होता, लेकिन जैसे जैसे वह बड़ा होता है तो उसके नाते रिश्ते पढ़ाई लिखाई बात व्यवहार सभी मे उसकी बुद्धि बटने लगती है, इसीलिए मनुष्य की बुद्धि उम्र के साथ घटती जाती है
इसे बनाए रखने के लिए हमें क्या करना चाहिए हमें व्यर्थ के चिंतन और विचारों को त्यागना चाहिए,गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा भी है कि ,,जिसके जीवन में व्यर्थ चिंताओं का अभाव होगा उसकी बुद्धि उतनी ही तीक्षण होगी,, अर्थात उसकी स्मृति उतनी ही तेज होगी और स्वामी विवेकानंद जी के विषय में भी यह कहा जाता था कि वह एक बार जो पुस्तक पढ़ लेते थे वह उन्हें कंठस्थ हो जाती थी ऐसा इसलिए था क्योंकि वह व्यर्थ के चिंतन नहीं किया करते करते थे, व्यर्थ के चिंतन के त्याग के अतिरिक्त स्मृति को तेज बनाए रखने हेतु हमें कुछ उपाय करना आवश्यक हो जाता है,अपने लिए कुछ समय निकालें स्वयं से बात करने की आदत डाले,सुबह या शाम 1 घंटे ध्यान अवश्य करना चाहिए अंतर नाद के भाव को जानने का प्रयत्न करना चाहिए.
इस तरह से कुछ उपाय है जिनसे स्मृति को बढ़या जा सकता है जैसे पहला उपाय कि हम अंतर्मुखी हो, कुछ समय समाधि में बैठकर अपने अंतर्मन को टटोले स्वयं से बातें करें, जो व्यक्ति अंतर्मुखी होता है वहा बुद्धि लब्धि होता है ऐसा चाणक्य ने भी कहा है, दूसरा उपाय है ऐसा भोजन ग्रहण करें जो आपके विचारों के अनुकूल हो उस पर नियंत्रण होना चाहिए, तीसरा है कम से कम सोये, दिन में बिल्कुल न सोये, रात्रि में निर्धारित समय जैसे 10:00 बजे से लेकर 4:00 बजे तक ही अपनी निद्रा लेना आवश्यक है उतना ही सोये जितना शरीर को अवश्यक है, चौथा आपके स्नान का समय दिन में दो बार अवश्य स्नान करें जब आप प्रातः काल सूर्योदय से पहले उठते हैं तो योगा प्राणायाम करके स्नान करना चाहिए उसके पश्चात ही कोई कार्य प्रारंभ करना चाहिए और संध्याकाल को भी स्थान अवश्य करना चाहिए जिससे शुचिता ओर विवेक बना रहता है और अंत में यही बात है कि कोई बात को मन से न लगाएं जो भी मन पर बोझ लेकर चलता है वह हमेशा व्याकुल रहता है, हमेशा प्रसन्न चित्त रहें खुश रहे और क्रियाशील रहे आलस्य का त्याग करें प्रयत्नशील रहे आपकी स्मृति भी आपका साथ हमेशा देती रहेगी .
रिपोर्ट//नरेन्द्र विश्वकर्मा