क्यों पी गए थे समुद्र को अगस्त ऋषि सुनिए ऑनलाइन सत्संग में राम बालक दास जी के श्री मुख से
क्यों पी गए थे समुद्र को अगस्त ऋषि सुनिए ऑनलाइन सत्संग में राम बालक दास जी के श्री मुख से
प्रतिदिन की भांति ऑनलाइन सत्संग का आयोजन सीता रसोई संचालन ग्रुप में पाटेश्वर धाम के संत राम बालक दास जी के द्वारा किया गया, इसमें सभी भक्तगण जिज्ञासु सम्मिलित होकर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त किये
आज की सत्संग परिचर्चा में पाठक परदेसी जी ने जिज्ञासा रखी कि सप्त ऋषियों में अगस्त्य ऋषि के विषय में प्रकाश डालने की कृपा हो, बाबाजी ने बताया कि सप्त ऋषि हमारे संस्कृति के वे स्तंभ है जिनके द्वारा कहीं आयुर्वेद तो कहीं सामवेद कहीं चार वेदों तो कहीं भौतिक विज्ञान तो कहीं भाषा विज्ञान तो कहीं भुषा विज्ञान सभी को प्रभावित किया गया सप्तर्षियों में प्रमुख हैं कश्यप, अगस्त्य , वशिष्ट, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि और भारद्वाज हैं। जिनकी अपनी अपनी उपलब्धियां है अगस्त्य ऋषि के विषय में यह कहा जाता है कि अगस्त्य ऋषि ने एक बार पूरे समुद्र को सोख लिया था अगस्त्य ऋषि की इस विषय पर कथा आती है कि एक बार पीपलीका प्रजाति की चिड़िया, अपने अंडे दे रही थी तब समुद्र के प्रवाह में वह समुद्र में चले गए, उसने महान समुद्र से बहुत विनती की कि आप सबल है समर्थ है मैं बहुत छोटी और असहाय हूं आप मुझे मेरे बच्चे वापस कर दीजिए समुद्र में अहंकार बस उसकी बात नहीं सुनी और उसके बात ना सुनकर उसे उपेक्षित छोड़ दिया वह सब के पास जाकर गुहार लगाती रही परंतु किसी उसकी नहीं सुनि अगस्त्य मुनि ईश्वर की प्रेरणा से उसी और से गुजर रहे थे वहां उसने उस चिड़िया का यह हाल देखा और उससे पूछा कि तुम क्यों इस तरह दुखी हो तब उस चिड़िया ने अपना सब हाल उन्हें सुनाया तब अगस्त्य ऋषि ने अपने तप से समुद्र को प्रकट होने की आज्ञा दी एवं समुद्र को उसके अंडे वापस करने के लिए कहा तब समुद्र ने कहा कि यह तो मेरा प्रतिदिन का कार्य है तब ऋषि ने कहा कि अन्याय कई बार होता है वह महत्व नहीं रखता परंतु जब कोई उसका विरोध करता है, वह महत्व रखता है , और यह चिड़िया तो अपने ऊपर हुए अन्याय का विरोध कर ही रही है आप से गुहार भी लगा रही है अतः आपको इनके बच्चे वापस कर देना चाहिए परंतु अहंकार वश समुद्र ने ऋषि की बात नहीं मानी और अगस्त्य ऋषि ने क्रोधित होकर उन्हें अपने अंदर पान कर लिया और देवताओं के आह्वान पर उन्हें अपने एक कान से वापस भी किया और चिड़िया के बच्चे भी सुरक्षित हुए , तथा समुद्र का अहंकार भी चूर-चूर हो गया इससे हमें प्रेरणा मिलती हैं की चाहे हम कितने भी छोटे हो असहाय हो परंतु कभी भी अन्याय को सहन नहीं करना चाहिए उसके खिलाफ आवाज अवश्य उठानी चाहिए कभी ना कभी कोई ना कोई हमारा साथ तो अवश्य देगा हो सकता है भविष्य में अगस्त से जैसे महान पुरुष भी प्राप्त हो जाए भगवान इस राह में हमेशा हमारा साथ देते हैं इसीलिए कभी भी अन्याय को हमें सहन नहीं करना चाहिए अगस्त्य मुनि वही हुए थे जो कुंभज ऋषि के नाम से भी प्रसिद्ध थे कुंभज ऋषि वह महान रामायण ज्ञाता और ज्ञानी थे जिनके पास कथा सुनने स्वयं भगवान शंकर आते थे
वे महान रामायण के ज्ञाता अगस्त्य मुनि हुए
नरेंद्र विश्वकर्मा