गुरु गोविंद सिंह जी ने कैसे बनाएं पंच प्यारे,पांच ककार है सच्चे सिक्ख की पहचान , रामबालक दास जी

गुरु गोविंद सिंह जी ने कैसे बनाएं पंच प्यारे,पांच ककार है सच्चे सिक्ख की पहचान , रामबालक दास जी
संत श्री राम बालक दास जी



पाटेश्वर धाम के संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा ऑनलाइन सत्संग का आयोजन प्रतिदिन उनके विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुपों में प्रातः 10:00 से 11:00 बजे एक साथ आयोजित किया जाता है जिसमें भक्तगण जुड़कर अपनी जिज्ञासाओं का समाधान प्राप्त करते हैं
           आज के सत्संग परिचर्चा में प्रेमचंद्र जी ने कागभुसुंड के चरित्र पर प्रकाश डालने की विनती की  इस पर बाबा जी ने बताया कि कागभुसुंडि जी का जीवन चरित्र बहुत ही  महान रहा उन पर प्रभु की विशेष कृपा रही जिसके कारण ही उन्होंने इतने महान रामचरितमानस को जनमानस के कल्याण के लिए उद्धृत किया उत्तरकांड मे कागभुशुण्डि जी से प्रश्न किया गया कि आप ने का इस रूप को ही क्यों ग्रहण किया है आप चाहते तो इस रूप का त्याग भी कर सकते थे तब उन्होंने कहा कि जिस रूप में परमात्मा मिले वही रूप सार्थक होता है, काग भुसुंडि जी कहते हैं कि मैं ब्राह्मण पुत्र था  गुरु की शरण में गया और भगवान का नाम जप कर रहा था और इतने में ही गुरु आ गये और मैं जप से नहीं उठ पाया गुरु ने तो कुछ नहीं कहा लेकिन भगवान नाराज हो गए और उन्होंने श्राप दे दिया कि अजगर के समान बैठा है जा अजगर ही बन जा तब गुरु ने भगवान से क्षमा मांगते हुए कहा कि मेंरे इस शिष्य को आप श्राप मुक्त कर दो तब भोलेनाथ भगवान ने मुझे श्राप मुक्त किया और मैं भगवान के प्रेम में इधर-उधर भटकते हुए लोमश ऋषि के आश्रम पर पहुंचा जहां पर मैं लोमस ऋषि से तर्क करने लगा की राम कौन है राम यह है कि राम वह है, तब लोमश जी क्रोध में आ गए और उन्होंने मुझे श्राप दिया कि कौवे की तरह कांव-कांव करता है जा कौवा बन जा लेकिन भगवान के प्रति अटूट प्रेम देखकर उन्होंने मुझे आशीर्वाद भी दिया कि तुम्हें भगवान भी इसी रूप में प्राप्त होंगे और तुम अपना जब चाहो रूप भी बदल सकते हो तब ही से काग भुसुंडि जी अति ज्ञानी हुए और भगवान के भक्त बने और उन्हें श्री राम जी की शरण प्राप्त हुई और मोह माया के पास से दूर होने के कारण भगवान शिव ने गरुड़ जी को उनके समक्ष भेजा और वहां पर इस महान ग्रंथ रामचरितमानस का उद्बोधन हुआ जिसे भगवान शिव ने भी कहा और वही तुलसीदास जी के द्वारा भी व्यक्त की गई है


              पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने जिज्ञासा रखी की   गुरू गोविंदसिंह जी के सवा लाख से एक लड़ाऊॅ, धर्म की रक्षा के लिये दिये गये पाॅच ककार तथा प्रकाश पर्व पर कृपया प्रकाश डालने की कृपा करें बाबाजी।, बाबा जी ने बताया कि मुगल काल में जहां भारत कठिन अराजकता का सामना कर रहा था वहां आवश्यकता थी कि धार्मिक प्रबलता का जोर हो, उसके साथ ही पूरा भारत ओज वीरता और सबलता के साथ आगे बड़े, ऐसे समय में कहीं पर गौतम बुद्ध के शिष्य शांति का पाठ सिखा रहे थे, तो कहीं पर स्वयं भगवान ही आकर हमारी रक्षा करेंगे इस तरह के धार्मिक प्रवृत्ति को लेकर हिंदुओं ने अपना वीरता खो दिया था और इस तरह से 11 बार सोमनाथ के मंदिर को लूटा गया, और यह सिद्ध हुआ कि जो स्वयं की रक्षा नहीं कर सकते तो उसकी भगवान भी रक्षा नहीं करता, तब संपूर्ण समाज को संगठित करने के लिए गुरु गोविंद सिंह ने तेग बहादुर और अपने चारों पुत्रों की शहादत के बाद एक शस्त्र वाला संगठन बनाया, और सिख परंपरा को उन्होंने तेज और ओज से भर दिया, इसी परंपरा को बनाए रखने के लिए उन्होंने 1 दिन प्रकाश पर्व पर बैशाखी के  मेले में  पूरे भारतवर्ष को ललकारते हुए कहा कि भारत माता को पांच ऐसे पुत्रो की आवश्यकता है जो उनके लिए अपना बलिदान दे तब उन्हें ऐसे पांच कृपाल कड़ा धारण करने वाले भारत माता के लिए अपना सर्वस्व निछावर करने वाले करार सिख प्राप्त हुए और यह परंपरा अभी तक चली आ रही है जिनके अनुसार कच्छ ओर उनके हाथों में कड़ा हाथ में कृपाल और हमेशा ही बाल बंधे हुए सर पर पगड़ी रहेगी कंघा रहेगा और यह कड़ा इस तरह का होता है कि जिससे केवल हाथ में नहीं पहना जाता इससे कई शत्रु का नाश होता है और कृपाल उन सभी शत्रुयों का नाश करती जो भारत माता के विरोध में होते हैं
     इस प्रकार आज का ऑनलाइन सत्संग संपन्न हुआ

रिपोर्ट // नरेंद्र विश्वकर्मा