भगवान शंकर ने अर्धनारीश्वर रूप क्यों धारण किया था-संत श्री राम बालक दास जी

भगवान शंकर ने अर्धनारीश्वर रूप क्यों धारण किया था-संत श्री राम बालक दास जी

प्रति दिन की भांति ऑनलाइन सत्संग का आयोजन संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा उनके विभिन्न वाट्सएप  ग्रुप में अनवरत रूप से चल रहा है जिसमें सभी भक्तगण प्रातः 10:00 बजे से  जुड़कर इस सत्संग का लाभ प्राप्त कर रहे हैं एवं अपनी जिज्ञासाओं का समाधान भी प्राप्त कर रहे हैं 

आज सत्संग परिचर्चा में पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने जिज्ञासा रखी थी बाबा जी भगवान शंकर ने अर्धनारीश्वर रूप क्यों धारण किया था कृपया प्रकाश डालने की कृपा करेंगे।, भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप का बखान करते हुए बाबा जी ने बताया कि वास्तव में भोलेनाथ और मैया पार्वती कभी भिन्न  थे ही नहीं अपितु एक दूसरे के वे पूरक है उद्देश्य पूर्ति के लिए समय-समय पर  लीला एवं उद्देश्य पूर्ति हेतु विभन्न रूपों में अवतरित होते रहते हैं, एक दूसरे की लीला संवरण के लिए एक दूसरे के उद्देश्य को ध्यान में रखकर वे रूप धारण करते हैं
            भगवान शिव के अर्धनारिश्वर रूप से तीन संदेशों का ज्ञान हमें प्राप्त होता है, भगवान शिव एवं मैया पार्वती पुरुष और प्रकृति का रूप है पुरुष प्रकृति के बिना अधूरा है और प्रकृति पुरुष के बिना यह एक दूसरे के पूरक है जब इसमें संतुलन बिगड़ जाए तो प्रलय आ जाता है भगवान शिव प्रकृति को संतुलित करके रखते हैं और प्रकृति पुरुष को, भोलेनाथ जिनकी तीसरे नेत्र में सारी सृष्टि का प्रलय समाया हुआ है अगर वह खुल जाए तो वह पूरी पृथ्वी को पूरी सृष्टि को भस्म कर सकती है उन्हें अपने मोह ममता पास में बांधकर प्रकृति रूपी मैया पार्वती रखती है और मां काली जोकि चंडिका का रूप है उनके रौद्र रूप उनके इस स्वरूप को समेट कर के पुरुष रूपा शिव उसे अपने आप में समाहित रखते हैं इस प्रकार यह अर्धनारिश्वर का रूप पुरुष और प्रकृति का संतुलन है
           दूसरा कारण है कि भगवान शिव ने संकल्प मात्र से ही पूरी सृष्टि का निर्माण कीया उन्होंने ब्रह्मा विष्णु एवं संपूर्ण ब्रह्मांड का निर्माण किया उन्होंने पाया कि पुरुष एवं स्त्री मिलकर के इस सृष्टि का निर्माण करेंगे तब उनमें अहम की भावना भी आएगी तब उन्होंने अर्धनारिश्वर का रूप धारण करके यह संदेश दिया कि वे एक दूसरे से अलग नहीं है वे एक दूसरे का ही पूरक है
             तीसरा कारण है कि जब माता सती यज्ञ में भस्म हुई तब भगवान शिव उनके शरीर को लेकर के अत्याधिक विचलित होकर यहां-वहां भटकने लगे तब भगवान विष्णु ने चक्र से माता सती के शरीर को 52 भागों में विभाजित कर दिया यह शक्ति पिंड आकर धरातल पर गिरे और धरती माता इसे सह सकने में असमर्थ हुई तो वे  रसातल में समाने लगी और सभी देवताओं ने भगवान भोलेनाथ से विनती की क्योंकि उन्होंने गंगा को भी धारण किया था तो वह जब मां गंगा के वेग को संभाल सकते हैं तो शक्ति के शक्ति पिंडों के वेग को भी वे ही संभाल सकते थे तब उनकी कृपा की विनती उनसे की गई तो उन्होंने 52 भैरव का रूप धारण करके माता सती के वेग को संतुलित किया इस प्रकार से अर्धनारीश्वर का स्वरूप स्थापित हुआ और दोनों ने ही एक दूसरे के वेग को संतुलित किया
        पाठक परदेसी जी ने जिज्ञासा रखी थी 

    भगवान आशुतोष को अति प्रिय लगने वाली भस्म आरती की महिमा पर प्रकाश डालने की कृपा हो भगवन भस्म आरती के महत्व को विदित करते हुए बाबा जी ने बताया कि यदि भगवान भोलेनाथ की सानिध्यता चाहिए तो भस्म  बनना पड़ेगा शिव कहते हैं कि जब तक तुम में तुम है और हम में हम हैं तो मुझे ना तुम प्राप्त कर पाओगे ना ही मैं तुम्हें प्राप्त कर पाऊंगा जब तक पूरी तरह से हम भगवान शिव को समर्पित नहीं हो जाते अर्थात हम भस्मी भूत नहीं हो जाते हमारी मानसिकता हमारी संवेदना काम क्रोध मद लोभ से अलग हो करके पूरी तरह भसमी भूत नहीं हो जाती तो भोलेनाथ भी हमें अपनी शरण में नहीं लेते भगवान शिव की भस्म आरती के चिता में उनके प्रिय भक्त जलकर भस्म हो जाते हैं उनकी चिता भस्म को  अपने शरीर पर धारण करते हैं, वे अपने भक्तों से कितना प्यार करते हैं यह उनके भक्तों के प्रति उनके प्रेम का प्रतीक है
    कहा जाता है कि एक समय भगवान भोलेनाथ ने यह देखा कि 4 लोग अपने कंधों पर एक आदमी को ले जा रहे होते हैं और वे राम राम सत्य है कहते जा रहे होते हैं तो भगवान भोले भी उनके पीछे-पीछे जाने लगते हैं और कुछ देर जाकर देखते हैं कि सभी अपने अपने कामों में मस्त हो जाते हैं लेकिन वह व्यक्ति जो उनके कंधों पर था वह जल जाता है क्योंकि राम नाम के पवन नाम में वहां भसमी  भूत हो जाता है तो भगवान भोलेनाथ उसकी भस्म को अपने शरीर पर रमा लेते हैं
     आगे सत्संग परिचर्चा में देवीलाल जंघेल जी ने जिज्ञासा रखी थी 
बैद मुआ रोगी मुआ,मुआ सकल संसार|
एक कबीरा न मुआ,जाके राम अधार ||, बाबा कबीर की पंक्तियों के भाव को स्पष्ट करते बाबा जी ने बताया कि संसार में वेद रोगी सभी लोग समस्त संसार ही मुर्दा पड़ा हुआ है क्योंकि उन्हें अपने जीवन जीने की कला ही नहीं आती कबीर जी कहते हैं कि जो संसार में भगवान का नाम लेकर उसकी शाश्वत ता  को सत्य मानते हुए लक्ष्य को लेकर चलता है वही इस जीवन में जिंदा है बाकी सभी लोग मुर्दा है