अभिमान हमेशा अंधकार और दुख की ओर ले जाता है
संत श्री राम बालक दास जी का ऑनलाइन सत्संग निरंतर अपने भक्तों गणों के लिए उनके व्हाट्सएप ग्रुप में प्रतिदिन आयोजित किया जाता है
जिसमें आज जिज्ञासा रखते हुए गिरधर सोनवानी जी ने प्रश्न किया कि
मोह मूल बहु सुल प्रद त्यागहु तम अभिमान
भजहु राम रघुनायक कृपा सिंधु भगवान
, रामचरितमानस के सुंदरकांड की इन पंक्तियों को स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि गोस्वामी तुलसीदास जी रचित इन पंक्तियों में दो अर्थ छुपे हुए हैं जिसे सीधा हम समझ सकते हैं कि यहां पर विभीषण जी रावण को कह रहे हैं कि मोह ही जिनका मूल है , बहुत पीड़ा देने वाले, तमरूप अभीमान का त्याग कर दो और कृपा के समुद्र भगवान श्री रामचंद्रजी का भजन करो, और दूसरा इसका अर्थ देखे तो अभिमान हमेशा अंधकार और दुख की ओर ले जाता है, अभिमान ही बहुत सारे कष्टों को पैदा करने का कारक है, और अहंकार से ही मोह पैदा होता है, मोह उस काली रात्रि के समान है, जो कि सभी तामसिक वृत्तियों को पैदा करने वाली है, जो कि राक्षसी प्रवृत्तियों को जन्म देता है इसीलिए मनुष्य को चाहिए कि हमेशा सरल रहे अभिमान और अहंकार का त्याग करके हल्के रहे मुस्कुराते रहे सबको खुश रखे और फूल की तरह अपना जीवन जीये किसी पर बोझ ना बने, जो अपने जीवन को इस तरह से जीएगा वही श्री राम जी का भजन कर सकता है
पुरुषोत्तम अग्रवाल जी ने जिज्ञासा रखी की पंचमहायज्ञ के संबंध में प्रकाश डालने की कृपा करें।, बाबा जी ने बताया कि पंच महायज्ञ की कई तरह से व्याख्या की जा सकती है प्रथम तो जो हमारा या पंचभूत रूपी शरीर है, पांच ज्ञानेंद्रिय,पांच कमेंद्रीय, इनकी जो भी व्यावहारिक भौतिक, कर्म होते हैं वह पंच महायज्ञ कहलाते हैं जैसे भोजन के पूर्व भी पांच आहुति निकालना पंच महायज्ञ है, या फिर अग्नि में दी गई पांच आहुति भी पंच महायज्ञ है, हम सभी की आवृत्ति,भृति,वृति, निवृत्ति और प्रवृत्ति पंच प्रकार की प्रवृत्तियों से किए जाने वाले कर्म को भी पंच महायज्ञ में रखा गया है
संत श्री राम बालक दास जी ने आज बताया की पाटेश्वर धाम के यूट्यूब चैनल ,,,rambalakdas ,,पर वीरेंद्र नगर में हो रहे महायज्ञ