बालोद के अपर कलेक्टर अनिल वाजपेयी डॉक्टर ऑफ फिलासफी की उपाधि मिली...जज्बा और जुनून अभी भी बाकी है पढ़िये ये खबर...

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बालोद के अपर कलेक्टर अनिल वाजपेयी डॉक्टर ऑफ फिलासफी की उपाधि मिली...जज्बा और जुनून अभी भी बाकी है पढ़िये ये खबर...

बालोद के अपर कलेक्टर अनिल वाजपेयी डॉक्टर ऑफ फिलासफी की उपाधि मिली...जज्बा और जुनून अभी भी बाकी है पढ़िये ये खबर...

बालोद//जिले के अपर कलेक्टर को मिली 'डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी' की उपाधि, प्रशासन के स्वरूप और कार्य प्रणाली में बदलाव पर किया शोध यह शोध कार्य डॉ. के के अग्रवाल प्राध्यापक डा.खूबचंद बघेल शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय भिलाई 3 दुर्ग के निर्देशन में किया गया जबकि शोध सह निर्देशक डॉ.अनिल कुमार पाण्डेय विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय दुर्ग थे।

 बालोद। जिले के अपर कलेक्टर ए.के.बाजपेयी को पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर द्वारा डॉक्टर ऑफ फिलॉसफी की उपाधि प्रदान की गई है। अपर कलेक्टर बाजपेयी को यह उपाधि सामाजिक विज्ञान संकाय के तहत उनके शोध कार्य दुर्ग जिला प्रशासन के बदलते स्वरूप का ऐतिहासिक विश्लेषणः ग्रामीण विकास के विशेष संदर्भ में ( 1994-2015 तक )" के लिए प्रदाय की गई है। यह शोध कार्य डॉ. के के अग्रवाल प्राध्यापक डा.खूबचंद बघेल शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय भिलाई 3 दुर्ग के निर्देशन में किया गया जबकि शोध सह निर्देशक डॉ.अनिल कुमार पाण्डेय विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय दुर्ग थे।  डॉ.बाजपेयी ने बताया कि प्रस्तुत शोध का उद्देश्य यह पता लगाना था कि दुर्ग जिला प्रशासन के स्वरूप और कार्य प्रणाली में क्या बदलाव आया है। ग्रामीण विकास के लिए दुर्ग जिला प्रशासन कितना सचेत और सक्रिय रहा है। कब कब किस हद तक ग्रामीण विकास के प्रति कृत संकल्पि योजनाएं बनी और इन योजनाओ के क्रियान्वयन में जिला प्रशासन कितना सचेत और सक्रिय रहा है। इस संदर्भ में प्रशासन के अधिकारीगण, कर्मचारियों, जनप्रतिनिधिगण और हितग्राहियों की सोच क्या है। डॉ.बाजपेयी ने बताया कि आजादी के बाद से अब तक जिला प्रशासन के ढांचागत स्वरूप मे कोई बदलाव परिलक्षित नहीं होता लेकिन उसकी कायर्प्रणाली मे उसकी सोच में उसके व्यवहार में काफी बदलाव दिखाई देता है। पंचायती राज व्यवस्था ने जिला प्रशासन और जनप्रतिनिधियों को एक दूसरे के करीब लाने का काम किया है और दोनों में बेहतर तालमेल के साथ विकास की गतिविधियां मूर्त रूप ले रही है। नरवा गरूवा घुरूवा बाड़ी योजना के माध्यम से छत्तीसगढ़ की मूल संस्कृति को अक्षुण रखते हुए गांव के विकास की जो परिकल्पनाएं की गई है वह गढ़वो नवा छत्तीसगढ़ के ध्येय वाक्यों और संकल्पानाओं के साथ साकार हो रही है। उन्होंने आगे बताया कि यह शोध प्रबंध इन्ही विषयों पर केन्द्रित है। यह शोध प्रबंध न केवल इतिहास के विद्यार्थियों और भविष्य के शोधार्थियों के लिए बल्कि प्रशासनिक अधिकारियों और प्रतियोगी परिक्षाओं में शामिल होने वाले उम्मीदवारों के लिए भी उपयोगी साबित होगा।

आर के देवांगन/अरुण उपाध्याय मो-7089094826/9425572460