भगवान किसी भी रूप में अवतरित हो उनका चरित्र आदर्श चरित्र होता है-श्री राम बालकदास जी
भगवान किसी भी रूप में अवतरित हो उनका चरित्र आदर्श चरित्र होता है-श्री राम बालकदास जी
प्रतिदिन की भांति आज ऑनलाइन सत्संग का आयोजन सीता रसोई संचालन ग्रुप में संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा किया गया, सभी भक्तगण तात्विक अध्यात्मिक धार्मिक एवं समसामायिक ज्ञान को प्राप्त कर रहे हैं एवं विभिन्न प्रश्नों के समाधान से अपने बुद्धि विवेक का जागरण कर रहे हैं
आज की सत्संग परिचर्चा में राम सिंह यादव जी नवकेशा ने किसान मन की व्यथा को प्रकट करते हुए प्रश्न किया कि किसानों को तो प्रतिदिन अनगिनत जीव हत्या करनी पड़ती है तो इस पाप से किस तरह बचा जा सकता है बाबा जी ने बताया कि प्राचीन समय में पूर्ण रूप से जैविक खेती किया जाता था इसके लिए गोबर से निर्मित खाद को ही खेतों में डाला जाता था जिससे कि किसान के किट मित्र उत्पन्न होते थे अर्थात खेत में ही केंचुए जैसे जिव पनपने लगते थे जो कि बहुत उत्तम कोटि की खाद भी निर्मित करते थे और इससे किसी भी तरह के रसायन को खेतों में नहीं डालना पड़ता है और हम बहुत सारे कीट की हत्या से बच जाते थे दूसरा है रसायनिक कीटनाशक का उपयोग करना इसके लिए हम नीम पत्ते हर्बल तंबाकू आदि का छिड़काव कर सकते हैं जो कि प्राचीन समय में किया भी जाता था इससे केवल वही किट मरते हैं जो कि नुकसानदायक होते हैं पहले के समय में खेतों में मछलियां और सांप हुआ करते थे सांप अनगिनत चूहों को खा लिया करते थे और अनावश्यक कीटों को मछलियां खा लिया करती थी इन्हें आज भी आप पालन कर सकते हो और प्राकृतिक रूप से की जाने वाली खेती से विभिन्न जीव हत्या से हम बच सकते हैं
रामेश्वर वर्मा जी भीम पुरी ने रामचरितमानस की चौपाई संत हृदय नवनीत समाना.... के भाव को स्पष्ट करने की विनती की बाबाजी ने बताया कि रामचरित मानस की इन पंक्तियों में तुलसीदास जी ने संत चरित्र पर अपने विचार रखते हुए, संत ह्रदय को मक्खन के समान कोमल बताया है लेकिन मक्खन तो अपने ही ताप पर द्रवित हो जाता है परंतु संत हृदय ऐसा होता है जो कि अपने ताप पर अर्थात अपने कष्टों पर तो नहीं परंतु दूसरों के कष्ट को देखकर ही द्रवित होता है, संतो से दूसरों का कष्ट दुख दर्द नहीं सहा जाता
तिलक राम जी राजिम ने जिज्ञासा की,भगवान श्री राम को अपने जीवन में इतने सारे कष्ट मिले,फिर भी हम अपने कष्टो को दूर करने के लिए भगवान श्री राम को पुकारते हैं?
इस भाव को स्पष्ट करते हुए बाबा जी ने बताया कि भगवान किसी भी रूप में अवतरित हो उनका चरित्र आदर्श चरित्र होता है हम किसी भी मंदिर में भी भगवान के दर्शन करने जाते है तो उस विग्रह को भी निर्मित होने के लिए कई कष्टों से गुजरना होता है अगर वह लोहे की प्रतिमा है तो उसे आग में जलना होता है मिट्टी से बनी है तो कुम्हार के रोदने से होकर गुजरना होता है और लकड़ी या पत्थर से निर्मित है तो हथौड़ी की मार सहनी होती है तो भी हम उस विग्रह को प्रणाम करते हैं और सारे दुख उनके समक्ष रखते हैं, वैसे ही भगवान श्री राम कहे चाहे कृष्ण कहो चाहे किसी भी रुप में भगवान हो उनका चरित्र भी आदर्श चरित्र होता है और कष्टों से ही वह निर्मित होता है भगवान श्री कृष्ण तो बचपन से ही कष्ट झेलते आए हैं वह माता-पिता से वंचित हुए, बचपन से ही दानवो का वध किया यशोदा मैया से दूर हुए राधा रानी गोपियों से दूर हुए इस तरह से उनका जीवन कष्ट भरा रहा फिर भी मुस्कुरा कर उन्होंने सबके कष्ट दूर कीये उसी तरह मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी का चरित्र भी है, जो कि हमें मानव जीवन में किस तरह से आगे बढ़ना चाहिए इसका आदर्श रूप प्रस्तुत करता है, भगवान होते हुए भी उन्होंने हर कष्ट को झेला और धैर्य पूर्वक सहनशीलता का परिचय दिया इसी तरह हमें भी अपने जीवन में हर कष्ट को झेलते हुए आगे बढ़ना चाहिए रामचरितमानस में ही भगवान श्री राम के नाम की महिमा का बखान किया गया है कहा जाता है कि भगवान राम से भी बड़ा उनका नाम है अतः हमेशा जय श्री राम का उद्घोष करते हुए अपने जीवन में आगे बढ़ना चाहिए ताकि भगवान राम प्रभु आपके हर कष्ट को हर ले
रिपोर्ट //नरेन्द्र विश्वकर्मा