क्या बुद्ध ने हमारें वेदों की निंदा की थी।जानिए श्री राम बालक दास जी से
ऑनलाइन सत्संग का आयोजन संत श्री राम बालक दास जी के द्वारा उनके विभिन्न व्हाट्सएप ग्रुपो में प्रातः 10:00 बजे किया गया, इसमें आज बुद्ध पूर्णिमा नरसिंह पूर्णिमा की शुभकामनाएं एक दूसरे को प्रेषित करते हुए उस पर भक्तों की जिज्ञासाए भी प्रस्तुत हुई जिसका समाधान संत जी के द्वारा किया गया
पुरुषोत्तम अग्रवाल जी थानखम्हरिया ने जिज्ञासा रखी की महाराज जी संतों से मैंने सुना था कि एक बुद्ध ने हमारे वेदों की निंदा की थी तो क्या दो बुद्ध भगवान हैं। कृपया प्रकाश डालेंगे महाराज जी, संत श्री ने स्पष्ट किया कि भगवान बुद्ध स्वयं नारायण जी के अवतार थे और नारायण कभी वेद नारायण का खंडन नहीं करते, यदि ऐसा कहा गया है कि भगवान बुद्ध ने वेद पुराणों निंदा की गई है तो यह असत्य है, संत कबीर संत तुलसीदास जी के समान ही अपने समय में होने वाले पुराण के नाम पर कुप्रथा ओं का, पाखंडो का बुद्ध ने विरोध किया
रामेश्वर वर्मा जी भीमपुरी ने चन्द्र ग्रहण के विषय में जानने की जिज्ञासा संत श्री के समक्ष रखी, बाबा जी ने बताया कि ग्रहण भी एक आवश्यक कृत्य है यह प्रकृति के संतुलन को बनाने के लिए ग्रहों की चाल को बदलने के लिए जीवन में सुख और दुख की चाल को बनाए रखने के लिए आवश्यक होता है हमारे जीवन में जैसे राशि नक्षत्र का महत्व होता है उसका शुभ अशुभ की गणना की जाती है वैसे ही ग्रहण अर्थात पूरी सृष्टि मे कोई ग्रह का आना के कारण पूरे ब्रह्मांड पर उसका प्रभाव पड़ता है चंद्रग्रहण में 9 घंटा पहले सूतक तो सूर्य ग्रहण में 12 घंटा पहले सूतक माना जाता है इस समय में मंदिर और देवालय बंद रहते हैं छोटे बच्चों और बृद्ध लोगों को ही सूतक काल में खाना चाहिए है और बाकी को ग्रहण के समय खाने की अनुमति नहीं होती
रामफल जी बकेला ने जिज्ञासा रखी की परशुराम जी कहते हैं मैंने 21 बार क्षत्रियों को पृथ्वी से विहीन किया हूं क्षत्रियों को ही क्यों मारते थे इसके पीछे क्या रहस्य है प्रभु प्रकाश डालने की कृपा करे, संत श्री ने स्पष्ट किया कि भगवान परशुराम जी ने सहस्त्रबाहु का नाश किया तब उसकी 21 पीढ़ियां वर्षों से एकछत्र राज कर रही थी और वह स्वयं 10000 वर्षों से राज्य कर रहा था परशुराम जी ने दुष्कर्मी और दुराचार यों का ही नाश किया और उसके बाद जीते गए भूमि को ब्राह्मणों को दान दे दिया और ब्राह्मणों ने धर्मात्मा राजा की स्थापना की
पाठक परदेसी जी बैजलपुर ने जिज्ञासा रखी की
कबीर कलयुग कठिन है, साधु ना माने कोयl
कामी क्रोधी मसखरा, तिनका आदर होll
संत कबीर की वाणी पर प्रकाश डालने की कृपा हो भगवन, बाबा जी ने बताया कि कलयुग मे जहां पर साधु के ज्ञान को देखकर नहीं बल्कि रूप रंग को देखकर आदर सम्मान दिया जाएगा कबीर जी की वाणी में उद्धृत किया गया है
मानसी साहू जी ने जिज्ञासा रखी
राम चरित जे सुनत अघाहीं! रस बिसेष जाना तिन्ह नाहीं! जीवन मुक्त महामुनि जेऊ! हरि गुन सुनहीं निरंतर तेऊ! इस पर प्रकाश डालने की कृपा हो प्रभु जी, बाबा जी ने बताया कि रामचरित्र के महत्व को बताते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी ने बताया कि रामचरितमानस जी की लीला कथा को सुनकर कोई यदि कहता है कि मन भर गया तो समझ लेना वह को पात्र अयोग्य है उसे कुछ ज्ञान प्राप्त हुआ ही नहीं है क्योंकि भगवान की कथा जितनी बार सुनो उतना ही आपका मन जिज्ञासु होता जाता है भगवान की लीला रस में मन चित्त सरोवित हो जाता है और मन करता है कि जन्म जन्मांतर तक यह कथा हम सुनते ही जाए
रामेश्वर वर्मा जी ने जिज्ञासा रखी की
रामचरित मानस एहि नामा।सुनत श्रवण पाइअ विश्रामा।।मन करि विषय अनल बन जरई।होई सुखि जौ एहि सर पाई।।इस चौपाई पर प्रकाश डालने की कृपा करेंगे गुरु देव बाबा जी ने बताया कि हम विषय भोग विलासिता में अपना समय बिता रहे हैं जैसे जंगल में लगी हुई आग में स्वयं कूद रहे हैं यहां कौन सा व्यक्ति सुखी है वही व्यक्ति सुखी है जो रामचरितमानस सरोवर में छलांग लगा लेता है
//नरेन्द्र विश्वकर्मा