सीएसव्हीटीयू के विश्वविद्यालय शिक्षण विभाग मनाया गया हिन्दी दिवस

सीएसव्हीटीयू के विश्वविद्यालय शिक्षण विभाग मनाया गया हिन्दी दिवस
सीएसव्हीटीयू के विश्वविद्यालय शिक्षण विभाग मनाया गया हिन्दी दिवस

सीएसव्हीटीयू के विश्वविद्यालय शिक्षण विभाग मनाया गया हिन्दी दिवस

 प्रथम वक्ता डॉ.आशीष पटेल ने बताया कि आजादी के बाद भारत की संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को देवनागरी लिपि हिन्दी को भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार किया और 26 जनवरी 1950 को संविधान के अनुच्छेद 343 में हिन्दी को आधिकारिक राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया गया। देश के प्रथम प्रधानमंत्री पं. नेहरू ने 14 सितंबर 1953 को हिन्दी दिवस मनाने की शुरुआत किया और बिहार राज्य ने सर्वप्रथम 1881 में हिन्दी भाषा को राजकीय भाषा बनाया। दूसरे वक्ता सहायक प्राध्यापक तुलेश्वर साहु ने हिन्दी के प्रचार-प्रसार पर जोर दिया और हिन्दी वर्णमाला के उद्भव पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम के मुख्य वक्ता व विवि शिक्षण विभाग के निदेशक प्रो.पी.के.घोष ने पराधीनता समय से लेकर अब तक हुए हिन्दी भाषा के उतार चढ़ाव पर प्रकाश डाला और हिन्दी भाषा के माध्यम से शिक्षा एवं रोजगार के संसाधनों में सुधार का समर्थन किया उन्होंने बताया कि 1853 में मैकाले ने ब्रिटिश संसद से भारत के राजकीय भाषा के रूप में अंग्रेजी भाषा को स्थापित कराते हुए एक्ट पारित करवाकर कैसे षड़यंत्र पूर्वक भारतीय शिक्षा व भाषा को खत्म करने का बीज बोया जिसका दंश झेल रहे भारतीय लोकतंत्र व्यवस्था में आज भी अंग्रेजी की अहमियत ना चाहते हुए भी हावी हो रही है जबकि सामाजिक और व्यवहारिक जीवन पूर्णतः हिन्दी भाषा पर आधारित है।

हिन्दी भाषा सर्वाधिक वैज्ञानिक भाषा संस्कृत से उत्पन्न है और शब्दकोश से संपन्न भाषा है जहां संवाद हेतु स्पष्ट व असीमित दायरा है उन्होंने बताया कि पूरे विश्व के 200 देशों में सिर्फ 14 देश में ही अंग्रेजी हावी है ये वही देश है जो कभी ब्रिटिश साम्राज्य के गुलाम थे। प्रथम व द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान अमेरिका जैसे देशों पर व्यापारिक संबंध बढ़ने से ही अंग्रेजी थोड़ा हावी हो गया जबकि भारत देश विश्व के सबसे बड़े विकासशील अर्थव्यवस्था में से एक है जहाँ की लगभग 80% आबादी हिन्दी भाषा बोल और समझ लेती है पर हम हिन्दी जैसे उत्कृष्ट व्यवहारिक व सामाजिक भाषा को अपने ही देश के व्यवसायिक भाषा के रूप में स्थापित करने में असफल रहे जिसका खामियाजा यह हुआ कि आज भी भारतीय जनजीवन को विदेशी कंपनियों द्वारा निर्मित उत्पादों पर मजबूरी में आश्रित होना पड़ रहा है और स्थानीय उत्पाद कहीं ना कहीं तिरस्कार के शिकार हो रहे है। आज परिस्थिति ऐसी है कि ना भारतीय पूरे तरह हिन्दी भाषी है ना पूरे तरह अंग्रेजी भाषी जिसके कारण हम सभी हिंग्लिश भाषी हो गये है,इससे हमारी शिक्षा, रचनात्मक दक्षता और कुशलता प्रभावित हो रही है। एआईसीटीई द्वारा अब क्षेत्रीय भाषाओं पर शिक्षा देने की पहल की जा रही है जो सराहनीय है आशा है इस कार्यक्रम से तकनीकी शिक्षा का विकास अधिक तेजी से होगा। कार्यक्रम का संचालन कर रहे पीएचडी स्कॉलर अनील रॉय ने विभिन्न हिन्दी साहित्यिक कविताओं और छंदों के माध्यम से कार्यक्रम का समा बांधा और हिन्दी भाषा को मॉ का संज्ञा दिया। आभार प्रकट करते हुए सहायक प्राध्यापक आशीष शर्मा ने हिन्दी भाषा की महत्ता और उपयोग से होने वाले भारतीय जनजीवन में अमूलचूल परिवर्तन पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय शिक्षण विभाग के प्रध्यापकों सहित छात्रों की उपस्थिति रही। कार्यक्रम की जानकारी विश्वविद्यालय के जनसंपर्क विभाग द्वारा दी गई।