माता-पिता,गुरूजनों की सेवा ही यज्ञ है - धर्मगुरू नसी साहेब

माता-पिता,गुरूजनों की सेवा ही यज्ञ है - धर्मगुरू नसी साहेब
माता-पिता,गुरूजनों की सेवा ही यज्ञ है - धर्मगुरू नसी साहेब

माता-पिता,गुरूजनों की सेवा ही यज्ञ है - धर्मगुरू नसी साहेब

गांव गांव गुरू सतनाम रावटी के माध्यम से सतनाम संदेश दे रहे गुरूद्वारा भंडारपुरीधाम के धर्मगरू नसी साहेब ने गुरूवाणी में बताया की वैर करने से वैर खत्म नहीं होता, जैसे गंदे पानी से गंदे वस्त्र साफ नहीं होते। वैर तो अवैर अर्थात् मैत्री या क्षमा से ही शान्त होता है। यही सन्त मत है, यही सनातम धर्म है। परमपूज्य बाबा गुरूघासीदास ने किसी नए मत-पंथ की बात नहीं की। उन्होंने प्राचीन काल से भारत में चली आ रही धर्म की सत्य शाश्वत अवधारणा को ही नवीन शब्दों और अपने जीवन से पुनर्व्याख्यायित किया।

जब भी गुरु नई परंपरा डालते हैं, तो पुरानी नींव पर ही नया निर्माण करते है जिसमें सत्य, अहिंसा, मानवता, शान्ति और मोक्ष प्राप्ति का ही महत्व है, बाकी कोई बात उसमें महत्व नहीं रखती सिवाय जीवन मुक्ति की कामना के।

इस शाश्वत मुक्ति के सत्य मार्ग में जो भी बाधक है, उन सबका त्याग ही सतनाम धर्म का मूल है। एक न एक दिन सभी को विनष्ट होना ही है, जो इस तथ्य को भलीभांति गांठ बांध लेते हैं, वह फिर कभी किसी से कलह नहीं करते।

जैसे दीपक रात्रि हो जाने पर शोभा पाता है, वैसे ही सतनाम को मानने वाले सत्य -अहिंसा के मार्ग पर चलने के कारण ही सुन्दर लगते है। किसी पर प्रहार न करे, मनुष्य परस्पर मनुष्यता के साथ ही रहे और एक दूसरे के विरुद्ध हिंसा न करे। पितरों के तर्पण करने से पितरों को मुक्ति नहीं मिलती,उनके जीवित रहते सच्ची श्रद्धा के साथ उनकी सेवा करने से वे तृप्त होते है और आशीर्वाद प्रदान करते हैं।

सतपुरुष पिता का साक्षात्कार और मोक्ष का द्वार उन्हीं के लिए खुलता है जो अपने परिवार के बड़े बुजुर्गों व अपने माता पिता और गुरूजनों की शुध्द अंतःकरण से सेवा करता है तथा छोटों का पालन पोषण संरक्षण करता है।

गृहस्थ आश्रम में रहकर परिवार की सेवा करना ही यज्ञ है,यदि परिवार के सदस्यों को भोजन, कपड़ा या मकान जैसी नैसर्गिक आवश्यकताओं के लिए जुझना पड़ रहा हो और पालक व्यक्ति आवश्यकताओं की आपूर्ति छोड़ दान - दक्षिणा कर रहा हो तो ऐसा दान व्यर्थ है ऐसे दान को परमब्रह्म सतपुरुष पिता किसी भी रूप में स्वीकार नहीं करते।